हैमबर्ग, जर्मनी २३ अगस्त २०१४ - रात्रि की वर्षा के पश्चात सूर्य निकल आया था जब परम पावन दलाई लामा एक छोटी ड्राइव के बाद हैमबर्ग कांग्रेस केन्द्र गए, जहाँ वे ७००० से अधिक लोगों के लिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के विषय पर व्याख्यान देने वाले थे। वहाँ के लिए निकलने से पूर्व उन्होंने बेटिना हैनसेन, जो ज़ेड डी एफ टी वी पर एक महिला कार्यक्रम की मेजबान हैं, को साक्षात्कार दिया।
उन्होंने परम पावन से जर्मनी के साथ विशिष्ट संबंध के विषय पर प्रश्न किया, जिसका श्रेय उन्होंने जर्मन बोलने वाले ऑस्ट्रियायी पीटर औफशनेटर और हेनरिक हेरेर के साथ उनके संबंध, जब वे तिब्बत में मात्र एक बालक थे और दूसरे विश्व युद्ध के बाद उस देश के प्रति सहानुभूति और उसके पश्चात उसके पुनरुद्धार को दिया। उन्होंने उनसे पूछा कि उन्हें किस बात से खुशी मिलती है और उन्होंने उत्तर दिया कि वह इस बात से खुश हैं कि वह ७ अरब लोगों के बीच में एक इंसान हैं। और जब उन्होंने उनकी बचपन की स्मृतियों के बारे में पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि सर्वप्रथम तो वे अपनी माँ के चेहरे को याद करते हैं और स्मरण किया कि अशिक्षित होने के बावजूद वे दया जीती जागती छवि थी।
धर्म के नाम पर हो रहे हिंसा के प्रतिदिन के समाचार के विषय में उन्होंने पूछा:
"यदि आप एक सृजनकर्ता ईश्वर में विश्वास रखते हैं, और यह कि सभी वस्तुएँ उस ईश्वर द्वारा निर्मित हैं, तो हम सभी उसी के द्वारा बनाए भाई और बहनें हैं तो आप एक दूसरे को कैसे मार सकते हैं? ऐसा सोच पाना भी संभव नहीं है।"
जैसे ही परम पावन कांग्रेस केंद्र के मंच पर आए उत्साह और मैत्री पूर्ण तािलयों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत हुआ। उन्होंने कहा:
"मैं यहाँ आकर अत्यंत प्रसन्न हूँ। मैं इस बात से भी बहुत खुश हूँ कि तिब्बत केंद्र में आप सिर्फ बौद्ध शिक्षाएँ देने के अतिरिक्त और अधिक करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी परंपरा में चित्त का ज्ञान है जो हर किसी के लिए उपयोगी हो सकता है और आप उसे उपलब्ध करा रहे हैं - धन्यवाद।"
जब संचालक गर्ट स्कोबेल ने परम पावन को समाज में नैतिकता के विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया तो उन्होंने यह कहते हुए प्रारंभ किया:
"जब भी मैं लोगों से मिलता हूँ, आम लोग, राजनीतिक नेता, व्यापार जगत के नेता या धार्मिक नेता, मैं सदा उन्हें साथी मानव के रूप में देखता हूँ। हम सब समान हैं, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से। हम सब ऐसे प्राणी हैं जिनमें सुख तथा पीड़ा की भावना है और सुखी होने की इच्छा और उस इच्छा को पूरा करने का अधिकार है। मनुष्य और अन्य प्राणियों के बीच बुद्धि का अंतर है। यह हमें भविष्य की ओर देखने की क्षमता देता है, जो बदले में हमें चिंता और घबराहट देता है। पर केवल मनुष्य होने के नाते हमारे पास चित्त से निपटने का अवसर है।"
