"मैं आपमें से कइयों को एक लंबे समय से जानता हूँ और अब हम सब में बुढ़ापे के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। मैं २४ वर्ष का था जब हमारा निर्वासन प्रारंभ हुआ और अब मैं लगभग ७९ का हूँ। इस बीच तिब्बत में हम लोगों की भावना अभी भी प्रबल है, उनमें ऐसी शक्ति है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। हम जहाँ भी हों हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम तिब्बती हैं। निर्वासन में हम शरणार्थियों की संख्या १५०,००० है पर जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है वह यह कि तिब्बत में उन लोगों की भावना बनी रहे, वे मालिक हैं। और चँूकि उन्होंने हम पर आशा बनाए रखा है इसलिए हमें अपने उद्देश्य को जीवित रखना है।"
परम पावन अपनी स्मृतियाँ अतीत में ले गए जब उन्होंने पहले पहल विदेश यात्राएँ प्रारंभ की थी। भारत के बाहर अपनी प्रथम यात्रा के दौरान, उन्होंने १९६६ में जापान, मलेशिया और थाईलैंड की यात्रा की। १९७३ में वह यूरोप गए और १९७९ में संयुक्त राज्य अमेरिका में उनका पहली बार आगमन हुआ। उन दिनों में शायद ही किसी ने प्रेम और करुणा के विषय में सार्वजनिक रूप से बात की थी।
"१९७० के दशक में, मैंने वैश्विक उत्तरदायित्व और एक वैश्विक समुदाय की भावना के विषय पर खुलकर बोलना प्रारंभ किया। तब से, वैज्ञानिकों ने हमारी भलाई के लिए प्रेम और करुणा के महत्त्व को पहचाना है। कांग्यूर और तेंग्यूर में शामिल बौद्ध साहित्य के ३०० या अधिक खंडों में बोधिचित्त और शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा की स्पष्ट व्याख्या है। ये तिब्बतियों की प्रथा का स्रोत है, यहाँ तक कि दूरस्थ तिब्बतियों की भी, कि केवल तिब्बतियों के लिए ही नहीं अपितु सभी सत्वों के कल्याण के लिए प्रार्थना करें।"
"नागार्जुन जैसे आचार्यों से आई नालंदा परंपरा ने हमें नैतिक सिद्धांतों के प्रति आस्था की शिक्षा दी है, यह अत्यंत दुखद दिन होगा यदि इनका पतन प्रारंभ होने लगे। ऐसा प्रतीत होता है कि संभवतः लोग क्रमशः कम ध्यान दे रहे हैं।"
परम पावन ने कहा कि पहले तिब्बतियों में भ्रष्टाचार बहुत दुर्लभ था, पर उन्होंने सुना है कि हाल ही इसने अपना सिर उठाना प्रारंभ कर दिया है। ईमानदार और सच्चा बना रहना दूसरों के प्रति प्रेम और करुणा की भावना बनाए रखने में है। जब इन गुणों की कमी होती है तो समस्याएँ उठ खड़ी होती है। अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष समस्याओं के स्रोत हैं जिनके परिणामस्वरूप लोग मारे जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह किसी के िलए भी अच्छा नहीं है यदि दूसरों के साथ हमारे व्यवहार बेईमानी और कपट का संकेत दें। दूसरी ओर यदि हम ईमानदार और सच्चे हों तो वह हमारे लिए और दूसरों के लिए भी हितकारी है।
"विश्व में कई सैकड़ों करोड़ों बौद्ध होंगे जिनको मुक्ति और ज्ञान तो दूर की बात है, चित्त शोधन में मार्ग दर्शन की आवश्यकता है। हम तिब्बतियों को संस्कृत, अंग्रेजी या अन्य भाषाओं की ओर देखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इन विषयों पर समूचे निर्देश हमारी अपनी भाषा, तिब्बती में हमारे पास उपलब्ध हैं।
हाल ही में, मैंने जब श्रीनगर में तिब्बती मुसलमानों से भेंट की तो पाया कि उनके छोटे बच्चे ल्हासा उच्चारण के साथ बहुत उत्कृष्ट तिब्बती में बात करते हैं। यह स्कूल में दिए जा रहे किसी निर्देश के कारण नहीं अपितु अपने माता पिता और दादा दादी के प्रशिक्षण के कारण हैं। मैंने सुना है कि यहाँ अमरीका में कुछ तिब्बती परिवार केवल अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं। यह अच्छा होगा यदि आप अपने बच्चों को तिब्बती, जो एक प्राचीन भाषा है, में रुचि लेने के लिए मार्ग दर्शन दें सकें। आप को जानना चाहिए कि आजकल, आधुनिक वैज्ञानिक, विशेषकर वे जो चित्त तथा मस्तिष्क में रुचि रखते हैं, प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान की गहराई और समृद्धि पर अचंभित हैं।"
इस पर टिप्पणी करते हुए कि उन्होंने सुना है कि विभिन्न बौद्ध केन्द्र अच्छा कार्य कर रहे हैं, परम पावन ने सुझाव दिया कि इन केन्द्रों को पूजा और अनुष्ठान से अधिक कार्यों के लिए काम में लाया जाना चाहिए। उन्हें शिक्षा का केन्द्र बनना चाहिए, ऐसे स्थान जहाँ लोग अध्ययन कर सकें और विचार विनिमय कर सकें। उन्होंने कांग्यूर और तेंग्यूर से उद्धृत विज्ञान और दर्शन के पहले आसन्न तिब्बती प्रकाशन और शीघ्र ही उसके चीनी अंग्रेजी और हिंदी में अनुवाद का उल्लेख किया। ये पुस्तकें एक नए सिरे से अध्ययन का आधार हो सकती है।