बोस्टन, मैसाचुसेट्स, संयुक्त राज्य अमेरिका - ३१ अक्टूबर २०१४ - आज परम पावन दलाई का स्वागत अपने पुराने मित्रों रिचर्ड डेविडसन और माइंड एंड लाइफ सोसाइटी के अध्यक्ष, आर्थर ज़ाजोंक द्वारा किया गया, जब वे द्वितीय मननशील अध्ययन पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी (2nd इंटरनेशनल सिम्पोसियम फ़ार कांन्टेम्प्लेटिव स्टडीज़) (आइ एस सी एस) में भाग लेने के लिए पहुँचे। अपने परिचय में डॉ डेविडसन ने अपनी भावनाओं की बात की, जब वे सभागार मे १७०० श्रोताओं को देख रहे थे और स्मरण िकया कि २७ वर्ष पूर्व िकतने कम व्यक्ति उससे जुड़े थे जब वे डैनियल गोलमेन और फ्रांसिस्को वरेला ने चर्चाएँ प्रारंभ की, जिसने बाद में माइंड लाइफ इंस्टिट्यूट का रूप लिया। आज इसमें रुचि रखने वाले लोगों के समूह में २३ देशों के प्रतिनिधि उपस्थित थे, जो प्रथम आइ एस सी एस की बैठक से दुगुनी थी। परम पावन ने उत्तर दियाः
"मेरे आदरणीय, दीर्घ कालीन मित्रों और सहयोगियों, और आप सभी अन्य भाइयों और बहनों, मैं सदा से ही अपने आप को ७ अरब मनुष्यों, सामाजिक प्राणियों में से एक मानता हूँ जिनमें से प्रत्येक का सुखी जीवन समुदाय के अन्य सदस्यों पर निर्भर करता है। हम अत्यधिक रूप से अन्योन्याश्रित हैं। और उसके कारण मेरा िवश्वास है कि हम जिन कई मानव निर्मित समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उन्हें समाप्त किया जा सकता है। वे हमारे द्वारा विभाजित 'हम' और 'उन्हें', और दूसरों के जीवन के प्रति सम्मान की कमी के कारण उत्पन्न होते हैं।"
"मैं एक बौद्ध भिक्षु हूँ। जिस नालंदा परंपरा से मैं सम्बद्धित हूँ वह बुद्ध के निर्देशों का पालन करता है, कि आस्था और भक्ति के कारण उनकी शिक्षाअों को स्वीकार न िकया जाए बल्कि परीक्षण और प्रयोग के परिणाम के रूप में माना जाए।"
उन्होंने उल्लेख िकया कि दक्षिण भारत की पुनर्स्थापित तिब्बती विहारीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में विज्ञान का अध्ययन अब औपचारिक रूप से सम्मिलित किया गया है। यह प्रवृत्ति वैज्ञानिकों के साथ प्रारंभ हुई उनकी बैठकों का एक अंग है जो पारस्परिक रूप से समृद्धशाली रहा है। आज वैज्ञानिक निष्कर्ष प्रकट करते हैं कि एक शांत तथा सुखी चित्त की हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा:
"हम निर्वाण अथवा आगामी जीवनों की बात नहीं कर रहे, हम यहाँ और आज एक सुखी जीवन जीने की बात कर रहे हैं।"
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि किस तरह अतीत में वैज्ञानिक विकास जो भयानक शस्त्र प्रणालियों में कार्यरत थे, ने और भय को अधिक करने में योगदान दिया है। इस बीच कुछ लोगों ने जो धर्म के प्रति समर्पित हैं जो आंतरिक शांति और सद्भाव लाने के लिए माना जाता है, ने उपद्रव भड़काना बनाए रखा है। परिणामस्वरूप, इस पर पुनर्विचार आवश्यक है कि किस प्रकार एक अधिक स्वस्थ और सुखी विश्व का निर्माण किया जाए। आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में कम से कम १ अरब ऐसे हैं जिनके लिए धर्म कोई आकर्षण नहीं रखता, जो धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में रुचि ले सकते हैं। उन्होंने घोषणा की कि वह यह जानने के िलए उत्सुक थे कि विज्ञान और अध्यात्म के बीच का सहयोग क्या दे सकता है, उनके इस कथन का स्वागत करतल ध्वनि से हुआ।
