पर्थ, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रेलिया - १४ जून २०१५ - दिन बहुत ही सुन्दर और गगन निरभ्र था जब परम पावन दलाई लामा पर्थ के लिए उड़ान भरने के लिए हवाई अड्डे जाने हेतु तैयार थे। कई तिब्बती, जो विशेष रूप से उनके साथ सम्मिलित होने आए थे, उन्हें विदा देने उपस्थित थे।
उड़ान भरने के तुरंत बाद हवाई जहाज़ से भोर के प्रकाश में उलुरू चट्टान के गठन के दृश्य स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। तीन घंटे के बाद पर्थ पहुँचने पर वे सीधे गाड़ी से स्वान नदी के किनारे स्थित अपने होटल गए।
मध्याह्न भोजन के बाद परम पावन पर्थ एरेना गए, जहाँ वे ४००० की संख्या के दर्शकों को संबोधित करने वाले थे। सेवेन न्यूज़ के समाचार प्रस्तुतकर्ता रिक आर्डन ने व्हादजु समुदाय के सदस्यों को एक स्वागत नृत्य प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया। उसके बाद सूजी माथर, एक पर्थ युवती और अभिनेत्री, ने परम पावन का परिचय दिया जब वह मंच पर आए। श्रोताओं ने उच्च स्वर तथा उत्साह के साथ अभिनन्दन किया।
"भाइयों और बहनों," उन्होंने प्रारंभ किया, "मेरे लिए एक महान सम्मान की बात है कि मुझे यह अवसर मिला है कि आपके साथ अपने कुछ अनुभव साझा कर सकूँ। जब मैं सार्वजनिक रूप से बोलता हूँ तो मैं सदा स्वयं को आप ही की तरह मात्र एक इंसान के रूप में देखता हूँ। और इस आधार पर जो मैं कहना चाहता हूँ वह आपके लिए कुछ सार्थक हो सकता है। आज जीवित ७ अरब मनुष्य मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। मैं भी ऐसी परिस्थितियों का सामना करता हूँ जिनमें चित्त को उद्वेलित करने की क्षमता रखते हैं, पर जब उद्वेलन जन्म लेने लगता है, तो उसे शांत करने के लिए मैं चित्त के अन्य भाग का उपयोग कर सकता हूँ। हम सब में एक जैसा मस्तिष्क है और हम सब में यह करने की क्षमता है।
"हम सभी सुखी रहना चाहते हैं और पीड़ा से बचना चाहते हैं, और हम सभी को सुखी होने का अधिकार है। इसलिए मैं कहता हूँ कि हम सभी एक ही जैसे हैं।"
परम पावन ने समझाया कि किस तरह १६ वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी स्वतंत्रता खो दी, जब तिब्बत का उत्तरदायित्व उठाने के लिए उनका आह्वान किया गया और २४ वर्ष की आयु में उन्होंने अपना देश खो दिया। परिणामस्वरूप वे ५६ वर्षों से एक शरणार्थी के रूप में रहते हैं। यद्यपि उन्हें और उनके साथी तिब्बतियों को भारतीय सरकार की ओर से बहुत सहायता प्राप्त हुई है तथा कुछ अन्य शरणार्थी समुदायों की तुलना में वे अपेक्षाकृत सफल रहे हैं। फिर भी, तिब्बत में स्थिति दुखद बनी हुई है।
"हमारे अद्भुत मानव मस्तिष्क का एक पक्ष," उन्होंने कहा, "वस्तुओं को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखने की हमारी क्षमता है। जहाँ सतही धरातल पर यह एक त्रासदी प्रतीत हो सकती है, पर एक अन्य दृष्टिकोण से वास्तव में सहायक लग सकती है। जो लोग अपनी आंतरिक शक्ति बनाए रखते हैं जब वे कठिनाइयों से होकर गुजरते हैं तो और अधिक यथार्थवादी हो जाते हैं। मैंने देखा है कि वह पीढ़ी जो यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध में बच गई वह उस रूप में सशक्त हो गई है जैसी युवा पीढ़ी नहीं है। स्पष्ट रूप से हमारे मस्तिष्क और सौहार्दता का एक संयोजन हमारे एक अधिक सुखी और अधिक शांतिपूर्ण जीवन जीने में सहायक हो सकता है। यदि हममें चित्त की शांति है, तो हम पीड़ा और व्याकुल करने वाले अनुभवों का सामना कर सकते हैं।"
