मार्च २४, २०१४ - नई दिल्ली, भारत, २३ मार्च २०१४ (डे एंड नाइट न्यूज़) - यदि भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, कुछ और वर्ष जीते, तो देश के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकते थे, तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने आज यहाँ कहा ।
एक हजार वर्ष की इस परंपरा के मूल्यों का बड़े साहस से उनके द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया। "वे एक अद्भुत, दृढ़ व्यक्ति थे, "दलाई लामा ने शास्त्री को याद करते हुए कहा। शास्त्री के साथ अपनी भेंट का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा, "मैं शास्त्री के प्रशंसकों में से एक हूँ। मैं उनसे उस समय मिला जब वे प्रधानमंत्री थे। वे वास्तव में एक महान व्यक्ति थे। उनके शरीर और उनके चित्त के बीच एक बड़ा विरोधाभास था। जहाँ तक मैंने उन्हें देखा वे अत्यंत करुणाशील व्यक्ति थे।" यह पुस्तक जो उनके बाल्यकाल, वयस्क वर्षों तथा शास्त्री के सार्वजनिक जीवन का स्मरण करती है, दलाई लामा ने कहा कि, "यह छोटी पुस्तक हर किसी को जीवन की महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ सिखा सकती हैं।" अनिल शास्त्री, जिन्होंने पुस्तक में अपने पिता के जीवन से से प्रेरणात्मक प्रकरण जोड़े हैं, ने कहा कि पूर्व प्रधान मंत्री ने एक ऐसी धरोहर छोड़ी है जिसका समान मिलना कठिन है। "शास्त्रीजी की कहानी ऐसी है जिसे कई बहु स्तरों पर कहने की आवश्यकता है। उन्होंने ऐसी विरासत पीछे छोड़ी है जिसके समान मिलना कठिन है। जब यह पुस्तक भारत में लाखों लोगों द्वारा पढ़ी जाएगी, तो मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि वह उन्हें प्रेरणा प्रदान करेगी।" अनिल शास्त्री ने कहा। शिक्षाविद और स्तंभकार पवन चौधरी ने विषय को 'मूल आम आदमी' कहकर वर्णित किया जो अकृत्रिम जीवन जीते हुए अपनी विनम्र पृष्ठभूमि के बावजूद और बिना किसी नियम काे उल्लंघन के प्रधान मंत्री के उच्च स्तर तक पहुँचे। "मैंने शास्री जी के उन गुणों को चिह्नांकित किया है जिनके कारण वे ऐसे नेता बने, जिन्होंने हमें गौरव व सम्मान के साथ जीने की शिक्षा दी।" चौधरी ने आगे कहा।