बंगलौर, कर्नाटक, भारत - ६ जनवरी २०१४ - क्राइस्ट विश्वविद्यालय आगमन पर परम पावन दलाई लामा का न केवल कुलपति थॉमस मैथ्यू ने, जो उन्हें उनकी कार से भवन में ले गए, पर छात्रों द्वारा भी, जो उन्हें देखने के लिए बालकनियों और सीढ़ियों पर भीड़ बनाए थे, द्वारा उत्साहपूर्ण स्वागत किया। वे अपने पुराने मित्रों बसेलिओस कार्डिनल क्लीमिस कैथोलिकोस और कुलपति पूजनीय डॉ. फादर थॉमस ऐेकारा से एक संक्षिप्त बातचीत के लिए मिले, इसके पहले कि कुलपति उन्हें क्राइस्ट विश्वविद्यालय के सभागार में ले जाएँ।
प्रारंभ में सभी उपस्थित खड़े हो गए जब क्राइस्ट विश्वविद्यालय वृंद ने राष्ट्रीय गान गाया। उसके बाद क्राइस्ट विश्वविद्यालय की नृत्य मंडली ने शास्त्रीय भारतीय नृत्य का एक भव्य प्रदर्शन किया। परम पावन तथा अन्य आध्यात्मिक नेताओं को दीप प्रज्ज्वलन के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया और जो वक्तव्य देने वाले थे, उन्होंने स्थान ग्रहण किया। जब परम पावन को मुख्य भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया, तो उन्होंने हमेशा की तरह अपने भाइयों और बहनों का अभिनंदन करते हुए, और यह कहते हुए कि वह कितने खुश हैं कि वे उनसे बात कर पा रहे हैं, प्रारंभ किया।
"यहाँ उपस्थित ५० वर्ष से भी अधिक उम्र के हम लोग २०सदी के हैं जबकि आप में से जो अभी तक ३० के नहीं हुए हैं, वास्तव में २१वीं सदी के हैं। मेरे संबंध में मेरा जन्म १९३५ में हुआ था जब चीन और जापान के बीच युद्ध छिड़ने वाला था। इसके बाद यूरोप में तनाव आया जो अंततः द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में फूट पड़ा जो अपने साथ यूरोप तथा अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों में भारी हिंसा लाया। अगला कोरियाई युद्ध था, जिसमें अधिक शक्तिशाली शस्त्र सैनिकों की लहरों के विरोध में उपयोग में लाए गए और उसके बाद अथक वियतनाम युद्ध। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि २०वीं शताब्दी में लगभग २०० करोड़ हिंसा के कारण मारे गए। यह २०वीं सदी का एक चिंतन अवशेष और धारणा है कि समस्याओं का समाधान बल द्वारा हो सकता है, और आपकी जय शत्रु के विनाश से जीती जा सकती है। जब समुदाय या राष्ट्र केवल आत्मनिर्भर थे तो इसका कुछ अर्थ निकला होता, परन्तु वास्तविकता यह है कि आज हम एक वैश्विक स्तर पर अन्योन्याश्रित हैं अतः युद्ध की अवधारणा समयानुकूल नहीं है।"
"हिंसा केवल दुख और पीड़ा लाता है। पर फिर भी हमारे यहाँ शस्त्र के उत्पादन के लिए कारखाने समर्पित हैं। क्या दूसरों को नष्ट करने वाले शस्त्रंों का निर्माण व्यापार करने का एक उत्तरदायी ढंग है? क्या हमें इसे शांति की एक शताब्दी बनाने की सोच नहीं रखना चाहिए? यदि हम ऐसा करें भी, तो इसका यह अर्थ नहीं कि वहाँ कोई समस्याएँ नहीं होगी, अवश्य होगी। जनसंख्या बढ़ने के लिए तैयार है, प्राकृतिक संसाधन और अधिक कम होने वाले हैं और जलवायु परिवर्तन हमें कठिनाई देंगे। इन समस्याओं से निपटने के लिए हमें अहिंसा को लागू करना आवश्यक है। कुछ लोग सोचते हैं कि अहिंसा दुर्बलता का संकेत है पर महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग ने इसका एक प्रभावी रूप में प्रयोग किया।"
परम पावन ने कहा कि २०वीं सदी की हिंसा के पश्चात २१वीं सदी को संवाद का युग होना चाहिए। उन्होंने कहा कि नैतिकता बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, और वह किसी भी मानव गतिविधि पर लागू की जा सकती है। उन्होंने बल दिया कि महत्त्वपूर्ण बात यह है कि नैतिकता कोई सुख साधन नहीं है अपितु मानव अस्तित्व का प्रश्न है। विज्ञान की अद्भुत उपलब्धियाँ हुई है, पर उनमें परमाणु और रसायनिक हथियारों की भारी विनाशकारी शक्ति शामिल हैं। यह संकेत है कि वैज्ञानिकों को नैतिकता द्वारा निर्देशित होने की आवश्यकता है।
परम पावन ने सुझाया कि नैतिकता प्रेरणा से संबंधित है क्योंकि कोई कार्य सकारात्मक है अथवा नकारात्मक यह उसकी प्रेरणा पर निर्भर करता है। यह निर्भर करता है कि कोई प्रेरणा करुणाशील और दूसरों के कल्याण की चिंता से हैं या केवल आत्मकेन्द्रितता द्वारा प्रेरित है। जब आप केवल अपने प्रति चिंतित हैं, तो आप को शोषण, जोड़ तोड़ करना, बदमाशी, धोखा देने और एक चरम स्थिति पर, अन्य लोगों की हत्या को नियंत्रित करने के लिए क्या है? प्रश्न हमारे चित्त और भावनाओं से संबंधित है।
