लेह, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर, भारत - १५ जुलाई २०१४ - आज प्रातः शिवाछेल प्रवचन मंडप पहुँचने पर परम पावन दलाई लामा सीधे मंडल महल के पूर्वी द्वार पर गए तथा रेत मंडल का सर्वेक्षण किया। उन्होंने दृष्टि ऊपर कर पश्चिमी द्वार के पीछे लटक रहे कालचक्र की भव्य पिपली थंका को देखकर सम्मान में सिर हिलाया। फिर वे उधर चल कर गए, जहाँ नमज्ञल विहार के भिक्षु कालचक्र अनुष्ठान का पाठ कर रहे थे, मुस्कराए और मंडप के समक्ष से बाहर निकले। उनके समक्ष कालचक्र अभिषेक के सफल आयोजन में सहायता प्रदान करने वाले ९००० स्वयंसेवकों के सदस्य एकत्रित थे। उन्होंने उन्हें संबोधित किया:
"मैं जानता हूँ कि आप इस कार्यक्रम के लिए महीनों से तैयारी कर रहे हैं। सम्मिलित होने वाले दलों में मुख्य समूह लद्दाखियों का था और आपने जिस प्रेम से उनका स्वागत किया, मैं उसके लिए आप को धन्यवाद देना चाहता हूँ। आप सभी ने कड़ी मेहनत की है, पैसे या नाम के लिए नहीं और न ही अपने स्वयं के मनोरंजन के लिए। आपने बहुत पुण्य संचित किया है और बौद्ध परंपरा में पुण्य संभार तथा नकारात्मकता दूर करने के संदर्भ में उसका अंत में समर्पण करना महत्वपूर्ण है। और तो और, ऐसे समय में जब धर्म का ह्रास हो रहा हो, यदि आप उदारता से कार्य करें, जैसा आप सब ने किया है, तो आप उस समय और अधिक पुण्य का संभार करते हैं।"
उन्होंने कहा कि २०वीं सदी के अंत और अब २१वीं में, उन देशों के कई लोग जहाँ बौद्ध धर्म परंपरागत नहीं था, दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इस कारण लगभग ६००० विदेशी अतिथि थे। उन्होंने कहा कि वे यह छाप लेकर वापस जा सकते हैं कि लद्दाख एक सूखी, धूल भरी जगह है पर वे सभी खुश थे और सुख भरी स्मृतियों के साथ घर लौटेंगे।
"उस के लिए भी, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।"
शिवाछेल से गाड़ी में एक छोटी यात्रा परम पावन को चोगलमसर तिब्बती आवास के रूथोग विहार लेकर आई, जो कि सेरा जे की एक शाखा है और जिसका हाल ही में विस्तार किया गया है। शरपा छोजे रिनपोछे और विहाराध्यक्ष द्वारा आगमन पर उनका स्वागत किया गया। नए शास्त्रार्थ के सभागार के द्वार पर फीतों को इस प्रकार रखा गया था कि जब परम पावन ने बीच के एक को खींचा तो अन्य उद्घाटन को दर्शाते हुए दूर गिर गए और दरवाजों को धक्के से खोल दिया गया।
सबके बैठ जाने के उपरांत एकत्रित भिक्षुओं ने श्री नालंदा के सत्रह महापंडितों की स्तुति का पाठ किया।
परम पावन ने कहा, "अब आप ने इस रूथोग गोमपा का विस्तार किया है, इसका उद्देश्य आम लोगों को धर्म की शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करने का होना चाहिए।"
सिंगापुर के दानदाताओं के एक समूह को, जिन्होंने परियोजना को समर्थन दिया था, संबोधित करते हुए उन्होंने कहा:
"मैं आप लोगों को इस विहार की सहायता करने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। यह अत्यंत अच्छा होगा यदि यह एक अध्ययन केंद्र बन सके। इन दिनों मैं हर तिब्बती विहार, जहाँ मैं जाता हूँ, से अनुरोध करता हूँ कि वह मात्र अनुष्ठान तथा प्रार्थना करने का स्थान न रहकर शिक्षण का एक केंद्र बने। मैं उन्हें ऐसे स्थानों के रूप में देखना चाहता हूँ जहाँ नालंदा परम्परा को आगे बढ़ाया जाए, जहाँ लोग यह सीख सकें कि क्लेशों से कैसे निपटा जाए।"
"जहाँ तक भौतिक विकास का संबंध है, अधिकतर समस्याएँ जिनका सामना हम कर रहे हैं, हम स्वयं उनका निर्माण करते हैं, अधिकांशतः नैतिक सिद्धांतों, दूसरों के जीवन और अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना के अभाव में। हम मात्र प्रार्थना करते हुए इसे परिवर्तित नहीं कर सकते, हमें अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की आवश्यकता है। मेरे वैज्ञानिक दोस्तों में से कई मानवीय मूल्यों के प्रति इस तरह के लौटने को स्वीकार करते हैं। चूँकि हम सामाजिक प्राणी हैं, हमें दूसरों की सेवा करना सीखने की आवश्यकता है। हमें प्रेम और करुणा की आवश्यकता है, यह सोचते हुए कि प्रेम और करुणा केवल बौद्धों के लिए ही नहीं बनी है। हमें जो करना है वह यह कि, बौद्ध विचारों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए कि वह हर किसी के लिए लाभकारी हो। हमारा लक्ष्य होना चाहिए, यह समझाना कि चित्त और भावनाएँ किस प्रकार कार्य करती हैं ताकि सब समझ सकें।"
