हैमबर्ग, जर्मनी - २६ अगस्त २०१४ - जब परम पावन तड़के ही प्रवचन स्थल कांग्रेस केन्द्र की ओर निकल पड़े तो सड़कें शांत थीं और उनके होटल से परे उद्यान खाली था। विशाल सभागार भी लगभग खाली था जब उन्होंने मंच पर अवलोकितेश्वर अभिषेक की तैयारी के लिए मंडल मंडप के समक्ष आसन ग्रहण किया। जब तक वे तैयार हुए श्रोता आ चुके थे और उन्होंने अपने आसन से उनका अभिनन्दन किया ः
"सुप्रभात, जैसा मैंने कल उल्लेख किया तंत्रयान का अभ्यास, प्रभावी और सार्थक हो इसके लिए हमें समझना आवश्यक है कि जिस तरह वे दृश्य होती हैं उसके बावजूद वस्तुएँ एक भ्रांति की तरह हैं क्योंकि उनमें आंतरिक अस्तित्व का अभाव है। मैं आशा करता हूँ कि आप में से जो इसे गंभीरता से लेते हैं वे कल रात और आज प्रातः शून्यता और बोधिचित्त के विषय पर सोचने में सक्षम हुए होेंगे ।"
परम पावन ने समझाया कि जब बुद्ध ने २५०० वर्ष पूर्व देशना दी तो अन्य दृष्टिकोण रखने वाले विचारकों के साथ चुनौतियाँ तथा तर्क आम बात थी। यह बात नागार्जुन के समय में भी सच था और ऐसी चुनौतियों को अपने दृष्टिकोण को पैना करने के एक अवसर के रूप में माना जाता था। जहाँ पालि परंपरा ने बुद्ध की सार्वजनिक शिक्षाओं को लिखित रूप दिया, संस्कृत परंपरा में चुने शिष्यों को दी गई शिक्षाएँ सम्मिलित थीं। नागार्जुन, मैत्रेय और भावविवेक सभी ने तर्क दिया कि संस्कृत परंपरा में बुद्ध की प्रामाणिक शिक्षाएँ बुद्ध द्वारा देशित की गईं थीं।
परम पावन ने सूचित किया कि जब उनके मित्र प्रोफेसर उपाध्याय नेपाल में कालचक्र पर शोध कर रहे थे तो उन्हें ताड़ पत्ते की पांडुलिपि मिली जिसका संबंध तंत्र से था। उन्होंने उसकी लेखन की शैली को पहचानकर उसे आर्यदेव की बताया और वे इस बात के लेकर आश्वस्त थे कि इसका प्रमाण न केवल आर्यदेव अपितु उनके गुरु नागार्जुन की तंत्र के प्रति रुचि और उसके अभ्यास के साथ भी संबंधित था। परम पावन ने उल्लेख किया कि चन्द्रकीर्ति और दीपांकर अतीश के लेखन में संदर्भ में उनके तांत्रिक अभ्यास में उनकी रुचि संकेतित होती है। यह बौद्ध तंत्र की एक वास्तविक परंपरा के अस्तित्व की पुष्टि करता है।
अत्यंत ध्यानपूर्वक अपने श्रोताओं को अवलोकितेश्वर अभिषेक की प्रक्रिया का मार्गदर्शन करते हुए, परम पावन ने एक प्रारंभिक अभ्यास के रूप में उनसे सर्वप्रथम बोधिसत्वचर्यावतार के दूसरे अध्याय तथा तीसरे अध्याय के २३वें तक के श्लोकों का पाठ करने को कहा। उसके बाद उन्होंने बोधिचित्तोत्पाद तथा बोधिसत्व व्रतों की प्रक्रिया का नेतृत्व किया। अभिषेक के अंत में, जिसके साथ यह लघु प्रवचन श्रृखंला भी समाप्त हुई, उन्होंने श्रोताओं को उनके ध्यान देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने उनसे कहा कि महत्वपूर्ण बात दूसरों की सहायता करते हुए अपने जीवन को सार्थक करना, अहित करने से स्वयं को रोकना और एक शांत चित्त बनाए रखने का प्रयास करना है।
