नमज्ञल विहार के विहाराध्यक्ष द्वारा कलश ले जाने के दौरान परम पावन भिक्षुओं के साथ शामिल हुए और निकट के सिंधु नदी, महानदी, जो तिब्बत के बाहर से पश्चिम की ओर बहती है, के किनारे तक गए। परम पावन की देखरेख में विहाराध्यक्ष ने नदी में रेत डाला और नदी के पानी के साथ कलश को कई बार धोया। जल की कुछ मात्रा वापस मंडप में लाई गयी और उसका उपयोग मंडल आधार धोने के लिए किया गया। उस प्रक्रिया के समाप्त होने पर मंडल आधार पर फूल की पंखुड़ियाँ बिखेरी गईं और परम पावन ने बीच में समापन प्रार्थना के लिए अपना आसन ग्रहण किया।
शिवाछेल प्रवचन स्थल से परम पावन कुछ ही दूरी पर स्थित केन्द्रीय बौद्ध अध्ययन संस्थान, चोगलमसर गाड़ी से गए, जहाँ उन्होंने पहले एक नए प्रतिमाओं के समूह की प्राण प्रतिष्ठा की, जो बुद्ध और उनके प्रथम पांच शिष्यों की थी। उन्होंने सभागार में प्रवेश किया जहाँ संकाय सदस्य और छात्र उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे और परम पावन की दीर्घायु के लिए जमयंग खेंचे की प्रार्थना का पाठ हो रहा था। निदेशक ने परम पावन का स्वागत किया और अपने स्वयं की शिक्षा के लिए अपनी कृतज्ञता का स्मरण किया और आज छात्रों के प्रशिक्षण के लिए अपना समर्पण घोषित किया।
संस्थान की प्रगति को देख परम पावन ने अपनी प्रशंसा व्यक्त की और विश्व भर में हर स्थान पर शिक्षा के महत्व की पुष्टि की। उन्होंने कहा:
"निस्संदेह हमें भौतिक प्रगति करने की आवश्यकता है, पर हमें आंतरिक विकास की भी जरूरत है। हमें अपने आंतरिक विकास के लिए प्रेरणा की आवश्यकता है। हमें धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की जरूरत है, ऐसी जिसका सार्वभौमिक आकर्षण हो, जो कि सभी धार्मिक परंपराओं के अनुयायियों का और उनका भी जो किसी परम्परा को नहीं मानते, का सम्मान करें। २१वीं सदी में एक सुखी तथा अधिक शांतिपूर्ण दुनिया बनाने के लिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता सबसे उपयुक्त और प्रासंगिक है।"
उन्होंने अपनी एक अथवा दूसरी तिब्बती बौद्ध परम्परा के प्रति मोह न रखते हुए बुद्ध की सामान्य शिक्षाओं पर अधिक ध्यान देने की सलाह को दोहराया । उन्होंने हाल ही में व्यापक बौद्ध साहित्य से निकाले गए बौद्ध विज्ञान से जुड़े दो संस्करणों के विमोचन की भी सराहना की । उन्होंने कहा कि वे आशा करते हैं , कि इन पुस्तकों का अध्ययन और अधिक शैक्षिक आधार पर हो और उनमें निहित ज्ञान , रुचि रखने वाले लोगों को उपलब्ध हो , फिर चाहे उनकी कोई भी निजी मान्यता हो ।
जब परम पावन चोगलमसर के ऊपर के अविकसित क्षेत्र के साबू थांग गाड़ी से गए, जहाँ लद्दाख बौद्ध संघ ( एल बी ए ) ने एक नई परियोजना प्रारंभ की है, तो हल्की बारिश हो रही थी। उन्होंने सर्वप्रथम एल बी ए, लोटस इको विलेज तथा पेसिव सौर हॉस्टल ब्लॉक, के नींव पत्थर का और उसके बाद महायोजना के एक बड़े ग्राफिक प्रतिनिधित्व का अनावरण किया। निदेशक ने समझाया कि उद्देश्, निर्धनों और जरूरतमंद लोगों को लाभ पहुँचाना है । डॉ. तोंडुप छेवांग ने समझाया कि परियोजना की प्रेरणा २०१० में अचानक आई बाढ़ के एक परिणाम के रूप में उत्पन्न हुई थी। परम पावन ने उत्तर दिया:
"धर्म मित्रों और अतिथियों, मैं अभी केवल एक संक्षिप्त यात्रा कर पा रहा हूँ, पर मैं आपके निमंत्रण से सम्मानित हूँ। मैं विगत चालीस वर्षों से लद्दाख आ रहा हूँ और मैंने कई स्थानों में विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से हुए प्रगति को देखा है। लद्दाखियों में मुसलमान, ईसाई और बौद्ध धर्म के लोग हैं, पर वे सभी लद्दाखी संस्कृति से प्रभावित हैं, जो सामान्यतः कुल मिलाकर बौद्ध हैं, शांति, अहिंसा और करुणा की संस्कृति। अतः उन मूल्यों को बढ़ावा देने की यह परियोजना निश्चित रूप से लद्दाख के विकास के लिए योगदान देगी।"