उन्होंने उल्लेख किया कि वह कई औपचारिकताओं को हटाने में सफल हुए हैं और कहा कि जब हम वस्तुओं को सहजता से लेते हैं, और कम औपचारिक होते हैं तो हम एक दूसरे के साथ अधिक खुले और ईमानदार हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न प्रकार के लोगों, साधारण लोग, आध्यात्मिक भक्त, आस्था न रखने वाले, पेशेवरों और वैज्ञानिकों से हुई भेंट ने उनके अपने अभ्यास को समृद्ध किया है। और विश्व के विभिन्न भागों से अलग-अलग लोगों की साथ हुई भेंट ने उन्हें दिखाया है कि कई समस्याएँ जिनका हम सामना कर रहे हैं, हमारी अपनी निर्मित हैं। चूँकि जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था अब हम सभी को प्रभावित कर रही है, हमें मानवता की एकता की भावना विकसित करनी है।
"इन सबसे ऊपर हमें चित्त की शांति की आवश्यकता है। जब डॉक्टर हमें आराम करने की सलाह देता है, तो उसका अर्थ है, शांत बने रहें, अपने उत्तेजित चित्त को शांत करें और तनाव छोड़ दें। यहाँ पर्थ में सुपरमार्केट होंगे, पर क्या उनमें से कोई चित्त की शांति बेचते हैं? यदि मैं बाहर जाकर चिल्लाऊँ कि मुझे कुछ चित्त की शांति खरीदना है तो लोग समझेंगे कि मैं पागल हूँ। चित्त की शांति की कुंजी भीतर है, पर हम सदा सुख और संतोष अपने बाहर खोजते हैं।
"हम धार्मिक हों अथवा नहीं, पर एक अधिक सुखी मानवता बनाने के लिए हमें अपने आंतरिक मूल्यों की ओर अधिक ध्यान देना होगा। चूँकि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली भौतिकवाद की ओर उन्मुख है, हमें अधिक मानवीय मूल्यों, दूसरों के लिए अधिक से अधिक चिंता को शामिल करने के लिए उपाय खोजने होंगे। ऐसी आंतरिक मूल्यों का सरल आधार सौहार्दता और सामान्य ज्ञान है। इस पर सोचें और यदि यह उपयोगी लगे तो अनुपालन करें।"
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने नैतिकता और धार्मिक परम्परा के बीच एक अंतर स्पष्ट किया और यह सुझाया कि नैतिकता मूल रूप से प्रेम का आम संदेश है और लोगों को नैतिकता में शिक्षित किया जा सकता है, फिर चाहे उनकी कोई विशिष्ट आस्था हो अथवा नहीं। उन्होंने कहा कि इसीलिए हमें धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की आवश्यकता है, मूल्य जो सभी धमों के प्रति एक निष्पक्ष सम्मान के आधारित हों, जैसा कि सदियों से भारत के बहुधार्मिक समाज में देखा गया है। यह कोई स्वर्ग अथवा विशुद्ध क्षेत्र में आगामी जीवन को लेकर नहीं, अपितु इस जीवन के बारे में है, यहाँ और अभी।
यह पूछे जाने पर कि वह उन कहानियों के बारे में क्या सोचते हैं कि यीशु मसीह ने भारत में बौद्ध धर्म का अध्ययन किया था, परम पावन ने सूचित किया कि ऐसे पुस्तक की कहानी है जिसमें लद्दाख में हेमिस मठ में इसका वर्णन मिलता है। पर यह पुस्तक कभी मिली नहीं।
'अहंकार' से निपटने के बारे में एक प्रश्न ने परम पावन को यह स्पष्ट करने के लिए प्रेरित किया कि जहाँ आत्म - केन्द्रितता समस्याओं का स्रोत है, पर यदि आप अनंत परोपकारिता विकसित करना चाहें, तो आपको एक सशक्त आत्म की भावना की आवश्यकता होगी। दूसरों के प्रति चिंता के विकास हेतु शक्ति आवश्यक है, जिसे ऐसे विश्व में स्मरण रखना आवश्यक है जहाँ लोग धर्म के नाम पर एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं।