क्रिस्टोफर स्पिट्ज, जो परम पावन के जर्मन दुभाषिया के रूप में अपनी भूमिका के अतिरिक्त इन प्रवचनों की आयोजन समिति के प्रमुख भी हैं, परम पावन को वहाँ आने के लिए धन्यवाद और प्रशंसा व्यक्त करने के लिए आगे आए। उन्होंने उनका उन लोगों को धन्यवाद दिया, जिन्होंने कार्यक्रम का समर्थन किया था जिनमें कई सैकड़ंो स्वयंसेवक शामिल थे िजनकी सहायता के बिना यह संभव न हो पाता। पारदर्शिता के हित में उन्होंने कार्यक्रम की एक वित्तीय रिपोर्ट दी, जिसमें स्पष्ट था कि वास्तव में एक वित्तीय अधिशेष था जिसका उपयोग अच्छे कार्य के िलए िकया जाएगा जैसे हैमबर्ग क्षेत्र में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता और बौद्ध विज्ञान पुस्तक का अनुवाद। उन्होंने इस आशा की अभिव्यक्ति के साथ समाप्त किया कि दर्शकों में से कई आने वाली फरवरी में मिल सकते हैं जब परम पावन बेसल, स्विट्जरलैंड में शिक्षा देंगे। परम पावन के अंतिम शब्द थे:
"सुधार करने का प्रयास करें। बहुत अधिक आशा न रखें, पर हतोत्साहित न हों अपना उत्साह बनाए रखें; आप प्रगति करेंगे। धन्यवाद।"
सभागार सराहना से भरे तालियों और मुस्कुराते चेहरों से भरा हुआ था।
मध्याह्न के भोजनोपरान्त परम पावन ने सम्पूर्ण जर्मनी भर के प्रमुख पत्रकारों के एक समूह के साथ चर्चा की। विषयों में आधुनिक तकनीक जिनका अधिकांश रूप से वह समर्थन करते हैं, इस प्रावधान के साथ कि वह हमारी सेवा करे न कि हम उसकी सेवा करें। युद्ध के संदर्भ में उन्होंने कहा कि वह वास्तव में लड़ने वालों से पूछना चाहेंगे कि क्या वे वास्तव में ऐसा सोचते हैं कि लड़ने से समस्याओं का समाधान निकलेगा।
"लोग हिंसा के नशे में हैं," उन्होंने कहा, "उन्हें रोकना कठिन है।"
उन्होंने अतीत से सीखने और उसकी पुनरावृत्ति से बचने की आवश्कता पर बल दिया। जिस वैश्वीकृत विश्व में हम रहते हैं उसमें केवल 'मेरा समाज' यहाँ तक कि 'मेरा देश' के हित तक अपने को सीमित करना अब सहायक न होगा। हमें यह सोचना होगा कि सम्पूर्ण मानवता के लिए क्या हितकारी है। यह पूछे जाने पर कि क्या ऐसे अवसर हैं जब शक्ति का प्रयोग केवल एकमात्र समाधान है, परम पावन ने स्वीकार किया कि ऐसा संभव है, पर इसका निर्णय करना कठिन है। वे मानते थे कि प्रायः एक अहिंसात्मक दृष्टिकोण की उपेक्षा की जाती है। उन्होंने उल्लेख किया कि, एक ऐसा सुझाव दिया गया था कि संभव है कि नोबेल पुरस्कार विजेता, सेवानिवृत्त नेता, वैज्ञानिक, और राष्ट्रपति हवेल जैसे चिंतक दूसरे इराक युद्ध से पहले मध्यस्थता करने के लिए गए हों। वे जब राष्ट्रपति हवेल के साथ मिले तो उन्होंने इस पर चर्चा की थी पर उस समय तक बहुत देर हो चुकी थी। उन्होंने इस पर सहमति जताई कि यदि आज अधिक नेता महिलाएँ होतीं तो विश्व एक और अधिक शांतिपूर्ण स्थान होगा।