डॉ अमीशी झा ने समझाया कि जब उन्होंने २००४ में यह निश्चय लिया कि वह अपने कार्य का केन्द्र उस ओर मोड़ेगी कि ध्यान से क्या सीखा जा सकता है, उनके सलाहकार और सहयोगी निरुत्साहित थे। उन्होंने कहा कि मात्र माइंड लाइफ इंस्टिट्यूट ने उसके निर्णय का समर्थन किया था। उन्होंने परम पावन से पूछा कि ऐसा क्या था कि उन्होंने एक समान रुख अपनाया और उसमें किस प्रकार परिवर्तन हुआ है।
उन्होंने उत्तर दिया कि विज्ञान के क्षेत्र में उनकी रुचि उनके बचपन से शुरू हुई। वे अपने खिलौनों के पुर्जे पुर्जे अलग करते, यह देखने के लिए कि वह किस तरह काम करते हैं। इसी तरह, एक जनरेटर को चलाए रखने के प्रयास में जो एक पुरानी फिल्म प्रोजेक्टर को संचालित करती थी, ने उन्हें बिजली के सिद्धांतों के बारे में बहुत कुछ सिखाया। १९५४ -५५ में चीन में उन्होंने कई कारखानों, पन बिजली संयंत्र और स्टील के कामों का दौरा किया। इसके उत्तर में कि किस तरह चीजें परिवर्तित हो गई हैं, उन्होंने कहा कि एक बौद्ध अभ्यासी के रूप में उनका उद्देश्य दूसरों की सेवा करने और उनकी पीड़ा को कम करने के लिए प्रयास करना है। बहुत लोग इससे अनजान बने हैं कि सुख का स्रोत हमारे अंदर है। वे सहमत हुए कि वैज्ञानिक निष्कर्षों के कारण बौद्ध विचार के कुछ पक्ष और अधिक वास्तविक हुए हैं।
रिची डेविडसन पूछा ने पूछा कि क्या कोई प्रश्न बचे हैं जिनके संबंध में परम पावन को लगता है कि उनकी उपेक्षा की जा रही है। परम पावन ने उत्तर दिया कि वह यह जानने में रुचि रखते हैं कि विज्ञान संवेदी और संज्ञानात्मक अनुभव के बीच अंतर के बारे में क्या बता पाएगा। उन्होंने टिप्पणी की, कि हर कोई अपने करुणा के अभ्यास को बढ़ाने के लिए बौद्ध तकनीकों को अपना सकता है किन्तु शून्यता पर चर्चा बौद्ध मामला है।
"दूसरी ओर," उन्होंने कहा, "यदि हम सब एक दूसरे को एक मानव परिवार के सदस्यों के रूप में देखें तो झगड़ा करने और एक दूसरे की हत्या का कोई आधार नहीं होगा।"
जब डॉ डेविडसन ने सुझाया कि बौद्ध धर्म तथा विज्ञान की बीच की सीमाएँ धुंधली हो रही थीं, परम पावन ने भारतीय बौद्ध साहित्य के ३०० संस्करणों की विषय सामग्री का वर्णन किया जिनका अनुवाद तिब्बती में तीन वर्गों में हुआ हैः बौद्ध विज्ञान, दर्शन और धर्म। उन्होंने कहा कि दर्शन और विज्ञान को समझने के विगत २०-३० वर्षों के प्रयास ने दृश्य तथा वास्तविकता के अंतर को पाटने का प्रयास किया था। आधुनिक विज्ञान भौतिक वस्तुओं के विषय में बहुत कुछ जानता है, उदाहरण के िलए अनित्यता तथा आणविक स्तर पर निरंतर हो रहे क्षणिक परिवर्तन। प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान, जिसमें बौद्ध मनोविज्ञान भी शामिल है, में चित्त और भावनाओं के कार्य की एक व्यापक समझ है।
डॉ अमीशी झा ने धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के बारे में पूछा और कहा कि इनका परीक्षण के इन साझा क्षेत्रों के साथ किस प्रकार का संबंध है। परम पावन ने उत्तर दिया:
"सबसे प्रथम, सुख का परम स्रोत यहाँ हृदय में है। इसे प्राप्त करने के लिए हमें चित्त और भावनाओं के ज्ञान की आवश्यकता है। धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का एक पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए हमें चित्त के एक मानचित्र की आवश्यकता है। शारीरिक स्वास्थ्य रक्षा के अतिरिक्त हमें मानसिक स्वास्थ्य रक्षा की आवश्यकता है। हमें यह जानने की आवश्यकता है कि किस प्रकार की भावनाएँ किस प्रकार के अनुभवों को जन्म देती हैं। क्रोध भय और घृणा, हमें असहज बनाती हैं, जबकि अन्य भावनाएँ आंतरिक शक्ति लाती हैं। यह प्रतिस्थापित करने के िलए कि मानसिक स्वास्थ्य रक्षा में क्या शामिल किया जाना चाहिए, शैक्षणिक अध्ययन की आवश्यकता हो सकती है। उदाहरणार्थ हमने देखा है कि आंतरिक सुख हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य के िलए अच्छा है, जो सभी ७ अरब मनुष्यों के िलए लाभकर हो सकता है। इसमें स्वैच्छिक मानसिक परिवर्तन शामिल है।"
डॉ झा ने ध्यानाकर्षित किया कि कई लोग केवल कार्यस्थल पर ही धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का सामना करते हैं। परम पावन ने टिप्पणी की, कि चित्त की शांति से संबंधित कोई भी मानवीय गतिविधि अंततः मानव कल्याण से संबंधित है। रिची डेविडसन ने जोड़ा कि वैज्ञानिक सौहार्दता और करुणा को मापने में सक्षम होना चाहेंगे, पर अभी तक ऐसा करने का उपाय विकसित नहीं किया है। परम पावन सहमति व्यक्त की कि मापना कठिन है पर कहा कि मानसिक विकास के व्यवहार लक्षण की चर्चा है जैसा कि धुएँ को देखकर आग का अनुमान करते हैं या पानी की सतह पर छोटी सी लहर को देख मछली के होने का अनुमान लगाते हैं। चूँकि आंतरिक शक्ति प्रायः कठिनाइयों के उत्तर में ही प्रकट होती है, तो उन्होंने पूछा, कि क्या इसका अर्थ यह है कि जिन लोगों का वे परीक्षण कर रहे हैं, उनके िलए कठिनाइयाँ खड़ी की जाएँ। उन्होंने ठिठोली करते हुए कहा कि एक सरल उपाय अतीन्द्रिय दृष्टि का विकास करना होगा।
परम पावन ने उल्लेख िकया कि कुछ आत्म मूल्यांकन हो सकता है।
"मेरे अपने संबंध में, यदि कुछ वस्तुओं के प्रति मेरी आज की प्रतिक्रया को ३०-४० वर्ष पूर्व की प्रतिक्रिया से तुलना करूँ तो उसमें बहुत परिवर्तन हुआ है। कुछ एक दो वर्ष पूर्व पहले बंगलौर में एक भारतीय अभ्यासी के साथ हुई एक चर्चा में, हम सहमत हुए कि हममें नैतिकता, एकाग्रता और प्रज्ञा आम थी। हममें जो अंतर था वह यह, कि उसका अभ्यास आत्मा की भावना पर आधारित था, जबकि मेरा बौद्धाभ्यास अनात्मन या किसी भी तरह के आत्मा के अभाव पर आधारित था, पर यह हमारा अपना अपना विचार है।"
डॉ झा ने सूचित किया कि पूर्व संध्या को जलवायु परिवर्तन को लेकर व्यापक चर्चा हुई थी और परम पावन से उस पर टिप्पणी करने को कहा। उन्होंने कहा कि वह नहीं जानते कि वह क्या कहें पर बुद्ध के जीवन में वृक्षों की भूमिका का उल्लेख किया। उनका जन्म एक वृक्ष के नीचे हुआ था, उन्हें एक वृक्ष के नीचे प्रबुद्धता प्राप्त हुई है और एक वृक्ष के नीचे उनका परिनिर्वाण हुआ। भिक्षु समूह एक एकांतवास से दूसरे पर जाते और आने वाले समूह का उत्तरदायित्व उनके पूर्ववर्तियों द्वारा लगाए गए पौधों को पानी देना और उनकी देख रेख करना था। पानी की आपूर्ति को प्रदूषित न करने कि विषय में भी स्पष्ट िनर्देश थे। इन सभी बातों का एक पर्यावरणीय पक्ष है।
"यह हमारा एकमात्र घर है, और यदि हम इसका नाश कर देंगे तो हम क्या करेंगे? हम कहाँ जा सकते हैं?"
