ओस्लो, नोर्वे - ७ मई, २०१४ - मेघाच्छादित वातावरण में हवाई अड्डे रवाना होने के पहले कई पूर्व मित्र परम पावन दलाई लामा को रीगा से विदा करने आए। नॉर्वे के एक पत्रकार का जो उनसे वहाँ मिला, पहला प्रश्न था, जिसकी पुनरावृत्ति उस दिन कई बार हुई - उन्हें कैसा अनुभव हुआ जब नार्वे सरकार ने उनसे िमलना अस्वीकार कर दिया जबकि वह ओस्लो में हैं? उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रतिक्रियाएँ सामान्य हो चुकी है, और स्थितियाँ जिस रूप में हैं वे उसी रूप में उन्हें स्वीकारते हैं।
"राष्ट्रीय हित महत्त्वपूर्ण है, पर मैं आपको आश्वासन दे सकता हूँ कि दलाई लामा हानिकारक व्यक्ति नहीं है। मेरी रुचि मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए जनता से िमलने की है, हमारी आवश्यकता सभी ७ अरब मनुष्यों को एक परिवार के सदस्य के रूप में देखने की है। प्रमुख समस्याओं का सामना करते हुए केवल इस देश या अन्य देश के लिए नहीं, पर हमें यह देखना होगा कि समूचे विश्व के लिए क्या लाभदायी है। हम चाहे जो करें फिर वह राजनीति, व्यवसाय, धर्म या शिक्षा हो, दीर्घावधि में हमें सिद्धांतों और मानवीय मूल्यों को लाना होगा। यदि मेरा कोई राजनीतिक उद्देश्य होता तो मुझे निराशा होती पर ऐसा नहीं है।"
ओस्लो हवाई अड्डे पहुँचने पर गीले बर्फ के गिरने के साथ साथ तेज़ हवा थी। उनकी यात्रा का आयोजन करने वाले समिति के सदस्यों ने उनका स्वागत िकया। उन्होंने वहाँ उपस्थित पत्रकारों से, आम लोगों से मिलने, और प्रेम और करुणा जैसे मानव मूल्यों के विषय पर सार्वजनिक चर्चा में संलग्न होने की अपनी बात दोहराई। शहर का ड्राइव तेज़ गति का था और तिब्बती झंडों और अभिनन्दन बैनरों के साथ मैत्री भाव से एक विशाल जनसमूह उनके स्वागत की प्रतीक्षा जयकार के साथ कर रहा था। परम पावन ने होटल की बालकनी से यह कहते हुए उन्हें संबोधित किया कि, वह वहाँ आकर कितने खुश थे और उन सब को देख परम पावन को कितनी प्रसन्नता हो रही थी।
होटल के अंदर वे नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री जेल माग्ने बोंदेविक से मिले और उन्होंने वर्तमान स्थिति, पुराने मित्रों और पिछली भेंट के बाद से वे क्या कर रहे हैं इत्यादि पर चर्चा की।
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की २५वीं वर्षगांठ के अवसर पर नोबेल संस्थान द्वारा आमंत्रित, परम पावन का स्वागत नोबेल समिति के अध्यक्ष थोर्बजोन जागलैंड ने किया जो उन्हें समिति के वर्तमान सदस्यों के साथ मध्याह्न की भोज बैठक के लिए ले गए।
इसके पश्चात मीडिया के साथ एक गोलमेज बैठक हुई। थोर्बजोन जागलैंड ने परम पावन का यह कहते हुए परिचय कराया, कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कर २५ वर्ष हो चुके हैं और नोबेल समिति में अभी भी उस समय के एक सदस्य हैं। उन्होंने टिप्पणी की, कि तिब्बती लोगों को अहिंसात्मक रूप से स्वतंत्रता दिलाने के उनके प्रयासों और प्राकृतिक पर्यावरण के लिए उनकी चिंता के लिए उन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने कहा:
"आप शांति के व्यक्ति हैं, एक सुनने योग्य धार्मिक नेता, और बातचीत करने योग्य व्यक्ति।"
एकत्रित पत्रकारों की ओर से पहला प्रश्न था कि कुछ लोगों द्वारा नोबेल शांति पुरस्कार को एक वरदान के रूप में और कुछ अन्य द्वारा एक अभिशाप के रूप में वर्णित किया गया है, वे इसके विषय में कैसा अनुभव करते हैं? परम पावन ने उत्तर दिया:
"निस्सन्देह, एक वरदान के रूप में। मुझे मेरे मित्र, और आध्यात्मिक बंधु आर्चबिशप डेसमंड टूटू का कथन स्मरण है कि उनके लिए पहले किसी से मिलना कितना कठिन था जो कि उनके िलए पुरस्कार मिलने के उपरांत सरल हो गया था। मैं वैज्ञानिकों के साथ एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए कैलिफोर्निया में था, जब मैंने घोषणा सुनी और मुझसे पूछा गया कि मुझे कैसा लगा। मैंने कहा,'कोई बहुत अलग नहीं है, मैं एक साधारण बौद्ध भिक्षु, न अधिक, न कम' पर चूँकि पुरस्कार अहिंसा के लिए मेरी प्रतिबद्धता और शांति हेतु मेरे कार्य की मान्यता से संबंधित था, मुझे लगा कि यह एक महान सम्मान था।"
