लंदन, इंग्लैंड - २० सितंबर २०१५ - आज प्रातः जब बीबीसी समाचार पत्रकार क्लाइव माइरी परम पावन दलाई लामा का साक्षात्कार लेने आए तो उनके कई प्रश्न यूरोप के समक्ष उपस्थित शरणार्थी संकट से संबंधित थे। वे जानना चाहते थे कि क्या अभिव्यक्त उदासीनता और वैर में साधारणतया क्या कहीं करुणा का अभाव नहीं था। परम पावन ने उत्तर दिया:
"यह संदेह और अविश्वास के बारे में है। हमें यह देखना होगा कि जहाँ हिंसापूर्ण संघर्ष इन लोगों को एक विकल्प तलाशने के लिए बाध्य कर रहे हैं, वहाँ किस प्रकार शांति व सुलह लाई जाए।
जब माइरी ने पूर्व आर्चबिशप जॉर्ज केरी के सैन्य बल के प्रयोग की पक्षधरता को उद्धृत किया तो परम पावन ने कहा, "उनका अपना दृष्टिकोण है। मैं चीज़ों को उस प्रकार नहीं देखता।"
माइरी ने सुझाया कि ऐसे युवा तिब्बती हैं जो सोचते हैं कि अहिंसा ने उनके उद्देश्य को विफल कर दिया है। परम पावन ने प्रत्युत्तर में कहा, कि वे भी अपना मत रखने के अधिकार रखते हैं, पर यह कहना सच नहीं है कि मध्यम मार्ग दृष्टिकोण विफल हो गया है, विशेषकर जब कि इसे निरंतर चीनी नागरिकों से समर्थन और प्रशंसा मिल रही है। उन्होंने सूचना दी कि कई चीनी जो उनसे मिलने आते हैं, वे तिब्बत में जो हो रहा है उसके लिए क्षमा माँगते हैं।
जब शुगदेन समर्थकों के प्रदर्शनों के बारे में उनसे पूछा गया तो परम पावन ने उत्तर दिया कि संबंधित व्यक्तियों को और अधिक शोध करना चाहिए और उन्हें क्रोध से प्रेरित होकर कार्य नहीं करना चाहिए, जो उनके निर्णय को प्रभावित करता है। उन्होंने सुझाव दिया कि वे दक्षिण भारत जाकर तिब्बती आवासों में महाविहारों को देखें जहाँ २००० भिक्षुओं के अभ्यास अप्रतिबंधित हैं।
परम पावन ने इस बात को नकारा कि अपनी इस यात्रा में वे प्रधान मंत्री डेविड केमरोन से भेंट न होने के कारण निराश हैं, और यह कहा कि उनका कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। उन्होंने दोहराया कि १५वें दलाई लामा की खोज हो कि नहीं यह तिब्बती लोगों की इच्छा पर निर्भर करेगा। उन्होंने वही बात कही जो उन्होंने कहीं और कही थी, कि यदि एक और पुनर्जन्म हो तो वह स्री रूप में होगा।
इसके बाद व्यवसायी, हिंदुजा बंधुओं - श्रीचंद, गोपीचंद, प्रकाश और अशोक ने अपने घर-कार्लटन टेरेस में परम पावन का स्वागत किया। एक समय इस भव्य हवेली में महारानी विक्टोरिया के प्रधानमंत्री विलियम ग्लैडस्टोन निवास किया करते थे। परम पावन ने एक छोटे से पारिवारिक सभा में पुष्टि की, कि वे जहाँ भी जाते हैं वे भारत के अहिंसा और अंतर्धार्मिक सद्भाव का संदेश ले जाते हैं। लेडी मोहिनी केंट नून ने उनका परिचय लगभग १०० भारतीय राजनीतिक और व्यापार जगत के नेताओं से करवाया और कहा कि उन्हें वहाँ पाकर वे कितने गौरवान्वित थे। उन्होंने परम पावन के अहिंसा के प्रति निरंतर समर्पण का उल्लेख किया और कहा कि कोई तिब्बती क्रोध से भरा हुआ तो हो सकता है पर कोई भी आतंकवादी नहीं है।
परम पावन ने यह टिप्पणी करते हुए उत्तर दिया कि हिंदू, जैन और बौद्ध परम्पराओं में आम रूप से नैतिकता, एकाग्रता और प्रज्ञा का अभ्यास है, अंतर मात्र इतना है कि बुद्ध ने अनात्मन, स्वतंत्र रूप से अस्तित्व रखने वाले आत्म के अभाव की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि वह स्वयं को 'भारत का पुत्र' मानते हैं, क्योंकि उनका दिमाग नालंदा के विचारों से भरा हुआ है और उनका शरीर एक लम्बे समय से भारतीय चावल और दाल से पोषित हुआ है।
