नई दिल्ली, भारत, २० मार्च २०१४ (हिंदुस्तान टाइम्स) - तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने गुरुवार को कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के लिए अपने समर्थन का और दिल्ली के तहीरपुर के कुष्ठ रोगियों के लिए एक परिसर - कस्तूरबा ग्राम कुष्ठ आश्रम, के लिए १० लाख की राशि देने का वचन दिया।
"जो लोग विलासिता पर धन खर्च करते हैं वे मूर्ख हैं। उन्हें उन लोगों पर धन खर्च करना चाहिए जो निर्धन और ज़रूरतमंद हैं। यह भगवान की सेवा करने का सबसे अच्छा उपाय है," आध्यात्मिक नेता ने कहा।
भारत में अप्रैल २०१२ और मार्च २०१३ के बीच कुष्ठ रोग के १.३५ लाख नए मामले दर्ज िकए गए थे। दलाई लामा ने कुष्ठ रोगियों की मदद करने के लिए आगामी पाँच वर्षों तक, उनके ट्रस्ट को उनकी पुस्तकों की बिक्री से रॉयल्टी की जो राशि प्राप्त होती है, उसका उपयोग करने की इच्छा अभिव्यक्त की।
"एक मुस्कुराता व्यक्ति उस व्यक्ति से सदा बेहतर है जो धनवान और स्वस्थ है, क्योंकि वे मुस्कुराना भूल चुके हैं। चाहे व्यक्ति शारीरिक कठिनाइयाँ झेल रहा हो, पर वह मुस्कुरा रहा है और उसका मस्तिष्क ठीक से कार्य कर रहा है। निराश होने का कोई कारण नहीं है। एक व्यक्ति के जीवन में आत्मविश्वास और गरिमा बहुत महत्त्वपूर्ण है और यदि व्यक्ति में वह है, तो दुःखी होने की कोई आवश्यकता नहीं," आध्यात्मिक नेता ने कहा।
परिसर के निवासियों को उनकाे आगमन ने हर्ष से भर दिया।
"उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं ठीक था। उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और कहा कि मैं स्वस्थ बना रहूँ। मैंने उन्हें बताया कि मुझे ठीक से देखने में कठिनाई होती है। मुझे उनसे बात कर वास्तव में बहुत अच्छा लगा।" पी विरक्कन यश बवदेल ने बताया, जो लगभग २५ वर्षों से कुष्ठ रोग परिसर की कालोनियों में से एक में रह रहे हैं।
५५ वर्षीय झाली देवी के अनुसार, उसके जैसे निवासी पिछले ३०-४० वर्षों से परिसर में रह रहे हैं, परन्तु सुविधाओं का अभाव अभी भी एक समस्या है। "हम भीख माँगकर जीवन चलाते हैं," उसने कहा।
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लेडी श्री राम कॉलेज की यात्रा
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने गुरुवार को दो नई सुविधाओं का उद्घाटन किया - एक नया शैक्षणिक ब्लॉक और शांति का एक केंद्र ।
कॉलेज की कक्षा क्षेत्र में भरत राम शैक्षणिक परिसर कुछ नई सुविधा िलए एक अतिरिक्त नई सुविधा है। इसमें व्याख्यान के लिए १६ कमरे हैं जिसकी क्षमता २५- से १०० विद्यार्थियों की है, साथ ही इसमें प्रत्येक में १०० विद्यार्थियों की क्षमता लिए सेमिनार के कमरे हैं। इस भवन में तीन मंज़िलें हैं।
दूसरा भवन - आंग सान सू की शांति का केंद्र - अनुसंधान और शिक्षण के उद्देश्य को पूरा करेगा।
केंद्र का उद्घाटन करने के पश्चात दलाई लामा ने छात्रों से सफलता, नैतिकता और सुख के बारे में बात की।
"मेरी पीढ़ी, चाहे अच्छी रही हो अथवा बुरी, जा चुकी है। अब यह आपका समय है। आप के पास एक बेहतर विश्व बनाने का अवसर है। हमारे जीवन की कई समस्याओं के कारण, हमारे अपने निर्मित हैं। हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली भौतिक दिशा की ओर उन्मुख है। यह पर्याप्त नहीं है। हमें निरंतर प्रेम और करुणा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है," उन्होंने कहा।
"ये सभी अवधारणाएँ भारतीय परंपराओं में निहित हैं। मैं प्राचीन भारतीय विचार और परम्परा का संदेशवाहक हूँ " उन्होंने आगे कहा।
आध्यात्मिक नेता ने छात्रों को आंतरिक सम्पदा की ओर अधिक ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि भौतिक सम्पदा सुख देने में विफल रहती है। उन्होंने एक बेहतर करुणापूर्ण समाज का निर्माण करने हेतु अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए कॉलेज की छात्राओं को प्रोत्साहित किया।