उन्होंने कहा कि एक मानसिक स्तर पर अशांति हमारे आत्म केन्द्रित दृष्टिकोण से संबंधित है। हम जितने अधिक आत्म केन्द्रित होते हैं, उतना अधिक दूसरों की उपेक्षा करते हैं और उनसे उतनी अधिक दूरी का अनुभव करते हैं। दूसरों के प्रति सोच रखने की भावना का विकास भय को कम करता है तथा मैत्री को पोषित करता है। वे भावनाएँ जो हमारे चित्त को अशांत करती हैं, उन्हें शराब, नशीले पदार्थों अथवा शल्य चिकित्सा से नहीं अपितु मात्र चित्त से निपटा जा सकता है। मस्तिष्क के उस भाग को निकाल देना, जो भावनाओं की अनुभूति करते है, कुछ न होगा क्योंकि मनुष्य को भावनाओं की आवश्यकता है। पर हमें एक शांत चित्त की भी आवश्यकता है।
हम अगले जन्म या स्वर्ग और नरक के बारे में बात नहीं कर रहे, उन्होंने कहा, यह धार्मिक शिक्षाओं पर निर्भर होने का प्रश्न नहीं है, यद्यपि सभी प्रमुख धार्मिक परंपराएँ नैतिकता पर आधारित हैं तथा प्रेम और करुणा का संदेश संप्रेषित करती हैं। हमें ऐसे उपायों और साधनों की आवश्यकता है जो सभी मनुष्यों पर लागू हो, हमें धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की जरूरत है। और लम्बे समय से चले आ रहे भारतीय प्रारूप के अनुसार, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में सभी धार्मिक परंपराओं के लिए और उनके लिए भी जिनका किसी में कोई विश्वास नहीं है, सम्मान शामिल है, मन की शांति के लिए एक दृष्टिकोण के रूप में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता, आंतरिक मूल्यों के िलए नैतिक दृष्टिकोण जो इस अथवा उस धार्मिक परंपरा पर निर्भर न हो, सभी ७ अरब मनुष्यंो के लिए एक उचित दृष्टिकोण है।
हमारे लिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की आवश्यकता का एक और कारण यह है कि हम इतने सारे मानव निर्मित समस्याओं का सामना करते हैं। केवल धार्मिक परंपराओं की निर्भरता 'हम' और 'उन' की भावना उत्पन्न कर सकती हैं जो अति के स्तरों पर अकल्पनीय बातों की ओर ले जा सकती है ः दूसरों की हत्या।
"जैसा कि हाल ही में मैंने लद्दाख के मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों से कहा," परम पावन ने बल दिया, "जब धार्मिक भाई और बहनें एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं तो हमें कुछ करने की आवश्यकता है। हममें से हर एक का कुछ करने का उत्तरदायित्व बनता है।"
उन्होंने उल्लेख किया कि ऐतिहासिक रूप से जर्मनी ने फ्रांस और रूस के साथ युद्ध किया और क्वांटम भौतिकी के शिक्षक कार्ल फ्रेडरिक वॉन वेइसेकर और पूर्व जर्मन राष्ट्रपति के भाई का स्मरण किया जिनसे उन्हंोंने कहा था कि अपनी युवावस्था में हर जर्मन की दृष्टि में फ्रांसीसी शत्रु थे और हर फ्रांसीसी की दृष्टि में जर्मन भी शत्रु थे। पर अब यूरोपीय संघ के निर्माण के साथ वह अब पूरी तरह से परिवर्तित हो गया है जिसे परम पावन अद्भुत मानते हैं।
"धर्म निरपेक्ष नैतिकता को बढ़ावा देने का उचित उपाय उपदेश के माध्यम से नहीं अपितु शिक्षा के माध्यम से है और धर्म निरपेक्ष शिक्षा के संदर्भ में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता उपयुक्त है। यदि हमने २०वीं सदी में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को बढ़ावा देने के लिए और अधिक कार्य किया होता तो हो सकता है कि अब तक हमने अधिक प्रगति की होती। पर एक बार संघर्ष और हिंसा के कारण परिपक्व हो गए और हत्याएँ प्रारंभ हो गईं तो इसे रोकना बहुत कठिन है। उस समय भावनाएँ पर नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं।"
