लेह, लद्दाख, भारत - ३ जुलाई २०१४ - एक दिन और रात की हल्की पर लगातार वर्षा ने रात का तापमान कम कर दिया था और धूल बैठ गई थी, जब परम पावन दलाई लामा ने शिवाछेल के अपने निवास स्थल से मंडप जाने के लिए बाहर कदम रखा, जहाँ से वे ३३वीं बार कालचक्र अभिषेक देंगे। साथ ही यह ६०वां वर्ष है जब उन्होंने प्रथम बार ल्हासा के नोरबुलिंखा में दिया था। अधिकारियों और अंगरक्षकों के दल से घिरे परम पावन द्रुत गति से चल रहे थे पर साथ ही सड़क पर कतारबद्ध शुभचिन्तकों की शुभकामनाओं का प्रयुत्तर भी दे रहे थे।
उनके मंडप युक्त टेबल, जिस पर आने वाले दिनों में कालचक्र रेत मंडल का निर्माण होगा और जिसके पीछे एक बड़ा कालचक्र इष्टदेव का पिप्पली थंका है, के समक्ष अपना आसन ग्रहण करते हुए प्रार्थना प्रारंभ हुई। परम पावन के एक ओर नमज्ञल विहार के भिक्षु, जो कालचक्र के अभ्यास और उसके अनुष्ठानों के व्यवहार में निपुण हैं, और दूसरी ओर स्थानीय लद्दाखी और अतिथि लामा के बीच परम पावन दलाई लामा ने पहले जे चोंखापा के 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तव' का पाठ किया। इसके बाद सभा ने कालचक्र तंत्र से पाठ प्रारंभ करने के पहले कालचक्र छह सत्रीय गुरु योग का पाठ किया।
अभिषेक प्रक्रिया के उद्घाटन के बाद परम पावन मंडप के सामने आए और श्रोताओं का अभिनन्दन किया। सिंहासन पर अपना आसन ग्रहण करने के पश्चात उन्होंने उन्हें संबोधित किया:
"आज हम प्रारंभिक शिक्षाएँ शुरू करेंगे। धर्म का उद्देश्य हमें अपने आप को दुख से बचाना है। हम समस्याओं से घिरे हैं और यदि हम उनके स्रोत देखें तो हम पाते हैं कि वे हमारे स्वार्थ के कारण उत्पन्न होती हैं, क्योंकि हम दूसरों की कीमत पर हम अपने स्वयं के हितों को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं। हमारी विभिन्न धार्मिक परंपराएँ इन समस्याओं को कम करने के लिए मौजूद हैं। वे सभी हमें प्रेम और करुणा, सहनशीलता, धैर्य और संतोष के विकास के माध्यम से दुख पर काबू पाने के उपाय सिखाते हैं। संस्कृत शब्द धर्म ऐसी भावना, जो हमें दुख से उबरने में सहायता करे, का अर्थ अभिव्यक्त करता है।"
उन्होंने आगे कहा कि जहाँ ऐसा कहा जाता है कि विश्व में १ अरब आस्थाहीन लोग हैं, वहाँ ६ अरब ऐसे हैं जिनकी कुछ धार्मिक आस्था है। हमारे सभी धर्म दुख पर काबू पाने में हमारी सहायता करते हैं। कुछ ईश्वरवादी धर्म हैं, जैसे ईसाई, हिंदू, इस्लाम और यहूदी, जो अपना विश्वास किसी सृजनकर्ता ईश्वर पर करते हैं और कुछ अनीश्वरवादी परम्पराएँ हैं, जैसे कुछ सांख्य, जैन और बौद्ध जो कार्य कारण सिद्धांत पर निर्भर करते हैं। बौद्ध धर्म में यह शिक्षा दी जाती है कि यदि तुम गलत करोगे तो उसके नकारात्मक परिणाम होंगे। दूसरों का अहित करने से बचने की आवश्यकता है। बुद्ध की शिक्षाओं में दृष्टि को प्रतीत्य समुत्पाद के रूप में व्याख्यायित किया गया है, जबकि जिस आचरण का सुझाव दिया गया है, वह अहिंसा है, जिसमें दूसरों का अहित करना नहीं, अपितु सहायता करना निहित है। हम अहिंसा का अभ्यास इसलिए करते हैं, क्योंकि हम सुखी होना चाहते हैं।
परम पावन ने समझाया कि जिस प्रारंभिक प्रक्रिया का वह आयोजन कर रहे हैं, उसके दौरान वज्राचार्य अभिषेक की अवधि में शिष्यों को अपनी देख रेख में ले लेता है। अभिषेक में बाधा न आए, अतः संभावित बाधित करने वाली शक्तियों को एक अानुष्ठानिक रोटी चढ़ाई गई। तत्पश्चात जहाँ अभिषेक होना है उसके आस पास उसे सुरक्षित रखने के लिए वज्राचार्य ने एक वज्र का बाड़ा बनाने की कल्पना की। उन्होंने शिष्यों से छंद की पंक्तियाँ, नकारात्मक कर्मों पर काबू पाने के लिए जो हमने और अन्य लोगों ने अतीत में किए हैं, को दोहराने के लिए कहा। उन्होंने अपने शिष्यों को सलाह दी कि वे अब से दूसरों की सहायता करें और उन्हें नुकसान न पहुँचाएँ। गदेन ठि रिनपोछे ने शिष्यों की ओर से मंडल पटल पर यह बताने के लिए एक नीम की छड़ी फेंकीं कि यदि और भी दूर करने वाली बाधाएँ हैं।