यह पूछे जाने पर कि क्या वे सोचते हैं कि संसार में बुरे लोग हैं या कि बस इतना ही कि कुछ लोग गुमराह हैं, उन्होंने उत्तर दियाः
"बस केवल गुमराह। हमें बुरे बच्चे नहीं मिल सकते। केवल जब लोग वयस्क हो जाते हैं तब वे बुरा व्यवहार करते हैं। मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं। प्रेम ही हमें एक साथ लाता है। इस बात पर कि दुनिया बेहतर हो रही है अथवा नहीं, हम कह सकते हैं कि और अधिक लोग चित्त की शांति के महत्व के बारे में सजग हो रहे हैं।
ज्योतिष के विषय में एक प्रश्न के उत्तर में परम पावन ने कहा कि वे नहीं जानते, पर ५वें दलाई लामा जो कि एक योग्य ज्योतिषी थे, ने यह टिप्पणी की थी कि उनके जन्म के शुभ दिन पर, हज़ारों कुत्तों का भी जन्म हुआ था।
लेडी मोहिनी केंट नून और हिंदुजा फाउंडेशन द्वारा आयोजित मध्याह्न के भोजन के बाद, परम पावन कोलिज़ीयम थियेटर के लिए रवाना हुए, जहाँ वे 'अहिंसा - इंडिया डे' के समारोह पर लगभग २३०० दर्शकों को संबोधित करने वाले थे। कार्यक्रम के परिचय में यह समझाया गया कि 'अहिंसा' का अर्थ कोई अहित न करना है और परम पावन उसे कार्य में करुणा के रूप में देखते हैं।
"भाइयों और बहनों," उन्होंने प्रारंभ किया, "सभी मानव समान हैं। हम मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से एक जैसे हैं। हम सभी रचनात्मक और विध्वंसकारी भावनाओं का अनुभव करते हैं। हमारा आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है, और करुणा लोगों को एक साथ लाती है। हमारे दैनिक जीवन में जब कोई मुस्कुराता है और हमारे साथ स्नेह का व्यवहार करता है तो हमें प्रसन्नता होती है। पर यदि वे अपनी भौंहे टेढ़ी करते हैं तो हम असहजता का अनुभव करते हैं। यह संकेत है कि हमें मित्रों की आवश्यकता है। मैत्री ख्यति, धन अथवा शारीरिक शक्ति पर निर्भर नहीं होती। यह विश्वास पर आधारित होती है और विश्वास प्रेम तथा स्नेह पर निर्भर करता है। अतः यदि हम एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं तो प्रेम व स्नेह महत्वपूर्ण हैं। और जीवन का उद्देश्य आनन्दमय और सुखी होना है।"
इस अंतिम टिप्पणी की प्रतिक्रिया में श्रोताओं ने सौहार्दपूर्ण रूप से करतल ध्वनि की। परम पावन ने जारी रखा:
"हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं वे स्वनिर्मित हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि हम आपसी गौण मतभेदों की ओर बहुत अधिक ध्यान देते हैं। हम राष्ट्रीयता, जातिगत भेद, रंग अथवा हम धनवान हैं अथवा निर्धन हैं, के अंतर पर बल देते हैं। हम इस तथ्य की उपेक्षा करते हैं कि मूलतः हम सभी मनुष्य हैं, जो एक सुखी जीवन बिताना चाहते हैं। और उसी कारण जो हमें करना है, वह एक दूसरे की सहायता है।
"अतीत में जब राष्ट्र युद्ध पर जाते थे तो वे मात्र अपनी विजय और अपने प्रतिद्वंद्वियों का विनाश देखते थे। इस प्रकार का व्यवहार अब बिलकुल तारीख से बाहर हो गया है। क्योंकि अब हम इतने अन्योन्याश्रित हो गए हैं। अपने पड़ोसियों को परास्त करते हुए हम स्वयं को परास्त कर देंगे। हमारे बढ़ते हुए भूमंडलीकृत विश्व में, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं हैं, वे हम सभी को प्रभावित करती हैं। मैं प्रायः ध्यानाकर्षित करता हूँ कि २०वीं सदी अपने महान विकास के अलावा हिंसा और रक्तपात की अवधि थी। हम २१वीं सदी को शांति के युग के रूप में चाहते हैं। हमें संघर्ष के प्रति एक और अधिक मानवीय व्यवहार अपनाने की आवश्यकता है और सैन्य बल का सहारा लेने के बजाय संवाद के माध्यम से उसे हल करने की आवश्यकता है।"
