रोम, इटली - १२ दिसंबर २०१४ - जब परम पावन दलाई लामा प्रातः तड़के ही नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के १४वें विश्व शिखर सम्मेलन के कार्यक्रम स्थल पार्को डेला म्यूसिका पहुँचे, तो उन्होंने पाया कि उनके सह पुरस्कार विजेताओं में से कई वहाँ तब तक पहुँचे न थे। वे पहले रोम के मेयर, इगनेज़ियो मैरिनो से मिले और फिर जैसे जैसे वे आते गए, उन्होंने अपने पुराने िमत्रों, जैसे जोडी विलियम्स, शिरीन इबादी और मैरेड मेग्युर तथा नए मित्रों जैसे लेमाह बोवी और तवाकुल करमान का अभिनन्दन किया।
सभागार में रोम के मेयर ने ध्यानाकर्षित िकया कि यह सभा नेल्सन मंडेला की स्मृति को समर्पित थी, जिनको उन्होंने स्मरण किया कि १९८७ में रोम का माननीय नागरिक बनाया गया था, जबकि वे तब भी जेल में थे। उन्होंने मंडेला को उद्धृत करते हुए कहा, "एक विजेता बस स्वप्न देखता है, जिसने कभी हार न मानी।" कई वर्षों दुख झेलने के बावजूद मंडेला में आक्रोश नहीं था, बल्कि उन्होंने सलाह दी, "शमन करने का समय आ गया है।"
मेयर प्रो मैरिनो ने शिखर सम्मेलन में भाग लेने वालों से यह सुनिश्चित करते हुए कि युवा पीढी स्वाभाविक रूप से शांति हेतु काम करने के लिए प्रतिबद्ध हो जाएगी, मानवीय अधिकारों के वैश्वीकरण का उद्देश्य रखने का आग्रह किया। उन्होंने उपस्थित सभी लोगों से इस वर्ष के पुरस्कार विजेताओं, मलाला युसुफ़ज़ई और कैलाश सत्यार्थी का स्मरण करने को कहा। उन्होंने नेल्सन मंडेला के कथन को दोहराया कहा कि "शांति के बिना स्वतंत्रता सच्ची स्वतंत्रता नहीं है।"
इसके पूर्व कि एकत्रित शांति पुरस्कार विजेताओं की ओर से मैरेड मेग्युर व्याख्यान मंच पर आतीं, रोम के पूर्व महापौर और शिखर सम्मेलन के सह अध्यक्ष वाल्टर वेल्ट्रोनी ने कुछ टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि शांति प्रत्येक का मानवीय अधिकार है और यह अन्य सभी मानव अधिकारों की एक आवश्यक पूर्व शर्त है। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रत्येक का न मारा जाना एक अधिकार है और हिंसा न करना उत्तरदायित्व है। उन्होंने परम पावन पोप को 'एक उचित युद्ध' के सिद्धांत को शांति के सिद्धांत से बदलने का एक संदेश देने की इच्छा व्यक्त की तथा परम पावन दलाई लामा के कथन को उद्धृत िकया कि हिंसा सदा गलत होती है और उसे कभी न्यायसंगत नहीं माना जा सकता।
अल्बर्ट श्वाइट्ज़र संस्थान के कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर डेविड आइव्स ने सभा को बताया कि यद्यपि केपटाउन में प्रस्तावित बैठक रद्द कर दी गयी थी, पर संस्थान, वैश्विक एकता के भीतर विविधता के विषय पर एक संवाद के लिए छात्रों के एक समूह के साथ वहाँ गया था। उन्होंने कहा कि ऐसा करते हुए वे परम पावन दलाई लामा के साथ खड़े थे। उन्होंने छात्र प्रतिनिधियों को अपने कुछ अनुभवों की सूचना देने के लिए आमंत्रित किया।
चर्चा का पहला सत्र, 'शांति जीवन, लोकतंत्र जीवन - दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र के २० वर्ष ः प्राप्त लक्ष्य और सतत चुनौतियां' पर केंद्रित था और संचालक पीटर पोफाम, इंडिपेन्डेंट के एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा पैनल के परिचय से प्रारंभ हुआ। वे थे लाइबेरिया के लेमाह बोवी, उत्तरी आयरलैंड के लार्ड डेविड ट्रिम्बल, संयुक्त राज्य अमरीका की जोडी विलियम्स, केपटाउन की मेयर पेट्रीसिया डी लिले और एमनेस्टी इंटरनेशनल का प्रतिनिधित्व करते हुए कोल्म ओ कुआनाचैन। पोफाम ने स्मरण किया कि नेल्सन मंडेला ने अंततः पाया कि शांतिपूर्ण उपाय सबसे अधिक प्रभावी होगा। उन्होंने पेट्रीसिया डी लिले को, जो उस बैठक में भाग ले रहीं एक मात्र दक्षिण अफ्रीकी थीं, को यह बताने के लिए आमंत्रित किया कि दक्षिण अफ्रीका किस प्रकार बदल गया है।
उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के लोगों की ओर से उनकी सरकार के व्यवहार के लिए, जिसके कारण शिखर सम्मेलन का आयोजन स्थल रोम लाया गया था, क्षमा माँगते हुए प्रारंभ किया। उन्होंने उल्लेख किया कि विश्व ने एक वर्ष और एक सप्ताह पहले नेल्सन मंडेला को खो दिया था। उन्होंने एक शांतिपूर्ण संक्रमण में अपने देश का नेतृत्व किया था। उन्होंने पुष्टि की कि न्याय के बिना शांति नहीं है और कहा कि वे उन चीजों को संरक्षित करने हेतु जिनके िलए मंडेला ने काम किया था, काम करने की आशा करती हैं।
लार्ड डेविड ट्रिम्बल ने सभा को दक्षिण अफ्रीका में प्रतिनिधियों को आमंत्रित करने में उत्तरी आयरलैंड में शांति के लिए मंडेला के योगदान की बैठक के िवषय में बताया। अन्य बातों के साथ उन्होंने उन्हें बताया कि निर्णय लेना पर्याप्त आम सहमति के आधार पर हो सकता है। उन्होंने ध्यानाकर्षित िकया कि जब वे दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने तो मंडेला ने पाया कि पिछली सरकार ने परमाणु हथियार कार्यक्रम को लगभग पूरा कर लिया था, जिसको उन्होंने तुरन्त समाप्त कर दिया। उन्होंने कहा कि अन्य देश, जो एक परमाणु राज्य था जब उसे स्वतंत्रता मिली और उसके पश्चात उसने अपने परमाणु सुरक्षा को नष्ट कर दिया, वह यूक्रेन था। आसपास के देशों ने सहयोग और सुरक्षा की गारंटी प्रस्तुत की जो अब तक पूरी नहीं हुई है।
लाइबेरिया में अपने अनुभव के विषय में लेमाह बोवी ने श्रोताओं को बताया कि वह स्थिति से नाराज थीं। उन्होंने क्रोध को एक तरल पदार्थ से जोड़ा, जो एक अहिंसक पात्र में डाला जा सकता है, जैसा परम पावन ने किया है, अथवा एक हिंसक पात्र में जिसके परिणामस्वरूप आप चार्ल्स टेलर की तरह जेल जा सकते हैं। यद्यपि, उन्होंने कहा कि उन्होंने सीखा कि जब आप क्रोधित होते हैं, तो आप को सर्वप्रथम एक कदम पीछे रखना चाहिए। उन्होंने समझाया कि किस प्रकार लाइबेरिया में शांति वार्ता के दौरान वे और उनके महिला साथी वार्ता सभागार के बाहर यह कहते हुए बैठ गए कि वे लाइबेरिया के प्रतिनिधियों को उस समय जाने की अनुमति नहीं देंगे जब तक वे एक समझौते पर न पहुँच जाएँगे।
जोडी विलियम्स ने विरोधी कर्मियों बारूदी सुरंगों को समाप्त करने के अभियान के लिए गैर सरकारी संगठनों को एक साथ लाने की बात की। यह नागरिक समाज द्वारा सरकारों पर दबाव डालने कि उन्हें क्या करना चाहिए, का मामला था। उन्होंने कहा कि सरकारें अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए वापस लड़ेंगी। उन्होंने स्मरण किया कि जब राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने राष्ट्रपति मंडेला से अमरीकी सरकार की स्थिति का समर्थन करने के लिए कहा तो मंडेला ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उसके बजाय वे अपने अफ्रीकी भाइयों और बहनों के साथ खड़े रहेंगे जो कि इस तरह के हथियारों के शिकार थे। उन्होंने उनके साहस और सिद्धांत को उनके विपरीत बताया जो चीनी दबाव में आ गए थे। उन्होंने उल्लेख िकया कि परम पावन दलाई लामा एक आध्यात्मिक नेता हैं और कहाः
"इस शहर में एक धार्मिक नेता हैं, जो ज़ाहिर तौर पर एक आध्यात्मिक नेता से भेंट कर चीनियों को नाराज़ नहीं करना चाहते। इससे क्या स्पष्ट होता है?"
