थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, भारत - ८ अक्टूबर २०१४ - आज, ८वें तिब्बती महीने के दिनांक १५ शुभ पूर्णिमा के दिन, परम पावन दलाई लामा को एक दीर्घायु प्रार्थना अर्पित की गई । यह नागार्जुन की 'प्रज्ञानाममूलमध्यमकारिका' के उनके तीसरे दिन के प्रवचन से पूर्व प्रातः तड़के ही प्रारंभ हो गया। यह समारोह नमज्ञल विहार के विहाराध्यक्ष ठोमथोग रिनपोछे के नेतृत्व में हुआ, जो जमयंग खेनचे वंगपो की दृष्टि, जो दीर्घायु देव त्रय पर ध्यान केंद्रित करने पर आधारित था, जिसमें श्वेत तारा जिसके शीश पर अमितायु हैं और उनके मुकुट पर उष्णीष विजय हैं ।
इस अवसर के महत्व को बढ़ाते हुए, केयुछंग रिनपोछे ने परम पावन को दीर्घायु प्रार्थना अर्पित किया। परम पावन ने रिनपोछे के प्रति एक विशेष स्नेह अभिव्यक्त किया, क्योंकि १९३७ में उन्हीं के पूर्ववर्ती रिनेपोछे ने उनकी खोज की थी। अपने प्रामाणिक प्रत्यक्षदर्शी विवरण में खेमे सोनम वंगदू हमें बताते हैं कि किस प्रकार रीजेंट रडेंग रिनपोछे ने प्रख्यात लामाओं के नेतृत्व में तिब्बत के विभिन्न भागों में कई खोज दलों को भेजा। सेर्जे हरदोंग केयुछंग रिनपोछे के नेतृत्व में खोजी दल ने उत्तर - पूर्व में आमदो की यात्रा की। उनकी यात्रा के दौरान दल ने पंछेन रिनपोछे से भेंट की, जो उस समय क्येगुदो में थे। उन्होंने उन्हें १३वें दलाई लामा के पुनर्जन्म की खोज की तात्कालिकता के लिए सतर्क किया और उनसे तीन संभावित उम्मीदवारों के बारे में बताया, जिनके विषय में वे जानते थे, जिनमें से अंततः एक का परम पावन के रूप में चयन किया गया।
यात्रा जारी रखते हुए, केयुछंग रिनपोछे के दल ने कुबुम की यात्रा की, जहाँ जे चोंखापा का जन्म हुआ था। उन्होंने कुबुम जमपालिंग विहार में अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त की, जिसका नामकरण तीसरे दलाई लामा ने किया था और बाद में ५वें, ७वें और १३वें दलाई लामा ने यहाँ की यात्रा की और इसे आशीर्वचित किया।
इसके पूर्व कि दल पंछेन रिनपोछे द्वारा उल्लखित तीन बालकों की जाँच करता उनमें से एक मृत्यु हो गई, अन्य दूसरा उनकी उपस्थिति में अत्यंत शर्मीला था पर बाद में उन्हें कुबुम विहार के ठिछेन क्येका टुल्कु के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया। इसके पश्चात जो बालक बच गया उसका जन्म कुबुम के आसपास के क्षेत्र के एक छोटे से गाँव छिजा तकछेर में हुआ था। खेमे सोनम वंगदू दल के सदस्यों को देख उस छोटे से बालक के मुख की अत्यधिक खुशी का स्पष्ट रूप विवरण करते हैं, जिन्हें उसने सहजता से पहचान लिया और केयूछंग रिनपोछे को 'सेरा से एक अका' कहकर संबोधित किया। यह निश्चित करने के िलए कि क्या वह छोटा बालक १३वीं दलाई लामा की कुछ वस्तुओं को पहचान सकता है केयुछंग रिनपोछे ने ही परंपरागत परीक्षण किए। उस छोटे बालक के उत्तर और उसके आचरण ने उन्हें और दल के अन्य सदस्यों को यह निश्चय दिला दिया कि उन्होंने नन्हें दलाई लामा की खोज कर ली है। दल द्वारा उन्हें ल्हासा तक अनुरक्षण में ले जाने के लिए कई जटिल वार्ताओं के बाद, केयुछंग रिनपोछे व्यक्तिगत रूप से उनके साथ गए और ल्हासा में उनके आनन्द भरे स्वागत और औपचारिक मान्यता के समय उनकी देखभाल की।
दीर्घायु प्रार्थना समारोह के पश्चात, जिसे परम पावन ने सहर्ष स्वीकार िकया, उन्होंने नागार्जुन के प्रमुख ग्रंथ की व्याख्या जारी रखी। अंत में उन्होंने अपने श्रोताओं से कहा कि कल वे बोधिचित्तोत्पाद समारोह का नेतृत्व करेंगे।