सत्र का समापन परम पावन को एक उपहार की प्रस्तुति के साथ संपन्न हुआ, जो थॉमस लेयर्ड द्वारा निर्मित तिब्बत में भित्ति चित्र की प्रतिलिपि, जिसका लेखन कार्य रॉबर्ट थर्मन ने किया पर एक व्यापक पुस्तक की पहली प्रति थी।
मध्याह्न में, क्रेसगे सभागार, एम आई टी में, परम पावन ने, दलाई लामा सेंटर फ़ार एथिक्स एंड ट्रांसफरमेटिव वेल्यूस द्वारा आयोजित 'एक बेहतर िवश्व के लिए परिवर्तन लाने वाले' विषय के अंतर्गत दो पैनलों में भाग लिया। प्रथम पैनल में एक परिवर्तित हो रहे विश्व के लिए समान समाधान की जांच करते हुए जलवायु परिवर्तन पर विशेष रूप ध्यान केन्द्रित किया गया। संचालिका डेबोरा एंकोना ने कहा कि दो वर्ष पूर्व इसी प्रश्न पर उसी स्थान पर चर्चा हुई थी, और यह कहते हुए समापन किया कि हममें से प्रत्येक को नेतृत्व लेने की आवश्यकता है।
"सरकारें वे नहीं करतीं जो आवश्यक है और हम पर्याप्त नहीं करते।"
जॉन स्टरमेन ने आँकड़ों को देखा और ज़ोर दिया कि २१०० अधिक दूर नहीं है। यदि हम आपदा को रोकना चाहते हैं तो हमें अभी क्रियाशील होना होगा। रेबेका हेंडरसन ऊर्जा के अधिक कुशल उपयोग की शर्तों और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के गिरने की लागत की ओर उठाए जा रहे कदम को लेकर आशावादी थीं। उन्होंने समाप्त करते हुए कहा कि यदि हम अंतर लाने का निश्चय कर लें तो कर सकते हैं। मार्शल गांज़ ने कहा कि इसके लिए हाथों, मस्तिष्क तथा हृदय के नेतृत्व की आवश्यकता होगी। जो आवश्यक है वह नैतिक तात्कालिकता की भावना है जैसा रोजा पार्क्स नागरिक अधिकार संघर्ष में दिखाया।
परम पावन ने समस्या के महत्व की पुष्टि की, यह टिप्पणी करते हुए कि ऐसा नहीं है कि यह केवल एक या दो महाद्वीपों को प्रभावित करता है। यह सभी ७ अरब मनुष्यंो से जुड़ा है। उन्होंने कहा:
"मेरी चिंता समूचे विश्व को लेकर है। मैं मात्र एक बौद्ध छात्र हूँ, परन्तु मेरे अभ्यास का बल एक परोपकारिता है जिसे कार्य रूप में परिणित किया जाना चाहिए। सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए इस प्रकार की बैठकों का और अधिक आयोजन किया जाना चाहिए। कई गलत व्यवहार अज्ञानता का परिणाम हैं। जनता को न केवल यह सूचित किया जाना चाहिए कि समस्या क्या है, पर यह भी कि इस संबंध में क्या किया जा सकता है।"
मार्शल गांज़ ने बल दिया कि अहिंसा कारगर होती है जैसा कि महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने दिखाया। रेबेका हेंडरसन ने एक वाणिज्यिक स्की कंपनी की सूचना दी जिसने CO2 के उत्सर्जन पर सफल कानूनी कार्रवाई की। परिवर्तन के विरोध को स्पष्ट करते हुए गांज़ ने न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक समाचार का उदाहरण दिया जिसमें एक जीवाश्म ईंधन निगम के प्रवक्ता ने खबर दी कि
"आप, युवा पीढ़ी के सदस्य, भविष्य के लिए एकमात्र आशा हैं। कृपया जिस पर हमने बातें की हैं उस पर गंभीरता से सोचें। वस्तुओं को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में एक दीर्घकालीन दृष्टिकोण रखकर देखें। हम अतीत को नहीं बदल सकते, पर आप भविष्य को आकार दे सकते हैं।