बर्मिंघम, अलबामा, संयुक्त राज्य अमेरिका - २५ अक्टूबर २०१४ - बर्मिंघम में अलबामा विश्वविद्यालय (यू ए बी) ने बर्मिंघम के मानवाधिकार सप्ताह के भाग के रूप न्यूरोप्लास्टिसिटी तथा उपचार शीर्षक से एक वैज्ञानिक संगोष्ठी में भाग लेने के िलए परम पावन दलाई लामा को आमंत्रित किया था। आज प्रातः जब वे पहुँचे तो विश्वविद्यालय के बाहर लॉन पर एकत्रित लगभग ३०० तिब्बतियों ने झंडे, बैनर, संगीत और नृत्य के साथ उनका स्वागत किया। भवन में प्रवेश करने से पूर्व उन्होंने उन तक चलकर उनका अभिनन्दन िकया तथा उनकी शुभकामनाएँ स्वीकार की।
विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष रे वाट्स ने परम पावन का परिचय पैनल के अन्य सदस्यों, एडवर्ड टायुब, माइकल मर्ज़ेनिच तथा नॉर्मन डोइड्ज, जिनके िलए उनकी आशा थी कि वे वह ज्ञान प्रकट करेंगे जो सकारात्मक रूप से समुदायों को बदल देगा, से करवाया। नॉर्मन डोइड्ज, जिन्होंने 'द ब्रेन देट चेंजस इटसेल्फ' लिखा है, ने न्यूरोप्लास्टिसिटी शब्द को समझाया। न्यूरो भाग का संबंध मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र से है, जबकि प्लास्टिसिटी (लचीलेपन) उसकी परिवर्तनशील क्षमता को दर्शाता है। यह गुण गंभीर मस्तिष्क की क्षति के बाद भी उसमें सुधार और स्वास्थ्य लाभ की संभावनाओं को स्पष्ट करता है।
डॉ डोइड्ज ने कहा कि पिछले ४०० वर्षों से ऐसी मान्यता थी कि मस्तिष्क एक मशीन की तरह नियत था। डेसकार्टेस के समय मस्तिष्क की तुलना एक हाइड्रोलिक पंप से की गई थी। एक बार ऐसा विचार था कि मस्तिष्क के कनेक्शन बिजली थे और ऐसा सोचा जाता था कि यह मस्तिष्क 'हार्ड वायर्ड' था। जब मस्तिष्क की तुलना एक कंप्यूटर से की गई तो उसे हार्डवेयर के रूप में माना गया जबकि विचारों को सॉफ्टवेयर की तरह माना गया। इन सभी स्पष्टीकरणों में यह विचार छूट गया कि मस्तिष्क प्लास्टिक (लचीला) की तरह था। यह मान लिया गया कि चित्त वही है जो मस्तिष्क करता है, एक प्रकार की शारीरिक प्रक्रिया, यद्यपि इसे मापा नहीं जा सकता। इसलिए यह खोज एक झटके के रूप में आई कि विचार मस्तिष्क को परिवर्तित कर सकता है।
पैनल के सदस्यों का परिचय कराते हुए उन्होंने कहा कि माइकल मर्ज़ेनिच के निरंतर कार्य ने वैज्ञानिकों को राजी करवाया कि मस्तिष्क में परिवर्तन होता है। मस्तिष्क सदा से ही प्लास्टिक (लचीला) रहा है, पर उनके कार्य ने लोगों को आश्वस्त िकया कि ऐसा ही था। यह बात कि पहले लोगों ने उन पर िवश्वास नहीं िकया पर अंततः लोग उसे लेकर आश्वस्त थे, उनके साहस तथा सत्य के प्रति एक सम्मान है। एडवर्ड टायुब ने पहली बार िदखाया कि महत्वपूर्ण परिस्थितियों के परिणाम जैसे पक्षाघात और मल्टिपल स्क्लेरोसिस को न्यूरोप्लास्टिक हस्तक्षेप से परिवर्तित किया जा सकता है। यहाँ अलबामा में पक्षाघात के परिणाम स्वरूप होने वाली मोटर की समस्या से निपटने के लिए विश्व की सर्वश्रेष्ठ सुविधाएँ उपलब्ध हैं। डॉ डोइड्ज ने कहा कि उनके ध्यान में कई अन्य विषय होने के बावजूद, परम पावन ने चित्त के विषय और चित्त की अपना स्वयं का अध्ययन करने की क्षमता, जिसके िलए वे कहते हैं कि ऐसी समझ जो महान तथा अच्छी है, को निरंतर बनाए रखा है।
पहली टिप्पणी करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने कहा:
"यह मेरा अलबामा आने का प्रथम अवसर है और यह मेरे िलए सम्मान की बात है कि मैं इसका प्रारंभ महान वैज्ञानिकों के साथ चित्त तथा मस्तिष्क की चर्चा के साथ कर रहा हूँ। मैं सदा से ही उत्सुक रहा हूँ। जब भी मैं कुछ नई वस्तु देखता हूँ, मैं उसके विषय में क्यों और कैसे जानना चाहता हूँ।"
"मेरी माँ अत्यंत दयालु थी। जब मैं बड़ा हो रहा था तो मेरे मस्तिष्क को किसी भी प्रकार के भय अथवा चिन्ता का सामना नहीं करना पड़ा, इसे पूर्ण रूप से विकसित होने का अवसर मिला। इसी कारण मैं अन्य वस्तुओं को जानने िलए इसका उपयोग कर सकता हूँ। यदि मैं भय और चिंता के वातावरण में बड़ा हुआ होता तो मेरा दिमाग संभवतः इतनी अच्छी तरह से विकसित नहीं हो पाता। क्योंकि मेरे नाम के साथ दलाई लामा लगा है तो मैं अत्यंत शीघ्र ही एक ऐसी प्रणाली में अध्ययन करने लगा जो तार्किक दृष्टिकोण को अपनाने पर महत्व देती है। हम बुद्ध की सलाह, कि िकसी भी वस्तु को सतही स्तर पर ग्रहण मत करो अपितु परीक्षण तथा प्रयोग करो, का पालन करते हुए तर्क का उपयोग करते हैं।"
उन्होंने समझाया कि किस प्रकार जब वे बच्चे थे तो वे अपने खिलौनों को तोड़ मोड़ कर देखते कि वह कैसे काम करता है। एक पुरानी फिल्म प्रोजेक्टर और अपने छोटे जनरेटर को चलाते हुए उन्होंने बिजली के सिद्धांत सीखे। एक सीमा तक ग्रंथों के अध्ययन तथा उन्हें कंठस्थ करने के बजाय उन्हें इस तरह की गतिविधियाँ अधिक अच्छी लगतीं। १९५९ में भारत आने के बाद उन्हें वैज्ञानिकों से मिलने का और अधिक अवसर मिला और फिर ३० वर्ष से भी अधिक पहले उन्होंने उनके साथ ब्रह्माण्ड विज्ञान, भौतिक विज्ञान, तंत्रिका विज्ञान और मनोविज्ञान के विषयों पर गंभीरता से चर्चा करने के िलए मिलना प्रारंभ किया। उन्होंने पुष्टि की कि प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान, जिसमें बौद्ध मनोविज्ञान भी सम्मिलित है, और आधुनिक विज्ञान के बीच विनिमय पारस्परिक रूप से लाभकर हुआ है।
माइकल मर्ज़ेनिच ने परम पावन से कहा कि वे उनके बीच होकर बहुत खुश हैं और वे उनके कार्य के प्रशंसक हैं। उन्होंने समझाया कि मस्तिष्क की प्लास्टिसिटी (लचीलापन) विश्व के विभिन्न प्रारूप बनाने के आधार हैं। मस्तिष्क बड़े स्तर पर विशेषज्ञ है क्योंकि वह स्वयं को परिवर्तित करता है, शारीरिक प्रकार्य में तथा रासायनिक रूप से। पढ़ने से मस्तिष्क में परिवर्तन होता है और एक न पढ़ने वाले को एक पढ़ने वाला मस्तिष्क देना अपेक्षाकृत सरल है। प्रमुख बात है शब्द ध्वनि को शब्दों में ढालना। मस्तिष्क संबंध बनाने के लिए बनाया गया है। परन्तु प्लास्टिसिटी (लचीलापन) का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह प्रतिवर्ती भी है। इसे किसी भी क्षमता में सुधार लाने अथवा उसे गिराने के िलए प्रयोग में लाया जा सकता है। इस प्रकार प्लास्टिसिटी (लचीलापन) दो तरह की प्रक्रिया है।
उन्होंने पूछा कि आप किस तरह एक पुराने अनुभवी मस्तिष्क को एक अधिक सक्षम युवा प्रतीत होने वाले मस्तिष्क में बदल सकते हैं - और उत्तर िदया, प्रशिक्षण द्वारा। उन्होंने मानवता के सुधार के प्रयास में अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए कई लक्ष्यों का उल्लेख किया, जिसमें स्वलीनता, सीखने की क्षीणता, लत, विखंडितमनस्कता, द्विध्रुवी विकार और अवसाद शामिल हैं।