परम पावन ने ११ सितम्बर की घटना के बाद अपने मित्र राष्ट्रपति बुश को लिखे गए पत्र का स्मरण किया जिसमें उन्होंने गहरी संवेदना व्यक्त की थी, पर साथ में यह भी सुझाया था कि वे जो भी प्रतिक्रिया चुनें वे अहिंसक हों ताकि हिंसा बढ़े नहीं तथा और अधिक बिन लादेनंों का निर्माण न हो।
गर्ट स्कोबल ने अर्थशास्त्र और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की ओर चर्चा को मोड़ा और परम पावन ने ध्यान दिलाया कि जहाँ वे एक अर्थशास्त्री नहीं हैं, पर वे धन के समान वितरण की आवश्यकता के प्रति एक मार्क्सवादी दृष्टिकोण रखते हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि एक दृढ़ नैतिक सिद्धांतों की कमी के कारण आज कहीं भी वास्तविक समाजवादी समाज नहीं है।
"जब हमारी एक परोपकारी प्रेरणा होती है, तो हमारे सभी कार्य रचनात्मक हो जाते हैं। जब हम आत्म केन्द्रित होते हैं तो हमारे कार्य विनाशकारी हो जाते हैं। हमें अपनी भावनाओं के नक्शे और इस बात की समझ कि हमारी भावनाएँ किस प्रकार कार्य करती हैं, द्वारा निर्देशित होना चाहिए।"
दर्शकों से एक प्रश्न उठा कि आज शांति के क्षेत्र किस प्रकार कार्य कर सकते हैं और परम पावन ने उत्तर दिया कि आज हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वह अतीत की लापरवाही का परिणाम है। उन्होंने कहा कि २०वीं सदी रक्तपात का एक युग था, और हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इसके स्थान पर २१वीं सदी बातचीत की सदी होगी।
"हम सब 'शांति, शांति' के बारे में बात करते हैं, पर शांति आसमान से नहीं टपकती। हमें उसे निर्मित करने के लिए कुछ करना होगा। मनुष्यों को अपनी समस्याएँ स्वयं सुलझानी होगी। और शांति के निर्माण का सही मार्ग बातचीत में संलग्न होना है। एक पक्ष पराजय के दुख को झेले और दूसरा पक्ष विजयी हो, यह विचार पुराना हो चुका है। इसके स्थान पर हमें बातचीत का विकास करना है। यदि हम एक शांतिपूर्ण, अधिक करुणाशील विश्व चाहते हैं तो हमें एक प्रयास करना होगा। इसके िलए धैर्य, सहनशीलता और क्षमा के आधार पर शिक्षा की आवश्यकता है। कई बार हिंसा लोभ से जनित होती है, तो हमें भी संतोष और आत्म अनुशासन की आवश्यकता है।"
मध्याह्न के भोजन के दौरान, परम पावन ने डॉयचे वेले टीवी के मथायस वॉन हेन, को एक साक्षात्कार दिया, जिन्होंने पूछा कि चीन की वर्तमान स्थिति में जबकि वह आर्थिक और राजनीतिक रूप से अधिक शक्तिशाली हो रहा है, तिब्बती स्वायत्तता की क्या संभावनाएँ हैं। परम पावन ने उन्हें बताया कि कई चीनी लोग, विशेष रूप से बुद्धिजीवी तिब्बतियों के बुनियादी अधिकारों की खोज का समर्थन करते हैं। उन्होंने यह भी टिप्पणी की, कि कहा जाता है कि अब ३००० लाख से अधिक चीनी बौद्ध हैं, जिनकी तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि है, जो कि चीनी परंपरा के समान, नालंदा परंपरा से निकली है। उन्होंने कहा कि कई चीनियों ने उन्हें बताया है कि जहाँ वैश्विक मंच पर अंतर लाने में चीन के पास मानव शक्ति है, पर उसमें नैतिक अधिकार का अभाव है। उन्होंने सुझाव दिया कि सेंसरशिप के स्थान पर अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है। चीनी लोग यह जानने के अधिकारी हैं कि क्या हो रहा है।