तिब्बत की स्थिति के विषय में परम पावन ने टिप्पणी की, कि समस्याओं में से एक तिब्बत की समृद्ध संस्कृति की जानबूझकर उपेक्षा करना है। उन्होंने कहा कि जहाँ चीनी अपनी संस्कृति और भाषा से अत्यधिक प्यार करते हैं, उसी तरह तिब्बती भी अपनी संस्कृति से प्यार करते हैं। कठिनाई यह है जब चीनी अधिकारी तिब्बती संस्कृति के प्रति अपर्याप्त सम्मान दिखाते हैं। यह पूछे जाने पर कि विदेशी सरकारें किस प्रकार सहायता कर सकती हैं, उन्होंने कहा कि यह कहना कठिन था, पर उल्लेख िकया कि अभी भी तिब्बती समस्या को लेकर बहुत समर्थन है। उन्होंने जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल की सराहना की जिन्होंने हाल ही में खुले तौर पर मानव अधिकारों का सम्मान करने की जरूरत के बारे में चीन में सिंगुआ विश्वविद्यालय में स्पष्ट रूप से बोला था। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में १.३ अरब चीनी लोगों को यह जानने का अधिकार है कि वास्तव में क्या हो रहा है और उस आधार पर गलत और सही के बीच िनर्णय करने की क्षमता कर सकता है। सरकारी सेंसरशिप, जो एक प्रकार से लोगों को मूर्ख बनाना है, अनैतिक तथा असहायक दोनों है।
अंत में परम पावन से पोप फ्रांसिस के बारे में उनकी धारणा में पूछा गया था और उनका उत्तर था:
"बहुत अच्छा। जर्मन बिशप, खारिज कर उन्होंने अच्छा किया जो अपने चर्च में संतोष का प्रवचन देते थे, पर स्वयं आरामदायी जीवन जीते थे। मैं बहुत प्रभावित हुआ। मैं उनके फिलीस्तीन और इजरायल के बीच शांति निर्माण करने के प्रयास का भी प्रशंसक हूँ। संभव है यह सफल न हो परन्तु यह अच्छा प्रयास था।"
लेशलै के लिए एक छोटी ड्राइव के बाद, जर्मन संसद के उपराष्ट्रपति, ग्रीन पार्टी की श्रीमती क्लाउडिया रोथ, टी आइ डी और तिब्बती समुदाय के अध्यक्ष श्री वोल्फगैंग ग्रेडरऔर राष्ट्रपति जम्पा कुंगाशर ने थियेटर के बाहर परम पावन का स्वागत किया। वे उन्हें तिब्बत समर्थक दल जर्मनी की २५वीं वर्षगांठ और जर्मनी में तिब्बती समुदाय की ३५वीं वर्षगांठ की एक बैठक में उन्हें ले गए। उनके आगमन पर १६०० से अधिक लोगों ने उल्लास पूर्वक उनका अभिनन्दन किया। स्वागत के प्रारंभिक शब्दंो के बाद, सब तिब्बती राष्ट्रीय गान के लिए खड़े हुए। इसके बाद तिब्बत समर्थक दल (टी एस जी) की गतिविधियों को बताने के लिए एक छोटी स्लाइड शो का आयोजन किया गया था।
परम पावन ने टी एस जी के समर्थन की गहरी सराहना की और कहा कि उन्हें ज्ञात था कि वे कितने सक्रिय थे। उन्होंने प्राकृतिक वातावरण के संरक्षण और तिब्बत में जलवायु परिवर्तन की समस्या के कारण एशिया में बसने वाले १ अरब लोगों पर पड़ते प्रभाव, जो तिब्बत की नदियों पर निर्भर हैं, पर बात की। उन्होंने तिब्बती संस्कृति, जो शांति और अहिंसा की संस्कृति है और तिब्बत के बौद्ध परंपराओं के संरक्षण के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की। परम पावन ने उल्लेख किया कि उन्होंने अपना समस्त राजनैतिक उत्तरदाियत्व एक युवा, गतिशील निर्वाचित नेता, डॉ लोबसांग सांगे को सौंप दिया है, जो उनके समक्ष आगे की पंक्ति में बैठे थे।
बैठक श्रीमती क्लाउडिया रोथ, श्री ग्रेडर और श्री कुंगाशर के साथ खाता के आदान प्रदान के साथ समाप्त हो गई। श्रोताओं ने उल्लास व्यक्त किया और कई इस आशा के साथ कि मंच छोड़ने से पहले वे परम पावन से हाथ मिला पाएँगे, सामने आए। कल परम पावन हैमबर्ग की इस छोटी किन्तु उल्लास से भरी यात्रा के पश्चात भारत लौटने के लिए उड़ान भरेंगे।