कोई वस्तु मानवता की सहायता करती है या नहीं, नैतिकता पर निर्भर करता है। यहाँ तक कि धर्म जो शांति का स्रोत माना जाता है, संघर्ष का कारण बन सकता है जैसा कि कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट, सुन्नी और शिया, बौद्धों और मुसलमानों के बीच प्रकट तकरार के रूप में दिखाई देता है।
"क्या मैं इस ओर संकेत कर सकता हूँ", परम पावन ने शरारत भरे स्वर में पूछा, "ऐसा प्रतीत होता है कि आजकल धर्म भी भ्रष्ट हो सकता है। जर्मन बिशप की कहानी को देखिए, जो अपने राजसी जीवन शैली के लिए पोप द्वारा प्रताड़ित किए गए। ऐसा प्रतीत होता है कि कभी कभी धार्मिक लोगों में किसी भी मार्गदर्शक नैतिकता का अभाव है। हाल ही में मेक्सिको में बिशप विश्वविद्यालय में, मैं सोच रहा था कि क्या हम उसी समय धार्मिक होते हैं जब हम अपने चीवर पहने हैं, पर उस समय नहीं जब हम उन्हें उतार कर टांग देते हैं। धर्म के प्रति विश्वास की स्वीकृति एक निजी विकल्प है, पर यदि आप इसे स्वीकार करें तो आप को ईमानदार होना चाहिए। धार्मिक व्यक्तियों में नैतिकता के अभाव की संभावना विनाशकारी है और धार्मिक परंपरा के लिए संभावित रूप से हानिकारक है।"
जब तक मैं तिब्बत में था तो यह समझता था कि बौद्ध धर्म सबसे श्रेष्ठ है पर जब से मैं यात्रा करने लगा और अन्य धर्म के अभ्यासियों से िमला और उनके अनुभव जाने तो मेरी सराहना बढ़ गई है। मैं उन लाखों के प्रति जागरूक हुआ जिन्हें सदियों से ईसाई परंपरा से लाभ हुआ है। मैं ईसाई भाइयों और बहनों के अपने विश्वास से प्रेरित दुनिया भर में शिक्षा के महान योगदान को समझ गया हूँ।
"यद्यपि जहाँ कभी हमने एक आश्वस्त भाव से सोचा होगा कि एक सत्य और एक धर्म है, वह जहाँ एक व्यक्तिगत स्तर पर उचित है पर एक समुदायिक स्तर पर वास्तविकता यह है कि हमारे कई सत्य और कई धर्म हैं। हमारी सभी धार्मिक परंपराएँ, प्रेम, करुणा, सहनशीलता, क्षमा और आत्म अनुशासन का एक आम संदेश देती है। परन्तु धर्मों की इस बहुलता के कारण, चाहे यह अथवा वह धर्म कितना ही अच्छा क्यों न हो पर कोई भी सार्वभौमिक रूप से लागू न हो पाएगा। मैंने पढ़ा है कि आज जीवित ७ अरब लोगों में १ अरब स्वयं को विश्वास न करने वाला कहकर घोषणा करते हैं। स्पष्ट रूप से कहा जाए तो ६ अरबोंं में तथाकथित धार्मिक कहलाने वाले लोग सच्चे नहीं हैं। धर्म की पहुँच से बाहर इतने लोगों के होने के कारण धर्मनिरपेक्ष नैतिकता एक बढ़ती आवश्यकता है। भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्ष शब्द धर्म को नकारना नहीं है, अपितु बिना किसी पक्षपात के सभी धर्मों को स्वीकार करने और उनके प्रति सम्मान रखना है।"
परम पावन ने कहा कि उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ बात की है जो धर्म में विश्वास नहीं करते परन्तु नैतिकता की आवश्यकता पर विश्वास करते हैं। कुछ वैज्ञानिकों ने हमारे सामान्य स्वास्थ्य पर नैतिक व्यवहार के प्रभाव का परीक्षण किया है। आत्मकेन्द्रितता, भय, अविश्वास, संदेह और अकेलेपन की ओर ले जाता है। दूसरी ओर, एक करुणाशील व्यवहार, सौहार्दता हमारे आत्मविश्वास और सामान्य स्वास्थ्य को बढ़ाती है। यह आगामी जीवन, स्वर्ग या निर्वाण की बात नहीं है, यह इस जीवन के विषय में है, यहाँ और अभी।
"वैश्विक अर्थव्यवस्था ने हमारे विश्व को एक कर दिया है। हमें मानवता की एकता की इसी भावना की आवश्यकता है। यदि हम यथार्थवादी, सच्चे और ईमानदार हों तो हम किसी एक अथवा सभी के साथ संवाद कर सकते हैं। धर्मनिरपेक्ष नैतिकता धर्म का विरोध नहीं करता पर धर्म में विश्वास और न विश्वास करने वाले को शामिल करता है। हमें दूसरों को अपने जैसा ही मानव समझने की आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति सुखी रहना चाहता है और सभी को उस लक्ष्य को पूरा करने का अधिकार है। इसीलिए ७ अरब मनुष्य के संदर्भ में, हमें धर्मनिरपेक्ष नैतिकता लाने की आवश्यकता है।"