उन्होंने कहा कि कुछ लोग, कुछ सरकारें इतना साहस रखती हैं कि खड़े होकर कह सकें जो इतना सुविधाजनक न हो और उन्होंने इस तरह का साहस दिखाने के लिए रोम की सरकार को धन्यवाद दिया।
मेयर डी लिले ने जोड़ा कि कई महान गुणों में से एक जो मंडेला दक्षिण अफ्रीका लाए थे वह सहिष्णुता थी, उन्होंने लोगों को सहिष्णु होना और एक दूसरे का सम्मान करना सिखाया। उन्होंने परम पावन को उनकी देश की यात्रा के लिए नए रूप से आमंत्रित किया। जब पीटर पोफाम ने उनसे युवा लोगों को सलाह देने के लिए कहा तो उन्होंने उत्तर दियाः
"यदि आप सही व गलत में अंतर कर सकते हैं और उसके िवषय में बोल सकते हैं और उसे व्यवहार में ला सकते हैं तो आप एक सफल नेता हो जाएँगे।"
इसी सोच को जारी रखते हुए लार्ड ट्रिम्बल ने कहा कि अंततः यह विविध हितों के बीच संतुलन साधना है और वही राजनीति का प्राचीन रूप है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के कोल्म ओ कुआनाचैन ने कार्रवाई करने और अपने सिद्धांतों पर डटे रहने की सिफारिश की। उन्होंने उल्लेख किया कि संयुक्त राष्ट्र में दक्षिण अफ्रीका के शार्पविले नरसंहार की आलोचना करने वाला प्रथम देश बर्मा था। बाद में जब बर्मा में इस तरह की त्रासदी हुई तो उस समय दक्षिण अफ्रीका जो सुरक्षा परिषद में था, उसकी आलोचना करने से बचा। उन्होंने कहा कि अधिकार और लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि सरकारों की जवाबदेही हो।
पहले और दूसरे सत्र के बीच होली सी से आशीर्वाद का एक संदेश सभा के लिए पढ़ा गया।
दूसरा सत्र, 'मानव विकास के लिए जीवित शांति - सतत मानव विकास के संकट' पर केंद्रित था, जिसका संचालन बी बी सी वर्ल्ड के संवाददाता यलदा हाकिम द्वारा किया गया। उन्होंने परम पावन को यह समझाने के िलए आमंत्रित किया कि शांति युद्ध की अनुपस्थिति से अधिक है। उन्होंने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि अन्य शांति पुरस्कार विजेता उसकी तुलना में अधिक अनुभवी थे और कहाः
"शांति या हिंसा अंततः हमारी भावनाओं से संबंधित है। हिंसा और अहिंसा के बीच सीमांकन यहाँ हृदय में निहित है। यदि हममें दूसरों के लिए वास्तविक चिंता है तो स्वाभाविक रूप से हम उनके अधिकारों की रक्षा करते हैं और हमारे कार्य अहिंसक हो जाते हैं। जितने समय तक हम क्रोध और भय से प्रेरित होंगे इस का विपरीत सच होगा। आधारभूत रूप में सभी ७ अरब मनुष्य समान हैं, इसलिए हमें सब मनुष्यों की एकता की भावना को विकसित करने की आवश्यकता है। प्रायः हम इसके बजाय कि हममें कौन सी समानताएँ हैं, हम गौण तथा सतही अंतर पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जैसे राष्ट्रीयता, जाति, रंग, हम धनवान हैं या निर्धन, शिक्षित अथवा अशिक्षित इत्यादि।"