परम पावन ने टिप्पणी की, कि दोनों पालि और संस्कृत बौद्ध धर्म की परंपराओं में 'मैं' या स्वयं की भ्रांत धारणा, जिससे ग्राह््यता आती है, को एक दुष्ट चित्त के रूप में माना जाता है। हममें एक आत्म की भावना है जो हमारे शरीर और चित्त का नियंत्रक है, पर वास्तव में यह मात्र पंच स्कंधों के आधार पर ज्ञापित है, जिस तरह एक गाड़ी अपने भागों के आधार पर ज्ञापित की जाती है।
परम पावन ने स्पष्ट किया कि वे और नमज्ञल विहार के भिक्षु आगामी दो दिनों के लिए प्रारंभिक प्रार्थनाएँ और अनुष्ठान जारी रखेंगे और प्रारंभिक प्रवचन ६ - ८ जुलाई की प्रातः होंगे। ९ जुलाई को मध्याह्न के भोजन के बाद, नमज्ञल भिक्षु समर्पण नृत्य का प्रदर्शन करेंगे। स्थानीय लोग, और अन्य कोई जो इसमें सम्मिलित होना चाहते हैं, वे भी इस अवसर पर अपने नृत्य की भेंट प्रस्त्ुत कर सकते हैं। कालचक्र से संबंधित प्राथमिक अभिषेक १० जुलाई को होगा, जबकि वास्तविक अभिषेक ११ और १२ जुलाई को दिया जाएगा। १३ जुलाई को शिष्यों के लिए एक दीर्घायु अभिषेक होगा और परम पावन की दीर्घायु के लिए भेंट दी जाएगी।
अभिषेक के पहले और अभिषेक के दौरान परम पावन ने कहा कि प्रमुख बात है कि सहृदयता का विकास करें। इसको करने का सबसे अच्छा उपाय है, बोधिसत्वों की तरह जो दूसरों के कल्याण पर केन्द्रित रहते हैं, सहृदयता का विकास, बोधिचित्त। उन्होंने कहा कि इस सरल छंद का पाठ करना सहायक होगा:
बुद्ध, धर्म और परम संघ की
शरण में जाऊँ जब तक प्रबुद्धता न मिले
मेरे द्वारा किए गए दान आदि से
जगत के कल्याण के लिए बुद्धत्व प्राप्त करूँ।
उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त शून्यता की समझ सहायक है, क्योंकि शून्यता की समझ क्लेशों पर काबू पाने का मार्ग है। ऐसा हम नागार्जुन के 'मूल माध्यमकारिका' के २४वें अध्याय से कुछ छंदों के पाठ से कर सकते हैं।"
जो उत्पन्न होता है निर्भर होकर
उसे शून्यता कहते हैं
चँूकि वह ज्ञापित है
वह स्वयं मध्यम मार्ग है।
ऐसा कोई धर्म नहीं
जो निर्भर न हो
इसलिए ऐसा कुछ नहीं
जो अशून्य हो।
अभिषेक के संबंध में जो भी परिवर्तन होगा वह हमारे अंदर होगा। जिस तरह हम रोग पर काबू पाने के लिए औषधि लेते हैं, हमें अपनी नकारात्मक भावनाओं पर काबू पाने के लिए अभ्यास की आवश्यकता है।
परम पावन ने यह भी उल्लेख किया है कि बौद्ध धर्म के अतिरिक्त अन्य परम्पराओं से संबंध रखने वाले, जो इन प्रवचनों में भाग ले रहे हैं वे सहृदयता के विकास में ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। आंतरिक परिवर्तन के माध्यम से ही हम कालचक्र अभिषेक में भाग लेने के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं।
प्रवचन स्थल से परम पावन चोगलमसर के तिब्बती आवास में गाड़ी से गए, जहाँ लेह के उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक, शहरी विकास मंत्री रिगज़िन जोरा और स्थानीय तिब्बती प्रतिनिधियों की उपस्थिति में उन्होंने एक नए तिब्बती सामुदायिक भवन का उद्घाटन किया। इसका निर्माण दलाई लामा ट्रस्ट की वित्तीय सहायता से हुआ है। हॉल के अंदर उन्होंने दीवार की कुछ तस्वीरों पर टिप्पणी की। अपने पंडित नेहरू के साथ एक तस्वीर देखकर उन्होंने कहा कि उस समय वह रेशमी चोगा पहनते थे, जिसे उन्होंने शरणार्थी बनने के बाद छोड़ दिया है। अपनी माँ की एक तस्वीर पर उन्होंने टिप्पणी की, कि वह अत्यंत दयालु थीं और उन्होंने ही उनके हृदय में करुणा का बीज बोया था।