बाद में प्रेस के साथ हुई एक बैठक में परम पावन ने सबसे पहले अपनी तीन प्रतिबद्धताओं को रेखांकित किया ः एक मनुष्य के रूप में नैतिकता के मूल्य के बारे में जागरूकता साझा करना, अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने और तिब्बती संस्कृति, जो कि शांति और करुणा की संस्कृति है, के संरक्षण को प्रोत्साहित करना।
उऩके समक्ष यह रखा गया कि जहाँ एक ओर वे निरंतर शांति की बात करते हैं, पर विश्व उसकी ओर ध्यान देता प्रतीत नहीं होता, "आप इसे छोड़ क्यों नहीं देते?" उन्होंने उत्तर दिया कि आधारभूत मानव स्वभाव कोमल होता है और उनके मित्र रिची डेविडसन जैसे वैज्ञानिक ने पता लगाया है कि नन्हें शिशु ऐसे कार्यों को अधिक पसंद करते हैं जिसमें लोग दूसरों का अहित करने के स्थान पर दूसरों की सहायता करते हैं, जो यह दिखाता है।
एक अन्य प्रश्नकर्ता ने कहा कि बाहर सड़क पर प्रदर्शनकारी इस बात पर बल दे रहे हैं कि परम पावन ने उनके दोलज्ञल के अभ्यास पर प्रतिबंध लगाया है और पूछा कि उन्हें क्या कहना है। उन्होंने उत्तर दिया:
"यदि आप इस आत्मा के चार सदी के इतिहास को जाँचे तो आप पता लगा सकते हैं। अज्ञानतावश १९५१ - १९७० तक मैं इसे तुष्ट करता रहा, पर एक बार जब मैंने इसकी कमियों को समझा, तो मैंने ५वें दलाई लामा के समय में इसके उद्गम पर शोध किया और मैंने इसे बन्द कर दिया। जब एक मठ को असामान्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ा तो वे मेरी ओर सहायता के लिए मुड़े तो यह बात उभरी कि इस के मूल में इस आत्मा को तुष्ट करना था। प्रारंभ से ही इस विषय में मैंने पारदर्शी होने का प्रयास किया है और चीजें को स्पष्ट करने की कोशिश की है। अन्य लोग मेरी बातों को सुनना चाहें अथवा नहीं यह उन पर निर्भर है। जो लोग बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें ठीक जानकारी नहीं है। वे मामले के तथ्यों से अनभिज्ञ हैं। मैंने कुछ भी प्रतिबंधित नहीं किया है और केवल इसका सत्य बताने का प्रयास किया है।"
एक सुखी जीवन जीने के लिए उनकी सलाह पूछे जाने पर परम पावन ने पहले कहा कि वे नहीं जानते, पर बाद में सुझाया कि जो भी हुआ हो उसके प्रति समग्र दृष्टिकोण रखना, यह ध्यान में रखते हुए कि वस्तुएँ अन्योन्याश्रित हैं और एक परोपकारी व्यवहार का विकास सहायक होगा।
दोपहर के दौरान आंतरिक मूल्यों के िवकास पर बोलते हुए परम पावन ने अमेरिका में किए गए शोध का उदाहरण दिया, जिसमें लोगों के एक समूह को करुणा के विकास के लिए आधारभूत ध्यान अनुदेश और प्रशिक्षण दिया गया था। सबसे पहले उनका रक्तचाप, नाड़ी दर और सामान्य तनाव के स्तर का मूल्यांकन किया गया। करुणा प्रशिक्षण के तीन सप्ताह बाद पुनः लिए गए मूल्यांकनों में एक उल्लेखनीय सुधार दिखाई दिया। और तो और प्रतिभागियों ने पाया कि उनका अपने साथियों के साथ व्यवहार में भी सुधार हुआ है। उन्होंने कहा:
"हम सामाजिक प्राणी हैं और यदि हम एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं तो यह हमारे अपने हित में है कि हम अन्य लोगों के विषय में सोचें। यदि हम मानवता को सुधारना चाहते हैं, तो हमें व्यक्तियों के साथ प्रारंभ करना होगा। हमें बेहतर शिक्षा की आवश्यकता है जो बाल्यकाल से विश्वविद्यालय तक धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को शामिल करे। हम सिर्फ यह करने के लिए एक पाठ्यक्रम का संचालन कर रहे हैं। आप यहाँ हैमबर्ग में स्कूलों में यह प्रयास कर सकते हैं और ४ या ५ वर्षों तक परिणामों को जाँच सकते हैं। यदि यह प्रभावी हो तो आप अन्य स्कूलों में इसका विस्तार कर सकते हैं।"
ध्यान के विषय में परम पावन ने कहा:
"केवल अपनी आँखें मूँद कर और विचारशून्यता के विकास से काम नहीं बनता। बेहतर यह है कि हमारी बुद्धिमत्ता सक्रिय हो।"
उन्होंने जागरूकता के तीन स्तरों की व्याख्या की ः प्रारंभ में जो श्रवण अथवा पठन से प्राप्त होता है, उसके बाद जो विषय के बारे में मनन और चिंतन से प्राप्त होता है और अंत में जो विषय आपके हाथ में हो उस पर एकाग्रचित्त होकर ध्यान देना जिससे आप उससे गहन रूप से परिचित हो जाते हैं और जो वास्तविक अनुभव उत्पन्न करता है। उन्होंने बुद्ध के अद्वितीय सलाह का उल्लेख किया कि मात्र विश्वास के आधार पर उनकी शिक्षा को स्वीकार न किया जाए, अपितु तर्क के आलोक में उनका परीक्षण किया जाए। उन्होंने कहा कि यही नालंदा परंपरा की एक अनूठी विशेषता है। उन्होंने सुझाव दिया कि आधारभूत मानसिक शक्ति का निर्माण करने के लिए हमें विश्लेषण और जागरूकता की आवश्यकता है और बुद्ध ने जो कहा है उस की ओर संकेत किया कि ः "आप स्वयं अपने स्वामी हैं।"
श्रोताओं के प्रश्नों के बीच से उठे प्रश्नों में से एक पुनः बाहर सड़कों पर हो रहे प्रदर्शनकारियों के विषय के बारे में था। परम पावन ने अपनी बात दोहराई जो उन्होंने पहले प्रेस को बताई थी, यह टिप्पणी करते हुए कि प्रदर्शनकारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आनंद उठा रहे हैं, जो अच्छा है। उन्होंने आगे कहा:
"मैं यहाँ जो कहना चाहता हूँ वह यह है कि जिस अभ्यास की वे बात कर रहे हैं मैंने उसे प्रतिबंधित नहीं किया है। मेरा कर्तव्य स्थिति को स्पष्ट करना, इससे अधिक कुछ नहीं। फिर अन्य लोग इस पर ध्यान देते हैं अथवा नहीं यह उन पर निर्भर है। मैं जब उन की ओर देखता हूँ तो हाथ हिलाता हूँ, और कभी कभी वे उत्तर में हाथ हिलाते हैं।"
जनता का एक अन्य सदस्य जानना चाहता था कि जब इतने लोगों की परम पावन से इतनी अपेक्षाएँ हैं, तो वे उन्हें किस तरह पूरा कर सकते हैं। उन्होंने उत्तर दिया:
"मेरा मुख्य अभ्यास दूसरों के कल्याण के लिए अपने काय, वाक और चित्त को समर्पित करना है। मैं कुछ और समय तक के लिए यह जारी रखने की आशा करता हूँ। मेरी सबसे प्रिय प्रार्थना है:
जब तक हो अंतरिक्ष स्थित
और जब तक जीवित हों सत्व
तब तक मैं भी बना रहूँ
संसार के दुख दूर करने के लिए।"
उन्होंने यह कहते हुए दोपहर का समापन किया:
"मैं वास्तव में आप सब की सराहना करता हूँ कि आप सब ने बड़े ध्यान से, जो मैं कहना चाहता था उसे सुना। यदि आप इसे उपयोगी पाएँ तो इस पर और अधिक सोचें, अपने मित्रों तथा परिवार के साथ इस पर चर्चा करें। दूसरी ओर यदि यह आपको उपयोगी नहीं लगता तो बस भूल जाएँ। धन्यवाद।"