अपने समक्ष बैठे छात्रों की ओर देखते हुए उन्होंने उनसे मेहनत से पढ़ने के लिए कहा और उन्हें बताया कि उन्हें कितना पश्चाताप होता है कि जब वह उनकी उम्र के थे तो वह खेलना अधिक पसंद करते थे। उन्होंने घोषणा की कि वे परियोजना के लिए दलाई लामा ट्रस्ट से दस लाख रुपए का दान करना चाहेंगे, साथ में सिफारिश की कि कालचक्र अभिषेक कोष से कोई अधिशेष राशि भी उस ओर रखी जा सकती है।
"मैं आप से पुनः मिलूँगा।" उन्होंने एक मुस्कान के साथ कहा,"पर याद रखें जिस सच्चे विकास को हम खोज रहे हैं वह भवनों में नहीं, अपितु हमारे हृदयों तथा चित्त में है।"
प्रातः का अंतिम कार्यक्रम लेह शहर के किनारे पर था, जहाँ लेह की मुस्लिम समन्वय समिति, ने मध्याह्न के भोज के लिए परम पावन को आमंत्रित किया था। सईद नकवी ने अपनी स्वागत टिप्पणी में आपसी समझ को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों के लिए और सम्पूर्ण विश्व में शांति और सद्भाव का प्रतीक होने के लिए परम पावन की सराहना की। सैफउद्दीन ने विषय को उठाते हुए कहा:
"आज हमारे लिए एक महान दिन है कि हम परम पावन की उपस्थिति से गौरवान्वित हैं। हम शांति के लिए आपके काम की प्रशंसा करते हैं और आपको विश्वास दिलाते हैं कि इस्लाम हिंसा और रक्तपात की निंदा करता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अन्य कइयों की तरह हम तिब्बत में संकटों को हल करने के लिए आपके मध्यम मार्ग के दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं। हम मुसलमान और बौद्ध लद्दाख में लंबे समय से सद्भाव के साथ में रहते आए हैं और ऐसा करते रहेंगे। हम परम पावन की दीर्घायु और उनकी इच्छाओं की पूर्ति की कामना करते हैं।"
"मेरे मुसलमान आध्यात्मिक भाइयों और बहनों", परम पावन ने उत्तर दिया "आप ने इस बैठक का आयोजन किया और मुझे इसमें आमंत्रित किया, जिसके िलए मैं बहुत आभारी हूँ। कुबुम विहार के निकट एक छोटे से गाँव में जहाँ मैं पैदा हुआ था, मुस्लिम परिवार रहते थे इसलिए लंबे समय से मैं इस्लाम के लोगों के साथ परिचित हूँ। जब पाँच साल की उम्र में मैं ल्हासा पहुँचा तो लगभग १००० मुसलमान वहाँ रहते थे और जब भी कोई सरकारी कार्यक्रम होता तो मुसलमान प्रतिनिधि भाग लेते। उनमें से कई फुंदने वाली एक लाल टोपी पहनते थे।"
इस उल्लेख पर श्रोताओं में से एक आदमी जो इस तरह की एक टोपी पहने हुए था, उठकर खड़ा हो गया और परम पावन ने उसे छेड़ते हुए कहा:
"हाँ, बस ऐसे ही, एक ऐसे फुंदने के साथ जो आपकी दाढ़ी के साथ मेल खाती है।"
"आपने मुझे यह कहानी बताते हुए सुना होगा, पर १३वें दलाई लामा के पास एक जेब घड़ी थी जिसका उपयोग करना मैंने प्रारंभ किया। फिर एक दिन वह बंद हो गई और हमने एक विशेषज्ञ मुसलमान घड़ीसाज़ को उसे देखने के लिए आमंत्रित किया। उसने उसे ठीक िकया पर मुझसे गंभीर स्वर में बोला कि वह व्यक्ति जो अपनी जेब में घड़ी ले जाता है उसे ऐसा व्यवहार करना चाहिए मानो वह अंडा लेकर जा रहा है। एक सभ्य फटकार, कि मुझे और अधिक सावधान रहना चाहिए।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि १९५९ के बाद कई तिब्बती मुसलमानों ने तिब्बत छोड़ दिया और श्रीनगर में बस गए थे। उन्होंने कहा कि कई वर्षों तक वे उनसे मिलने में असमर्थ थे पर दो वर्ष पूर्व उन्होंने अपनी जान पहचान को एक नए सिरे से प्रारंभ किया। उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ और इस बात ने उनके मर्म को छू लिया कि उनके छोटे बच्चे एक ल्हासा लहज़े के साथ अच्छी तिब्बती बोल सकते थे, एक संकेत कि वे अभी भी अपने परिवार के अंदर तिब्बती का प्रयोग करते हैं।