इसके पश्चात परम पावन का लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद्, लेह (एलएएचडीसी), में स्वागत किया गया और उन्हें परिषद कक्ष में ले जाया गया। मुख्य कार्यकारी पार्षद, रिगज़िन स्पलबर ने कहा वह एल ए एच डी सी के १८ वर्षों के अस्तित्व का एक संक्षिप्त सिंहावलोकन प्रस्तुत करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लद्दाख सामरिक महत्व का एक क्षेत्र है जिसके कारण लद्दाखी जीवन के मार्ग में कई उतार चढ़ाव आए हैं। जीवन जीने के उस ढंग के केन्द्र में संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग तथा पारंपरिक मूल्यों की रक्षा करने की एक प्रबल इच्छा शामिल है और साथ ही आधुनिकता को स्वीकार करना भी। निर्णय लेने में अधिक से अधिक स्थानीय भूमिका के लिए १९९५ में हुए आंदोलन के बाद एल ए एच डी सी की स्थापना हुई। परम पावन ने उत्तर दिया:
"आप सभी से मिलने के िलए प्राप्त अवसर के लिए धन्यवाद। अपनी गतिविधियों के विवरण के लिए भी बहुत धन्यवाद। आप ने कठिनाइयों का सामना किया है पर कुल मिलाकर उनका मुकाबला किया है। मेरा करने के लिए कोई विशेष योगदान नहीं है, क्योंकि मैं यहाँ मात्र एक अतिथि हूँ, पर कई वर्षों के लिए हम निकट मित्र रहे हैं। आपने जिस प्रकार कठिनाइयों और संकटों पर विजय पाई है उसके िलए मैं आपको साधुवाद देता हूँ।"
"भविष्य के लिए आपकी योजनाएँ अच्छी हैं। अब कार्यान्वयन स्थान पर है। आप मेरी अपेक्षा बेहतर जानते हैं कि यहाँ आपकी आवश्यकताएँ क्या हैं। पर एक बात जिसके विषय में मैं आपसे बात करना चाहूँगा, वह शिक्षा है। मुझे विश्व भर के देशों में विश्वविद्यालयों का दौरा करने का अवसर प्राप्त हुआ है। कई वैज्ञानिक, शिक्षाविद और विचारक इस बात से सहमत हैं कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणालियाँ अपर्याप्त हैं। आंतरिक मूल्यों और नैतिकता के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जाता। मैं लोगों से कहता हूँ कि हमें शिक्षा की एक समग्र प्रणाली की आवश्यकता है, जिसमें नैतिकता में प्रशिक्षण शामिल हो, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता। भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है, सभी धार्मिक परम्पराओं और यहाँ तक कि उन व्यक्तियों के लिए भी जो किसी भी धर्म को नहीं मानते के प्रति सम्मान। धर्मनिरपेक्ष नैतिकता आधुनिक समाज के लिए उपयुक्त है।"
परम पावन ने कहा, कई जिनसे उन्होंने बात की है, वे इस बात से सहमत हैं पर नहीं जानते कि धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को किस प्रकार लागू किया जाए। परिणामतः कुछ सम्बद्धित लोग ऐसे पाठ्यक्रम को विकसित करने में लगे हैं, जिन्हें एक या दो स्कूलों में अग्रिम रूप से संचालित किया जाए। समाज के विकास के लिए सबसे अच्छा उपाय अपने सदस्यों के अधिकारों और आकांक्षाओं को ध्यान में रखना है। उन्होंने कहा कि यदि आप दूसरों का शोषण करें और दूसरों को धमकाएँ तो यह आपके लिए सहायक न होगा। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक बताते हैं कि निरंतर भय और क्रोध हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट करता है, जबकि सौहार्दता हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छी है।
"मैं ईश्वर, अल्लाह या बुद्ध के बारे में बात नहीं कर रहा, पर एक बेहतर समाज के विकास के बारे में बोल रहा हूँ जो सब कुछ शिक्षा के इर्द गिर्द घूमता है। हमें एक मानव परिवार से संबंधित होने के बारे में सोचने की आवश्यकता है। यदि हम ऐसा कर सकें तो एक अवसर है कि २१वीं सदी के अंत तक हम एक और सुखी, अधिक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण कर सकें। यह निर्भर करता है कि हम क्या करते हैं, इस पर नहीं कि हम किसकी प्रार्थना कर रहे हैं। आज जीवित ७ अरब मनुष्य हमारे भाई और बहनें हैं, इसलिए हमें एक उन्मुक्त, करुणाशील सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण करने के लिए विश्वास और आत्म - विश्वास के आधार पर सहयोग की आवश्यकता है। यहाँ लद्दाख में आप लंबे समय से सद्भाव से रह रहे हैं, इसे बनाए रखने के लिए आपको कड़ी मेहनत करनी चाहिए।"
परम पावन को मध्याह्न के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया जिस दौरान पार्षदों के साथ बातचीत जारी रही। जह वह गाड़ी से अपने निवास वापस लौटे, तो हाथों में खाता, पुष्प या अगरबत्ती और चेहरों पर मुस्कान लिए, उन्हें देखने के लिए लोग रास्ते पर कतारबद्ध खड़े थे।