"बाद में जब आंग सान सूकी और लियू ज़ियाओबो को शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया और वे कठिन परिस्थितियों में थे तो मुझे लगा कि यह उनके लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा का एक स्रोत रहा होगा।"
यह पूछे जाने पर कि क्या वह निराश हैं कि नार्वे सरकार के सदस्य और संसद के अध्यक्ष उनसे नहीं मिलेंगे, उन्होंने उत्तर दिया:
"नहीं, क्यों? मेरी मुख्य रुचि मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने में है। जन्म से हममें स्नेह और दूसरों के लिए चिंता की कुछ समझ की भावना है। हमें उन्हें पोषित करने की आवश्यकता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि शारीरिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए भी चित्त की शांति आवश्यक है। लोग प्रायः सोचते हैं कि प्रेम और करुणा केवल धार्मिक सोच की बातें हैं, पर वास्तव में इस तरह के मूल्य सभी मानवीय संबंधों में आवश्यक हैं। एक बौद्ध भिक्षु के रूप में, मैं अंतर्धार्मिक सद्भाव के विकास में भी रुचि रखता हूँ।"
"मैं जहाँ भी जाता हूँ मेरा उद्देश्य जनता से मिलना है। यदि राष्ट्रपति ओबामा जैसे नेता मुझ से मिलें तो यह ठीक है, पर मैं कभी भी किसी को भी असुविधा में नहीं डालना चाहता। जब मैं आज यहाँ पहुँचा तो बड़ी संख्या में आम लोग जो आए थे जिन्हें देख मुझे प्रसन्नता हुई। विश्व हम सभी के लिए है, केवल हमारे नेताओं के लिए नहीं।"
जब परम पावन से पूछा गया कि क्या चीन का बढ़ता प्रभाव उनके और निर्वासन में तिब्बती सरकार के काम को सीमित करने में सक्षम था, उन्होंने स्पष्ट किया कि वे उस रूप में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को संदर्भित नहीं करते, जो तिब्बती समुदाय की देखभाल करती है। पर वे हँसे और टिप्पणी की, कि चीनी सरकार उनकी जितनी अधिक आलोचना करती है, उनकी लोकप्रियता उतनी अधिक बढ़ती है। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में, कि जबसे उन्हें शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, उसके बाद से चीनी अधिकारियों के साथ मतभेदों को दूर करना सरल अथवा और अधिक कठिन लगता है, उन्होंने कहा कि चीन की पीपुल्स गणराज्य के गठन के लगभग ७० वर्ष हो चुके हैं। उस अवधि में वह विभिन्न युग देखते हैं। माओ चे तुंग का युग आदर्श से संबंधित था; देंग जियाओपिंग का युग पूंजीवाद का प्रारंभ था; जियांग जेमिन ने कार्यशील वर्गों से अतिरिक्त अन्य लोगों को शामिल करते हुए पार्टी की सदस्यता का विस्तार देखा और हू जिन्ताओ ने एक सामंजस्यपूर्ण समाज को सुनिश्चित करने का प्रयास किया।
"इसलिए आप देंखें कि समान विचारधारा वाली उसी पार्टी ने दिखा दिया है कि वह एक बदलते वास्तविकता के अनुकूल अपने को ढाल सकती है। जैसे चीन खुलता है, उसके छात्र विदेशों में अध्ययन करते हैं और स्वतंत्रता और सेंसरशिप की कमी को देखते हैं, परिस्थितियों में परिवर्तन अवश्यभंावी है। वेन जियाबाओ ने कहा कि चीन को राजनीतिक सुधार की आवश्यकता है, यहाँ तक कि अमरीकी शैली के लोकतंत्र की।"
चीन और तिब्बत में मानव अधिकारों के लिए समर्थन के प्रश्न पर, परम पावन ने विचार व्यक्त किया कि नॉर्वे जैसे छोटे देश अधिक प्रभाव डाल सकते हैं क्योंकि उन्हें एक खतरे के रूप में नहीं देखा जाता।
इस प्रश्न के उत्तर में, कि तिब्बत में १३० से अधिक आत्मदाह की घटनाएँ हुई है, परम पावन ने कहा कि यह बहुत दुख की बात है। उन्होंने जो पहले कहा था उसे दोहराया कि ये कठोर कदम तिब्बतियों में गहरी व्याकुलता का लक्षण है। चीनी अधिकारियों को इसकी जाँच करनी चाहिए। इसके बजाय वे परम पावन और उनके समर्थकों को दोषी ठहराते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि वे संवाददाताओं को जाकर उन परिस्थितियों की जाँच करने की अनुमति दें जिसके कारण लोग इतना बड़ा कदम उठा रहे हैं। वे नशे में नहीं हैं और न ही पारिवारिक समस्याओं से आक्रांत हैं; वे जो कर रहे हैं, उनके अन्य कारण हैं।