परम पावन ने पुष्टि की, कि उनकी पहली प्रतिबद्धता मानवीय सुख को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि उनका दूसरा, एक बौद्ध भिक्षु के रूप में अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना है। उन्होंने धर्म की व्याख्या करते हुए उसके तीन पहलुओं के बारे में बतायाः धार्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक। धार्मिक पहलू में प्रेम, करुणा, सहिष्णुता और आत्मानुशासन का संदेश शामिल है, जो सभी धार्मिक परंपराओं में आम हैं। दार्शनिक पहलू, एक सृजनकर्ता अथवा कार्य- कारण के नियम में विश्वास, प्रेम और करुणा के अभ्यास को प्रबल करता है। इस संदर्भ में 'अहिंसा' का संबंध कायिक तथा वाचिक कर्मों से है, पर सीमांकन हमारी प्रेरणा की गुणवत्ता में निहित है जिसमें चित्त शामिल है।
परम पावन ने 'अहिंसा' और अंतर्धार्मिक सद्भाव की भारत की प्राचीन परंपराएँ, जो विश्व को प्रदर्शित करती हैं कि विभिन्न धार्मिक परंपराएँ साथ साथ शांति और सम्मान रह सकती हैं, के प्रति अपनी महान प्रशंसा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन जैसे स्थानों में भारतीय समुदाय का इन प्राचीन परंपराओं को बनाए रखने और आज के विश्व में उनकी प्रासंगिकता को दिखाने का एक उत्तरदायित्व बनता है।
श्रोताओँ के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने रहा 'अहिंसा' आकाश से नहीं टपकती, यह भीतर एक सौहार्दपूर्ण हृदय के विकास से आती है। यह पूछे जाने पर कि क्या ऐसी परिस्थितियाँ हैं जब 'अहिंसा' अनुचित है, उन्होंने उत्तर दिया कि 'अहिंसा' और अहित न करना किसी भी मानवीय समस्या का उचित समाधान है। जब श्रोताओं में से एक ने पूछा कि उसके मित्र के बलात्कार और हत्या को लेकर किस प्रकार की प्रतिक्रिया होनी चाहिए, उन्होंने कहा:
"अपने आप से पूछो कि क्या क्रोधित होने से समस्या का समाधान होगा और इसे बेहतर बनाएगा। क्रोध और प्रतिशोध की भावना केवल अपने ही चित्त की शांति को भंग करती है। ८वीं सदी के भारतीय आचार्य शांतिदेव ने सलाह दी है जिसे मैं व्यावहारिक और यथार्थवादी पाता हूँ, कि यदि किसी समस्या के समाधान का कोई मार्ग हो तो उसके बारे में चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं और यदि समस्या के समाधान का कोई मार्ग नहीं है, तो चिंता से कोई सहायता न मिलेगी।
जब एक युवती ने शुगदेन और धार्मिक स्वतंत्रता के अभ्यास से संबंधित एक प्रश्न को चीखते हुए पूछा, तो परम पावन ने सुना और सुझाव दिया कि जो लोग इस बारे में प्रदर्शन कर रहे हैं वे पूरी कहानी नहीं जानते। उन्हें और अधिक जाँच करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें उनकी अज्ञानता पर दुःख होता है।
अंत में, जीवन के उद्देश्य के बारे में पूछे जाने पर, परम पावन ने उत्तर दिया:
"सुख तथा आनन्द जीवन का उद्देश्य है।" थिएटर पुनः तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। "यदि हमारे कार्यों से दूसरों को आनन्द मिलता है तो यह अच्छी बात है। धन्यवाद।"