एडवर्ड टायुब ने भी परम पावन को यह बताते हुए प्रारंभ किया कि उनके लिए परम पावन के साथ समय बिताना एक विशेषाधिकार और सम्मान था। उन्होंने कंस्ट्रेंट -इन्ड्यूस्ड मूवमेंट उपचार या सी आइ उपचार पर बात की, जो पुनर्वास उपचार का एक समूह है, जो तंत्रिका तंत्र की प्लास्टिसिटी (लचीलापन) का उपयोग करता है। १९८० से पूर्व ऐसा दृष्टिकोण था कि वह सख्त तारों वाला था अतः किसी चोट के पश्चात स्वयं को ठीक करने में असमर्थ था। परन्तु हाल के वर्षों में यह स्थापित किया जा चुका है कि मस्तिष्क बहुत प्लास्टिक (लचीला) है और वह प्लास्टिसिटी (लचीलापन) जीवन भर बनी रहती है।
इसके अतिरिक्त, १९९० तक यह प्रचलित धारणा थी कि मोटर प्रकार्य से स्वास्थ्य लाभ मस्तिष्क की चोट के बाद पहले वर्ष में हो जाती है। परिणामतः कइयों का उपचार ही नहीं किया गया। वास्तव में मस्तिष्क का पुनः प्रारूपण किया जा सकता है। सी आई चिकित्सा में अप्रभावित अंग का संयम और प्रभावित अंग का गहन उपयोग शामिल है। उदाहरण के लिए, रोगी व्यायाम के िलए एक प्रभावित हाथ अथवा बाहों का उपयोग कर सकता है जैसे शंकुओं को एक के ऊपर एक रखना या एक पेनसिल उठाना। मस्तिष्क के प्रशिक्षण से इसमें सुधार लाया जा सकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि रोगी में सुधार होता रहे पुरस्कार और प्रोत्साहन का उपयोग किया जाता है। पुनर्वास एक सक्रिय प्रक्रिया हो जाती है और रोगी अपने स्वयं के सुधार में एक सक्रिय कर्ता बन जाता या जाती है।
परम पावन ने उपचार में स्वैच्छिक पहलू के महत्व का तथा आनन्द की सकारात्मक भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने टिप्पणी की कि हम क्रोध और ईर्ष्या जैसे नकारात्मक भावनाओं से आक्रांत हैं और उनका सोचना था कि क्या उन पर नियंत्रण लाने के तकनीक खोजे जा सकते हैं। मर्ज़ेनिच ने सुझाव दिया कि ऐसी तकनीक पहले से ही है और उसे ध्यान कहते हैं।
डॉ डोइड्ज ने यह जोड़ते हुए हस्तक्षेप किया कि यद्यपि अब तक वे मस्तिष्क के बारे में बात कर रहे थे, परन्तु यह पाया गया है कि प्रतिरक्षा और नर्वस सिस्टम (तांत्रिक प्रणाली) उसी प्रणाली का एक अंग हैं। डॉ टायुब ने ध्यानाकर्षित किया कि ऐसे निष्कर्ष देखे गए हैं कि ट्रान्सेंडैंटल ध्यान (टी एम) के उपयोग के साथ स्वास्थ्य सेवा पर निर्भरता में कमी, दीर्घायु में वृद्धि हुई है तथा दिल के दौरों की घटनाओं में कमी आई है।
परम पावन ने दर्शकों से प्रश्न आमंत्रित किए और उनसे पूछा गया कि सनक कम करने के लिए उनकी क्या सलाह होगी। उन्होंने उत्तर दिया कि वस्तुओं को लेकर एक संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाने पर आशा और आशावाद के आधार होते हुए भी हम और अधिक नकारात्मक हो जाते हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि २०वीं सदी के पूर्वार्ध से युद्ध को मंजूरी देने से दूर तथा शांति रखने की दिशा में लोकप्रिय प्रवृत्ति हुई है। बर्लिन की दीवार के गिरने के बाद वे देश, जो सर्वाधिकारवाद के अंतर्गत संघर्ष कर रहे थे, स्वतंत्र हो गए। इस बीच, विज्ञान और आध्यात्मिकता, विशेषकर जिसमें चित्त शामिल है, और निकट आ गए हैं। डॉ डोइड्ज ने १०० से भी अधिक शीर्ष तांत्रिक प्रणाली वैज्ञानिकों और अन्य मस्तिष्क विशेषज्ञों द्वारा निर्मित तथा परीक्षित एक मस्तिष्क प्रशिक्षण प्रणाली जो आरंभ की गई है उसके लिए http://www.brainhq.com/ के परामर्श की सलाह दी।