परम पावन ने कहा कि, यद्यपि हू जिंताओ के एक सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण का उद्देश्य सराहनीय था, पर उपाय, बल और दमन का प्रयोग अनुचित था। उन्होंने कहा कि विश्व के २०० देशों में से मात्र चीन ऐसा है जहाँ बाह्य रक्षा बजट से अधिक आंतरिक सुरक्षा पर खर्च किया जाता है। सुरक्षा कर्मियों की संख्या बढ़ाने से केवल डर को बढ़ावा मिलता है। मित्रों ने उन्हें बताया है कि ल्हासा में सुरक्षा कैमरों की प्रचुरता का प्रभाव संदेह और भय को बढ़ाने के लिए किया गया है।
बाहर सड़क पर शुगदेन समर्थक प्रदर्शनकारियों का प्रश्न उठा। परम पावन का उत्तर उनके अपने इस कथन से प्रारंभ हुआ, कि वह हमेशा इस बात पर ज़ोर देते हैं कि यह बेहतर और सुरक्षित होगा कि आप ने जिस धर्म में जन्म लिया है उसी में बने रहें। पर यदि किसी को लगता है कि बौद्ध धर्म उनके लिए उपयोगी है, तो वे इसका पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि बुद्ध ने अपने अनुयायियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा था कि वे उसे उसी तरह मानने के बजाय उनके कथन की जाँच करें और उसका प्रयोग करें। इन प्रदर्शनों के बारे में उन्होंने कहा:
"यह एक लंबी कहानी है। यह आत्मा शुगदेन ५वें दलाई लामा के समय से, लगभग ४०० वर्षों से पूर्व विवादास्पद रही है। ५वें दलाई लामा ने कहा कि यह विकृत प्रार्थना के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुई थी और वह बुद्ध धर्म और सत्वों का अहित कर रही थी। उसके बाद कई प्रमुख लामाओं ने इसी प्रकार का दृष्टिकोण अपनाया। १३वें दलाई लामा ने इस अभ्यास पर प्रतिबंध लगाया था यद्यपि इसके इतने अनुयायी नहीं थे।"
"फिर यह लज्जाजनक बात जो हुई वह यह थी, कि अज्ञानता के कारण १९५१ से १९७० के प्रारंभिक वर्षों तक मैंने इस आत्मा की तुष्टि की। मैंने यह अनुभव करना प्रारंभ किया कि इसमें कुछ गलत है, और जब मैंने इसे देखा, तो पाया कि ५वें और १३वें दलाई लामा दोनों ने मुझसे पहले इसका विरोध किया था और इसलिए मैंने इसका अभ्यास बंद कर िदया। अंतत ः जनता को इस के बारे में पता लगा और उन्हें सूचित करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ।"
"इस आत्मा की पूजा करने वालों ने अपने ही दल की स्थापना की। वे मुझ पर इस पर प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। जो भी चाहता है, दक्षिण भारत जाकर उन लोगों के महाविहारों को देख सकता है जो इस अभ्यास को जारी रखना चाहते हैं।"
"एक शिक्षक और शिष्य के बीच एक आध्यात्मिक बंधन स्थापित होता और मैंने कहा है कि यदि लोग इस आत्मा की पूजा करना चाहते हैं, तो वे मुझ से शिक्षा न लें। इसी को वे एक प्रतिबंध का नाम दे रहे हैं। वे चिल्ला रहे हैं 'झूठ बोलना बंद करो' पर मेरे विचार से आपको पूछना चाहिए कि यहाँ झूठ कौन बोल रहा है। मैं गैर सांप्रदायिक होने का प्रयास करता हूँ। यह अभ्यास लंबे समय से संप्रदायवाद के साथ संबद्ध किया गया है। मुझे इन प्रदर्शनकारियों को देख कर दुख होता है क्योंकि वे इस मुद्दे के विषय में अज्ञान हैं।"
एक पत्रकार ने उल्लेख किया कि एक नोबेल पुरस्कार विजेता के रूप में परम पावन को दूसरों को शांति पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए मनोनीत करने का अधिकार है और उनसे पूछा कि क्या उन्होंने ऐसा किया है। परम पावन हँसे, और कहा कि उनका विचार था कि ऐसा करना समिति का कार्य था। यह पूछे जाने पर कि क्या वे सोचते हैं कि वे अब भी इस जीवन में तिब्बत और पी आर सी की यात्रा करने में सक्षम होंगे, उन्होंने उत्तर दिया कि यदि वह एक और १५ या २० जीते हैं, वह ऐसी आशा रखते हैं, पर यदि वे केवल एक या दो वर्ष जीवित रहें तो शायद अवसर नहीं मिलेगा।
"जो भी हो यदि मैं जा सकूँ तो आप जैसे सभी पत्रकार भी आने में सक्षम होंगे।"
कल परम पावन ओस्लो विश्वविद्यालय में प्रातः 'चित्त शोधन के अष्ट पद' पर प्रवचन देंगे और मध्याह्न में 'कल की विश्व के लिए उत्तरदायित्व लेने' पर चर्चा करेंगे।