"हम अपनी शिक्षा प्रणाली को परिवर्तित कर हमारी सोच को बदल सकते हैं। इस समय हमारी शिक्षा व्यवस्था और हमारे जीवन का ढंग अत्यधिक भौतिकवादी है, जिसमें आंतरिक मूल्यों के प्रति बहुत कम ध्यान दिया जाता है। जब हम आंतरिक मूल्यों या नैतिक सिद्धांतों के बारे में सोचना चाहते हैं तो हम धर्म की और मुड़ते हैं। पर वह प्रत्येक को संतुष्ट नहीं कर सकता। आज १ अरब लोग दावा करते हैं कि उनकी कोई भी धार्मिक आस्था नहीं है और यहाँ तक कि वे, जो यह कहते हैं कि उनकी आस्था है, उनमें कई ऐसे हैं जिनकी आस्था वास्तव में भ्रष्ट है या वे गंभीर नहीं हैं। इसलिए मेरा सुझाव है कि बुनियादी मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण की आवश्यकता है। मैं धर्मनिरपेक्ष शब्द का उपयोग उस रूप में कर रहा हूँ जैसा भारत में होता है, कि सभी धर्मों और आस्थाओं के प्रति निष्पक्ष सम्मान और उन लोगों के लिए भी जिनकी कोई आस्था नहीं है।"
"क्योंकि जैसा मैंने कहा, जीवन मूल्य हमारी भावनाओं से जुड़े हुए हैं, और जिस प्रकार हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए शारीरिक स्वच्छता का अभ्यास करते हैं उसी प्रकार एक स्वस्थ चित्त और व्यवहार को संरक्षित करने के लिए हमें भावनात्मक स्वच्छता का पालन करने की आवश्यकता है। इस बीच यह प्रमाण हैं कि क्रोध व डर हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को क्षति पहुँचाता है। भय हमारी कई समस्याओं का स्रोत है और उस का प्रतिकारक विश्वास है। एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हमें दूसरों पर निर्भर होने की आवश्कता है, अतः हमें अपने चित्त और भावनाओं को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।"
परम पावन ने २०वीं सदी की पीढ़ी, जिनकी शताब्दी अब जा चुकी है, और २१वीं सदी की पीढ़ी, जो आज युवा हैं के बीच के अंतर की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि हम अतीत को नहीं बदल सकते, पर हम भविष्य को आकार दे सकते हैं। तो २१वीं सदी की पीढ़ी के पास एक बेहतर विश्व के निर्माण का अवसर और उत्तरदायित्व है। उन्होंने कहा कि यदि वे अब प्रारंभ करें तो संभव है कि इस शताब्दी के उत्तरार्ध में विश्व रहने के िलए एक और अधिक शांतिपूर्ण स्थान हो जाएगा। उन्होंने पुनः सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया।