पैनल के सदस्यों के साथ मध्याह्न का भोजन करने के पश्चात, परम पावन गाड़ी द्वारा १६वीं वीथि बैपटिस्ट गिरजाघर गए, जहाँ पादरी रेवरेंड आर्थर प्राइस ने उनकी अगवानी की। पादरी ने गिरजाघर का ऐतिहासिक महत्व समझाया। १९६० के दशक के नागरिक अधिकार आंदोलन के दौरान यह एक संगठनात्मक मुख्यालय के रूप में काम में लाया गया और यह बर्मिंघम, अलबामा और दक्षिण में व्यापक संस्थागत जातिवाद के विरोध नारेबाजी अश्वेतों के लिए बड़े पैमाने पर बैठकों और एकत्रित होने का बिन्दु था। कनिष्ठ मार्टिन लूथर किंग इस गिरजाघर में प्रायः व्याख्यान देते थे। १९६३ में कू क्लक्स क्लान के सदस्यों ने चर्च के तहखाने के बाहर बारूद की १९ छड़ें लगाईं जिसके विस्फोट से चार युवतियों की हत्या हो गई। माना जाता है कि इस बम विस्फोट की नाराजगी का आगामी वर्ष में १९६४ नागरिक अधिकार अधिनियम के पारित होने पर योगदान रहा। पादरी प्राइस ने परम पावन को चित्रों से युक्त स्मारक दिखाया, जिसमें नागरिक अधिकार आंदोलन और बम विस्फोट के िचत्रों के साथ वह घड़ी थी, जो विस्फोट के ठीक समय पर बंद हो गई थी।
ऊपर चर्च में मेयर का इंतजार करते हुए, परम पावन ने मीडिया के प्रश्नों के उत्तर दिए। बाहर से आती हुई स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही दोलज्ञेल प्रदर्शनकारियों के यांत्रिक आवाज़ पर परम पावन से उनकी शिकायतों के उत्तर में एक वक्तव्य माँगा गया। उन्होंने उत्तर दिया:
"यह विवादास्पद मुद्दा ४०० वर्ष पुराना है। एक समय मैं भी इन प्रार्थनाओं का पाठ करता था, पर यह जानने पर कि पूर्व दलाई लामाओं ने प्रबलता के साथ इसका िवरोध किया मैंने बंद कर दिया। मैंने कभी भी अभ्यास पर प्रतिबंध नहीं लगाया है पर इसकी वास्तविकता को स्पष्ट करना मेरा उत्तरदायित्व है। मेरे वरिष्ठ अध्यापक, मेरे मुख्य शिक्षक, इसके विषय में सदा शंकालु थे और १३वें दलाई लामा ने दृढ़ता से इसका विरोध किया। ये प्रदर्शनकारी, मुझे जो कहना है उसे सुने या नहीं, यह उन पर निर्भर है। यदि आप इसके बारे जानने में और अधिक रुचि रखते हैं तो तिब्बत के अंदर और बाहर के इतिहास को देखिए।"
यह पूछे जाने पर कि इस ऐतिहासिक स्थल की यात्रा करते हुए उन्होंने कैसा अनुभव किया, उन्होंने कहा कि वे मेयर, विलियम बेल, के आमंत्रण पर आए थे। उन्होंने कहा कि वह सत्य के लिए संघर्ष के साथ जुड़े इस तरह के एक ऐतिहासिक स्थान पर आते हुए वे खुश था। यद्यपि उनकी मार्टिन लूथर किंग से भेंट नहीं हुई थी पर वे उनकी पत्नी और बेटे से िमले थे, जिन्होंने उन्हें बताया कि डॉ किंग , गांधी, उनके जीवन की सादगी और अहिंसा के प्रशंसक थे।
जब वह विदा लेने वाले थे तो परम पावन ने मेयर बेल को बताया कि एक नेता के रूप में उनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण थी और एक महत्वपूर्ण बात जो मन में रखी जानी चािहए कि मनुष्य के रूप में सभी एक समान हैं। कल, बर्मिंघम में ही उन्हें एक अंतर्धर्म चर्चा में भाग लेना है तथा हमारे समय में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता विषय पर व्याख्यान देना है।