टाशी ल्हुन्पो, बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - ३१ दिसम्बर २०१५ - आज कदम के १६ तिलक के अभिषेक के दूसरे दिन परम पवन के आगमन से पूर्व टाशी ल्हुन्पो के नभ पर गुलाबी भोर की आभा थी। वे मंडल मंडप के समक्ष अनुष्ठान करते हुए मौन भाव से बैठे। प्रारंभ में नीचे सीढ़ियों पर बैठे तिब्बती तीर्थयात्रियों के एक दल के सामूहिक रूप में ऊँ मणि पद्मे हुँ का नियमित गूँजता स्वर ही एक मात्र ध्वनि थी।
"आज, हम शेष तिलकों के अभिषेक को पूरा करेंगे," परम पावन की घोषणा की।
बुद्ध को 'महारक्षक' के रूप में संदर्भित करते हुए उन्होंने समझाया कहा कि वही हैं जिन्होंने सभी बाधाओं का प्रहाण किया है और सभी अनुभूतियों की प्राप्ति की है। उन्होंने दूसरों के कल्याण और स्वयं के कल्याण की सिद्धि कर ली है। परम पावन ने न केवल त्रिरत्न में शरण लेने पर परन्तु असामान्य महायान शरण के उत्पाद पर भी बल दिया जिसमें बोधिचित्तोत्पाद पैदा करना शामिल है। उन्होंने कहा कि यह स्मरण रखना महत्वपूर्ण है कि बुद्ध ने बुद्धत्व अपने स्वयं के प्रयास के फलस्वरूप प्राप्त किया, वे सदैव बुद्ध नहीं थे। उन्होंने निरोध और अपने ही अंदर जो मार्ग उन्होंने प्राप्त किया था उसकी देशना अपने स्वयं के अनुभव के आधार पर दी।
"हम बुद्ध, धर्म और संघ की शरण में एक दीर्घ जीवन जीने के लिए नहीं जाते, यहाँ तक कि एक अच्छे पुनर्जन्म प्राप्त करने के लिए भी नहीं। विमुक्ति के लिए शरणगमन का उद्देश्य श्रावकयान और प्रत्येकबुद्ध यान का अभ्यास है। जिसका मैं संदर्भ दे रहा हूँ वह जब हम कहते हैं 'मैं उस समय तक शरणगमन होता हूँ जब तक मैं बुद्धत्व न प्राप्त कर लूँ'। यह छह पारमिताओं के अभ्यास से संबद्ध है जिससे आप स्वयं के चित्त को परिपक्व करते हैं और शिष्यों को एकत्रित करने के चार उपाय जिससे आप दूसरों के चित्त को परिपक्व करते हैं। बोधिचित्तोत्पाद से हम दूसरों को स्मरण करते हैं और उनके हितार्थ कार्य करते हैं।"
परम पावन ने कल जो अभिषेक प्रदान किए थे उन तिलकों का पुनरावलोकन किया जो अवलोकितेश्वर जिन - सागर से प्रारंभ हुई थी। उन्होंने ११वाँ अभिषेक प्रारंभ किया, अतीश का तिलक और उनके बाद के :
डोमतोन ज्ञलवे जुंगने का तिलक
व्यापक अभ्यास का तिलक
गहन दृष्टि का तिलक
प्रेरणादायक अभ्यास का तिलक
महा प्रबुद्धता का तिलक
प्रत्येक अभिषेक में एक नूतन मंडल की भावना थी जिसमें पूर्व तिलक के देव के हृदय में एक तिलक में देव और शामिल परिचारक वर्ग था। संबंधित मंत्र का पाठ हुआ और जल की दीक्षा के साथ अभिषेक सम्पन्न हुआ। इसे मूर्त रूप से आशीर्वचित केसर जल को अभिषिक्त के हाथों में डाल कर उसका पान करने के रूप में अभिव्यक्त किया गया। अभिषेक के समापन पर एक संक्षिप्त कृतज्ञता ज्ञापन 'छोग' समारोह हुआ।
"१८ बोधिपथक्रम ग्रंथों का संचरण सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है, यद्यपि मुझे लगता हैं कि इसे मैं इस जीवन में केवल एक बार कर सकता हूँ।" खड़े होते हुए परम पावन ने टिप्पणी की, "मैं उन सभी को धन्यवाद कहना चाहूँगा जिन्होंने इसे संभव बनाने में योगदान दिया, प्रवचनों के आयोजक, संरक्षक और यहाँ टाशी ल्हुन्पो और सेरा, गदेन और डेपुंग के कर्मचारी। कुछ जो हमारे साथ थे जब चार वर्ष पूर्व हमने प्रारंभ किया था, जैसे गेशे नमज्ञल वांगचेन, वे अब नहीं रहे। पर यह स्वाभाविक है। यही अंत में हम सभी लोगों के साथ होना है। और यही कारण कि हम सबको अभ्यास करना चाहिए। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आपकी बुद्धि कितनी बड़ी या छोटी है, आप अभी भी अपने चित्त का शोधन कर सकते हैं।
"यह तथ्य कि बुद्ध की शिक्षाओं तिब्बत में बनी रहीं अत्युत्तम बात है। बोधिचित्त तथा शून्यता का गहन दृष्टिकोण भी बहुत अच्छा है। हिमालय क्षेत्र, मंगोलिया, चीन, कोरिया, जापान और वियतनाम के हमारे कई मित्र हैं, जो हमारी तरह नालंदा परम्परा का पालन करते हैं। यहाँ और अभी २१वीं सदी में, हमें जो गम्भीर रूप से लेना है वह अध्ययन का महत्व और हमारे कारण का उपयोग है।
"यहाँ टाशी ल्हुन्पो में हमने बोधिपथ क्रम प्रवचन समाप्त कर लिया है और हमने प्रमाणवार्तिक प्रारंभ कर दिया है। यदि समय हुआ तो मैं आशा करता हूँ कि मैं उसे जारी रखने में सक्षम होऊँगा।
"आप में से जो विदेश से आए हैं कल २०१६ का प्रारंभ है - आप सब को एक नया साल मुबारक हो। अब आप घर जाएँगे, पर हममें से जो अभी भी यही हैं पुनः मिलेंगे जब हम २०१७ में बोधगया में कालचक्र अभिषेक आयोजित करेंगे। इस बीच एक अच्छा पुनर्जन्म सुनिश्चित करने का उपाय अपने जीवन को सार्थक बनाना है। सुखी रहें और 'टाशी देलेक'।"