उन्होंने कहा कि हम लगातार शिक्षा के माध्यम से विश्व के साथ स्वयं को, अपनी सोच को और विश्व के साथ अपने संबंधों को बदल सकते हैं। उन्होंने यह अनुरोध करते हुए समाप्त किया कि उनके शब्दों को मात्र आदर्शवादी कहकर उपेक्षा न करें पर उनकी व्यावहारिक क्षमताा समझकर उन्हें गंभीरता से लें, और कहा कि कोई और रास्ता नहीं है।
यलदा हाकिम ने ख़ोसे रामोस होर्ता से सतत विकास के संबंध में पूछा। उन्होंने उत्तर दिया ७० के दशक में पूर्वी तिमोर में केवल ७००, ००० लोग थे, पर उन्होंने हार न मानी। उन्होंने इंडोनेशियायी लोगों का उत्पीड़कों के रूप में, मुसलमानों के रूप में दानवीकरण नहीं किया इसलिए अब उनके बीच बहुत अच्छे संबंध हैं।
तवाकुल करमान ने जोश से समझाया कि शांति का अर्थ, गरीबी को समाप्त करना, महिलाओं और लड़कियों का संरक्षण लिए और स्वच्छ जल का प्रावधान है। शांति का अर्थ भ्रष्टाचार का अंत करना है। इसका अर्थ प्रत्येक को सूचना का अधिकार देना है। शांति का अर्थ सभी के लिए समान नागरिकता, गहरी समानता है। उन्होंने लोगों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे लोगों का समर्थन करने का आग्रह किया। सीरिया और इराक में संकट के बारे में, उन्होंने पूछा कि इस तरह की स्थिति क्यों है। क्योंकि हमने उन लोगों को नहीं सुना जो स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि आपको स्वतंत्रता के लिए एक मूल्य चुकाना होगा, पर परिणाम आएगा।
जब यलदा हाकिम ने पूछा कि क्या तानाशाहों के साथ समझौता होना चाहिए तो रामोस-होर्टा ने उत्तर दिया कि "उचित होगा कि वे परम पावन से पूछें।"
"एक संघर्ष में दोनों पक्षों में मनुष्य हैं और जिन समस्याओं का वे सामना कर रहे हैं वह अदूरदर्शिता का परिणाम है। इराक और सीरिया की कठिनाइयाँ अतीत की गलतियों के लक्षण हैं और उनका समाधान करना कठिन हो जाएगा। परन्तु ये सब मानवीय समस्याएँ हैं, जिन्हें एक मानवीय दृष्टिकोण से समाधान करने की आवश्यकता है, संवाद के माध्यम से। यदि हम जो हिंसा का प्रयोग कर रहे हैं, उनके साथ मिलकर बैठें और उनसे पूछें कि क्या वे वास्तव में अपने उद्देश्य पूरा कर रहे थे, तो मुझे लगता है कि हम देख पाएँगे कि हिंसा का प्रयोग समस्याओं के समाधान का गलत तरीका है। एक समाधान हमारी शिक्षा प्रणाली में सुधार लाना है, दूसरा अधिक महिलाओं को नेतृत्व का उत्तरदायित्व लेना है। यदि विश्व के लगभग २०० देशों में से अधिक का नेतृत्व महिलाएँ करें तो विश्व एक और अधिक शांतिपूर्ण स्थान होगा, है ना?"