१९७५ से अन्य लोगों के पूजा स्थलों की तीर्थ यात्रा का वर्णन करने के अतिरिक्त, जिसके कारण उन्होंने कई मस्जिदों की यात्रा की हैं, कई मुसलमान मित्र बनाए हैं उन्होंने ११ सितंबर २००१ के बाद की घटनाओं का संदर्भ दिया। उन्होंने वाशिंगटन में पहली वर्षगांठ स्मारक सेवा में सम्मिलित होने का और अपने दृढ़ विश्वास को व्यक्त करने का, कि मात्र इसलिए कि इसमें शामिल आतंकवादियों की एक मुस्लिम पृष्ठभूमि थी, एक पूरे समुदाय का सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता, का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि केवल मुसलमानों के बीच ही नहीं, बल्कि हिंदुओं, यहूदियों, ईसाइयों और बौद्धों में शरारती तत्व हैं, और इस तरह के आधार पर इन समुदायों में से किसी के बारे में सामान्यीकरण करना गलत और अनुचित होगा । उन्होंने कहा:
"मैं एक बौद्ध हूँ, पर अब मैं प्रायः इस्लाम की रक्षा के लिए आगे कदम उठाता हूँ। मैं प्रायः वह दोहराता हूँ जो मेरे मित्र, पूर्व मुख्यमंत्री, फारूख अब्दुल्ला ने मुझे िजहाद के बारे में समझाया, कि यह दूसरे लोगों पर आक्रमण बोलना नहीं है, पर अपने ही अशांत करने वाली भावनाओं का सामना करने के विषय में है। यदि आप किसी का अहित करने वाले हैं, पर अपने आप को रोक लेते हैं, तो वह जिहाद का एक उदाहरण है, जिसका आत्मानुशासन से बहुत कुछ लेना देना है।"
परम पावन ने सहिष्णु बहुलवाद के एक जीवंत उदाहरण के रूप में भारत की प्रशंसा की, एक ऐसा स्थान जहाँ समूचे विश्व के प्रमुख धर्म शांति से कंधे से कंधा मिलाकर एक साथ रहते हैं। उन्होंने मुंबई के छोटे पारसी समुदाय का उदाहरण दिया जो एक लम्बे समय से निर्भय होकर वहाँ फले फूले हैं। उन्होंने दोहराया कि भारत का उदाहरण एक ऐसा प्रारूप है जिसका पालन विश्व कर सकता है।
बर्मा और श्रीलंका में बौद्धों द्वारा मुसलमानों पर हो रहे हमले की रिपोर्ट सुन कर उन्हें हुए दुख के बारे में टिप्पणी करते हुए उन्होंने याद किया, कि उन्होंने उनसे अनुरोध किया था कि जब आक्रमण का विचार आए तो वे बुद्ध के मुख का स्मरण करें। परम पावन इसको लेकर सुनिश्चित हैं, कि यदि बुद्ध वहाँ उपस्थित हों तो वे पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करेंगे। एक समान संदर्भ में, मध्य पूर्व के विभिन्न भागों में सुन्नी और शिया समुदाय, तथा अफ्रीका के कुछ हिस्सों में ईसाइयों और मुसलमानों के बीच के संघर्ष के बारे में उन्होंने अपने श्रोताओं से अनुरोध किया कि वे उन उपायों के विषय में सोचें जिससे संयम बरतने के लिए वे अपने मुसलमान भाइयों को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि लद्दाखी मुसलमान अपने आप बहुत कुछ प्राप्त नहीं कर सकते, पर एक बड़े भारतीय मुस्लिम समुदाय के भाग के रूप में उनकी आवाज सुनी जाएगी।
अंत में, परम पावन ने उल्लेख किया कि यद्यपि उन्होंने उन्हें दोपहर के खाने के लिए आमंत्रित किया था, पर इस अवसर पर वे उसमें शरीक न होंगे क्योंकि उन्होंने रमजान का दिन का रोज़ा रखा है। उनके उन्हें चिढ़ाते हुए इस कथन से कि वे उनकी ओर से भी दुगुना खाएँगे, ने एक मैत्रीपूर्ण हँसी बिखेर दी।
कल, परम पावन अपनी सफलता के िलए व्यापक रूप से प्रशंसित और स्नेह के बहाव के अंत में, लेह से दिल्ली के लिए विदा लेंगे।