"जहाँ २०वीं सदी अत्यधिक हिंसा का एक युग था, हमें २१वीं शताब्दी को शांति का युग बनाने का प्रयास करना चाहिए, जहाँ संघर्ष का समाधान संवाद द्वारा होता है। हम स्वाभाविक रूप से स्वार्थी हैं, पर हमें मूर्खता रूप से स्वार्थी और केवल अपनी चिंता न रखते हुए, बुद्धिमत्ता से स्वार्थी और दूसरों के लिए चिंतित होने की आवश्यकता है।"
इस प्रश्न पर कि हम आतंकवादियों को किस तरह माफ कर सकते हैं, परम पावन ने उत्तर दिया ः
"लंबे समय में क्षमा ही एकमात्र उत्तर है। पर इसका यह अर्थ नहीं कि आप उनके गलत कार्यों को स्वीकार करें। क्षमा का अर्थ है आप क्रोध को अपने ऊपर हावी न होने दें। आप कर्ता और कर्म में अंतर करें। कर्म का विरोध करें, पर जिसने किया है उसके प्रति करुणा न त्यागें।"
अंत में, परम पावन से पूछा गया यदि विश्व को वास्तव में शांति में रहना है तो लोगों
को किस की आवश्यकता है। उन्होंने उत्तर दियाः
"आंतरिक शांति। शांति जो अंदर से आती है। शांति प्रशिक्षण के माध्यम से विकसित की जा सकती है, पर इसे व्यक्ति के स्तर पर प्रारंभ करना होगा। यह सरकारों या संयुक्त राष्ट्र की तरह संस्थानों के साथ प्रारंभ नहीं होंगी। जब आप अपने आपको गर्म धूप में आराम करता पाएँ, तो गप्पेबाजी के स्थान पर एक दूसरे से चित्त की शांति के बारे में बात करें। चूँकि विश्व में शांति, व्यक्ति की शांति पर निर्भर करती है, तो हममें से प्रत्येक को इसे खोजने का प्रयास करना होगा।
"इस यात्रा का यह अंतिम सार्वजनिक व्याख्यान है। कल मैं जा रहा हूँ, पर आपकी समस्याएँ आपके साथ यहीं रहेंगी। उन्हें हल करने के प्रयास में अपने मस्तिष्क और अपने हृदय की सलाह लीजिए। यही मैं करता हूँ।"
रोब केलडौलिस, इस दौरे के आयोजकों के बोर्ड के अध्यक्ष, दलाई लामा इन ऑस्ट्रेलिया (डीएलआइए) एक संक्षिप्त रिपोर्ट के साथ आगे आए। जब उन्होंने यह कहना प्रारंभ किया कि वे प्रवचन के लिए कोई शुल्क नहीं लेते, परम पावन ने उन्हें टोकते हुए कहा ः
"कई वर्ष पूर्व मुझे सेले रांगडोल नाम के एक लामा की कहानी ज्ञात हुई। उन्होंने अपने प्रवचनों के संबंध में तीन प्रतिज्ञाएँ की थीं ः एक स्थान से दूसरे स्थान तक घोड़े की सवारी न करना, केवल शाकाहारी भोजन करना और किसी भी प्रकार का शुल्क न लेना। इसने मेरे मस्तिष्क पर एक प्रबल छाप छोड़ी। मैंने निश्चय किया कि मैं भी प्रवचन के लिए कोई शुल्क न लूँगा।"
केलडौलिस ने उनकी यात्रा के दौरान परम पावन की गतिविधियों का संक्षेपीकरण जारी रखा, और बताया कि १२ दिनों की अवधि में १३ कार्यक्रमों के दौरान उन्होंने २०,००० लोगों से बात की थी। उन्होंने उल्लेख किया कि प्राथमिक रूप से टिकटों की बिक्री से जमा हुआ अधिशेष १००,००० धर्मार्थ कारणों के लिए दान किया जाएगा। उन्होंने घोषणा की, कि खाता डीएलआइए की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाएगा और परम पावन दलाई लामा के कार्यालय में प्रस्तुत किया जाएगा।
इसका पश्चात डीएलआइए के प्रबंधक, लिन बैन ने परम पावन को जन्म दिन की अग्रिम रूप से बधाई दी जबकि वास्तविक दिन कुछ हफ्तों के बाद है। उन्होंने उन्हें पूरे ऑस्ट्रेलिया में से २००० लोगों द्वारा भेजे गए संदेशों की एक पुस्तक प्रस्तुत की। सूजी माथर और जेम्मा रिक्स, दोनों जो इस समय पर्थ में 'विकेड' का प्रदर्शन करती दिखाई देंगी, ने परम पावन के लिए जन्मदिन मुबारक गायन में दर्शकों का नेतृत्व किया और अपने शो का एक गीत प्रस्तुत किया जो इस प्रकार समाप्त होता है ः
"क्योंकि मैं आपको जानता था ...
मैं अच्छे के लिए बदल गया हूँ…. "
दर्शकों की तालियाँ गूँज उठीं।