रामोस-होर्टा ने जोड़ा कि अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए यह महत्वपूर्ण है कि दिमाग का उपयोग किया जाए। उन्होंने सलाह दी कि न तो अपनी स्वयं की क्षमताओं का अति प्राक्कलन किया जाए और न ही अपने प्रतिद्वंद्वी का अवप्राक्कलन। उन्होंने स्मरण किया कि आठ वर्ष का ईरान-इराक युद्ध किसी हस्तक्षेप के कारण समाप्त नहीं हुआ, अपितु इसलिए कि दोनों पक्ष थक चुके थे। उन्हें भय है कि यही सीरिया में होगा।
चूँकि परम पावन, इतालवी संसद के चैंबर के डिप्टी के अध्यक्ष महामहिम श्रीमती लौरा बोल्ड्रिनि के साथ एक बैठक के लिए निकल गए, सामाजिक सक्रियता के लिए इटली में शरणार्थी के मुद्दों के विषय में जागरूकता बढ़ाने के उनके कार्य के लिए तरेके ब्रहाने को शांति शिखर सम्मेलन पदक से सम्मानित किया गया।
श्रीमती बोल्ड्रिनि ने नोबल पुरस्कार विजेताओं को मध्याह्न भोज के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने उनका स्वागत किया और तवाकुल करमान ने कुछ प्रेरणात्मक शब्द प्रस्तुत िकए, और यह कहते हुए समापन किया कि अब समय आ गया है कि 'मानवता' नामक एक नई राष्ट्रीयता के बारे में विचार किया जाए।
वापस अपने होटल में परम पावन ने आर ए आइ टेलीविजन के फ्रांको डे मेर को एक साक्षात्कार दिया। उन्होंने पूछा कि क्या यह अजीब न था कि परम पावन पोप, परम पावन दलाई लामा से भेंट करने में असमर्थ थे।
परम पावन ने उत्तर दिया कि "मुझे थोड़ा दुख होता है, चूँकि मैंने कई अन्य नए पोप के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया है और मैं उनसे मिलने के लिए उत्सुक था। पर अभी के लिए यह सुविधाजनक नहीं है, जो समझा जा सकता है। मैं स्थिति को और अधिक असुविधाजनक नहीं बनाना चाहता। हम नैतिक मूल्यों, धार्मिक सद्भाव, शांति और गरीबों की राहत में एक साझी रुचि रखते हैं। मैं उनका प्रशंसक हूँ - बस इतना ही।"
डी मेर ने पूछा कि क्या चीनी दबाव में आकर दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने परम पावन को वीजा देने से इनकार कर मूल्यों से पहले व्यापार को सामने रखा था। परम पावन ने उत्तर दिया एक भौतिकवादी दृष्टिकोण के तहत धन को प्राथमिकता दी जाती है। पर धन आंतरिक शांति को सुनिश्चित नहीं करता। जब आर्चबिशप टूटू ने उन्हें अपने ८०वें जन्मदिन समारोह में आमंत्रित किया तो वह जाना चाहते थे। वह पुनः नेल्सन मंडेला को देखने के लिए भी उत्सुक थे पर वह वीजा प्राप्त करने में असमर्थ थे।
"सम्पूर्ण विश्व जानता है कि मैं तिब्बत के लिए स्वतंत्रता की माँग नहीं कर रहा। हम चीनी सरकार से पहले से ही संविधान में उल्लखित अपने कुछ अधिकार को लागू करने की माँग कर रहे हैं। हमें अपने पर्यावरण की रक्षा करते हुए, अपनी समृद्ध बौद्ध संस्कृति और अपनी भाषा को संरक्षित करने का अधिकार है।"
धनवानों और निर्धनों के बीच की खाई के विषय में परम पावन ने समझाया कि इसे पाटने के लिए धनवानों और निर्धनों दोनों को कार्य करना चाहिए। अमीरों को प्रोत्साहन देना चािहए और सुविधाएँ तथा अवसर प्रदान करना चाहिए, पर गरीबों को प्रयास करना चाहिए और अपने आत्मविश्वास का निर्माण करना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि तिब्बत को लेकर उन्हें सबसे अधिक क्या याद आता है, परम पावन ने कहा कि वे स्वयं को विश्व का नागरिक मानते हैं और जैसा कि एक तिब्बती कहावत है कि "जहाँ भी तुम दया का अनुभव करो उसे अपने घर के रूप समझ सकते हो।" उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता और अपनी मानव सृजनात्मकता का प्रयोग करने का अवसर बहुत महत्वपूर्ण था। अंत में, उन्होंने टिप्पणी की कि भारत में वर्षा काल के दौरान, वह कभी कभी ल्हासा में उस समय के सुखद वातावरण को याद करते हैं। अन्त में, डे मेर जानना चाहते थे कि परम पावन इटली की किस बात की सबसे अधिक सराहना करते हैं और उन्होंने कहाः
"मेरा पहली सोच यह है कि इटली के लोग तनावहीन लोग हैं, वे सब कुछ सरलता से लेना पसन्द करते हैं, वे तनाव से गुँथे नहीं हैं।"
शांति शिखर सम्मेलन कल जारी रहेगा।