चोगलमसर टी सी वी स्कूल में जाकर उन्होंने व्हीलचेयर तक सीमित और कमज़ोर व्यक्ति जो कतार बद्ध थे, का अभिनन्दन करने और उन्हें सांत्वना देने के लिए समय निकाला। छात्रों और शिक्षकों की एक बड़ी सभा के समक्ष, टी सी वी स्कूलों के कल्याण और विकास हेतु उनके समर्पण के लिए अमा जेचुन पेमा और गेन लोबसंग तेनजिन के प्रति आभार के रूप में एक पुरस्कार प्रदान किया।
अपने सलाह के शब्दों में परम पावन ने संकेत दिया कि पुरातात्विक साक्ष्य सुझाते हैं कि तिब्बत में ३०,००० वर्ष पहले भी लोग थे और इस तरह तिब्बती एक बहुत प्राचीन जाति रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे सुझाव हैं, कि वहाँ सम्राट सोंगचेन गांपो के पूर्व शांगशुंग लिपि का एक रूप अस्तित्व में था पर उनके राज्य काल में बौद्ध साहित्य का अनुवाद हिमवन्त की भाषा में करने के लिए लिखित तिब्बती का निर्माण किया गया। आज, नालंदा परंपरा तिब्बती में संरक्षित है और इस परंपरा को व्यक्त करने के लिए तिब्बती सबसे व्यापक भाषा बनी हुई है फिर चाहे आप इसे बौद्ध दर्शन के रूप में देखें या बौद्ध विज्ञान के रूप में।
उनके समक्ष एकत्रित हुए तिब्बतियों की बड़ी संख्या, विशेषकर जो चंगथंग से आए थे, का अभिनन्दन करते हुए उन्होंने कहा:
"तिब्बती लोगों को अपने इतिहास में कई आपदाओं का सामना करना पड़ा है और उन पर काबू पाना पड़ा है। निश्चिंत रहें कि इस समय भी हम जिन कठिनाइयों का सामना हम कर रहे हैं अंततः उन पर विजय प्राप्त करेंगे। यहाँ के छोटे बच्चे भविष्य के बीज हैं। अतीत को परिवर्तित नहीं किया जा सकता पर यदि हम प्रयास करें तो भविष्य आकार देने के लिए हमारा है। निर्वासन में तिब्बती समुदाय ने, कई असफलताओं के बावजूद, काफी हद तक प्रगति और विकास प्राप्त किया है जिसका प्रमुख कारण तिब्बत में हमारे ६ लाख भाइयों और बहनों के द्वारा हमें दी जा रही प्रेरणा है।"
"हमारे देश में तिब्बती लोग चीनी अत्याचार और हमारी भाषा, धर्म और संस्कृति और प्राकृतिक पर्यावरण को दूषित करने के दमन का विरोध करते हैं। उनकी तरह हम अभी भी अपनी धरोहर पर जोर करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तिब्बतियों को आशा नहीं छोड़नी या अपने उत्साह को कम नहीं करना चाहिए; हमें अपनी चुनौतियों का सामना करने में परिश्रमी तथा ध्यान केंद्रित किया हुआ होना चाहिए।"
"अधिकांशतः तिब्बती निर्वासन में अच्छे और ईमानदार लोग हैं और हमारे पड़ोसी हमें स्नेह की दृष्टि से देखते हैं। इस जीवन का उद्देश्य है, एक अच्छा, पारदर्शी और सहृदय व्यक्ति होना। हम सभी को मित्रों की आवश्यकता होता है और ईमानदारी, विश्वास और सहृदयता मित्रों को जीतने का उपाय है। हम अवलोकितेश्वर के शिष्य हैं और हम मणि मंत्र का पाठ करते हैं पर हमें उसके अर्थ को भी अभ्यास में लाना चाहिए। शरण गमन और बोधिचित्त की प्रार्थना की तरह, उसका पाठ करना अच्छा है, पर हमें उसके अर्थ पर भी चिंतन करना चाहिए। हम जन्म से बौद्ध हैं और हम कर्म के नियम में विश्वास करते हैं, कि जो अच्छा हम कर रहे हैं वह हमारे लिए भविष्य में सहायक होगा। बस मुझे इतना ही कहना है।"
जैसा परम पावन ने घोषणा की, कालचक्र अभिषेक का प्रारंभिक प्रवचन, जो नागार्जुन के ग्रंथों 'रत्नावलि' और 'सुहृल्लेख' पर केन्द्रित है, ६ जुलाई से प्रारंभ होगा।