पोमाइया, टसकेनी, इटली - १३ जून २०१४ - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने लामा चोंखापा संस्थान में पाँच मीटर चतुर्भुज अवलोकितेश्वर की मूर्ति को आशीर्वचित किया। उन्होंने उन कारीगरों की प्रशंसा की जिन्होंने मूर्ति का निर्माण िकया था और सराहना के रूप में उन पर दुपट्टा चढ़ाया। लगभग १००० लोगों की एक सभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मात्र मूर्तियों की पूजा करने की बजाय वास्तविक शिक्षाओं का अध्ययन करना और अधिक महत्त्वपूर्ण था। उन्होंने कहा कि बौद्धों को वास्तव में मूर्तियों के स्थान पर बुद्ध की शिक्षाओं में वास्तविक शरण लेना चाहिए।
परम पावन ने कहा कि सभी प्रमुख धार्मिक परंपराओं के तीन पहलू हैं, धर्म का पहलू, दर्शन का पहलू और संस्कृति का पहलू। उन्होंने यह भी कहा कि सभी प्रमुख धार्मिक परंपराओं में प्रेम और करुणा का आधारभूत अभ्यास समान है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न धार्मिक परंपराओं के दर्शन में अंतर हैं, पर इन विभिन्न दर्शनों का होना आवश्यक है, क्योंकि वे अलग अलग लोगों के विभिन्न मानसिक स्वभाव को संतुष्ट कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि विभिन्न धार्मिक परंपराओं के संास्कृतिक पहलू बहुत निकट रूप में क्षेत्र विशेष की परिस्थिति और स्थानीय पर्यावरण से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, बुद्ध के जीवनकाल के दौरान, जाति व्यवस्था का अभ्यास अच्छी तरह से समाज के भीतर निहित था, इसलिए बुद्ध ने जाति व्यवस्था के विरोध में बात की थी। १९५४- ५५ की अपनी पेकिंग, चीन की यात्रा का स्मरण करते हुए परम पावन ने कहा कि, अध्यक्ष माओ ने उनसे उस समय कहा था कि जाति व्यवस्था के विरोध में बुद्ध एक क्रांतिकारी थे और कम अधिकार प्राप्त लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रहे थे।
विज्ञान की भूमिका के विषय पर बोलते हुए परम पावन दलाई लामा ने कहा कि जहाँ िवज्ञान का संबंध भौतिक सुविधा से है, आध्यात्मिकता का संबंध भीतरी सुख से है और दोनों को एक साथ होना चाहिए।
परम पावन ने धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने का आग्रह किया जिसके लिए हमें पारस्परिक सम्मान की आवश्यकता है, जो उसी समय आ सकता है जब हम एक दूसरे से प्रेम करें। उन्होंने शिया सुन्नी संघर्ष और बर्मी बौद्धों द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या का उदाहरण रखते हुए कहा कि, यह देखना कि लोग धर्म के नाम पर एक दूसरे की हत्या करते हैं, दुख की बात है तथा कल्पना से परे है। उन्होंने सार के रूप में यह कहा कि मनुष्यों का आधारभूत धर्म प्रेम के महत्व पर बल देना है।
बौद्ध धर्म के अध्ययन करने की तिब्बती पद्धति के बारे में बोलते हुए, परम पावन ने कहा एक बच्चे के रूप में उन्हें सर्वप्रथम मूल पाठ को कंठस्थ करना पड़ता था और फिर भाष्य के आधार पर प्रत्येक शब्द का अर्थ जानना होता था जिसके बाद प्रत्येक विषय पर गहन शास्त्रार्थ होता था।
"कुछ पश्चिमी लेखकों ने अतीत में तिब्बती बौद्ध धर्म को लामावादी कहकर वर्णित किया है पर यह ऐसा नहीं है। हमारा धर्म भारत की समृद्ध नालंदा परंपरा पर आधारित है", उन्होंने कहा। इस अर्थ में, वे बोले कि तिब्बती उनके शिक्षक भारत के विश्वसनीय छात्र रहे हैं। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की, कि अब अधिक से अधिक भारतीय युवा प्राचीन ज्ञान में रुचि दिखा रहे थे।
परम पावन ने अपनी इच्छा व्यक्त की कि संस्थान को सिर्फ बौद्ध दर्शन सीखने के लिए सीमित नहीं रहना चाहिए पर साथ ही अंतर्धर्म संवाद और वैज्ञानिकों के साथ विचार विमर्श में भी संलग्न होना चाहिए।
मध्य पूर्व संघर्ष, वहाँ शांति की संभावना के संबंध में उनके विचार और पवित्र स्थानों के महत्व पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने पोप फ्रांसिस की मध्य पूर्व की हाल की यात्रा और इसराइल और फिलिस्तीन दोनों राष्ट्रपतियों के साथ उनकी बैठक का विशेष रूप से उल्लेख किया तथा शांति, संवाद और समझौते को लेकर उनके प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि वह हमेशा जब भी समय होता है पवित्र स्थलों और विभिन्न धर्मों के धार्मिक स्थानों की तीर्थयात्रा पर जाने का प्रयास करते हैं।
परम पावन ने घोषणा की कि नई दिल्ली में शीघ्र ही आने वाले सितम्बर में भारतीय धार्मिक नेताओं की एक बैठक होगी। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इस तरह के सम्मेलन का समर्थन किया तथा छोटी समितियों की स्थापना करने की आवश्यकता पर बल दिया जो कि धार्मिक संघर्ष के क्षेत्रों की यात्रा कर सकें और समूह की समस्याओं के समाधान के प्रयास कर सकें। उन्होंने भारत में शिया सुन्नी मुसलमानों के शांतिपूर्ण सह - अस्तित्व का उदाहरण दिया और शिया सुन्नी संघर्ष वाले क्षेत्रों का दौरा कर उन्हें एक साथ लाने के प्रयास के लिए भारत से एक मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल की आवश्यकता का अनुभव किया।
आगे बोलते हुए परम पावन ने सुझाव िदया कि भारत विश्व के धार्मिक नेताओं की एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर सकता है, और कहा कि भारत अपने प्राचीन ज्ञान अहिंसा का प्रसार करने में नेतृत्व कर सकता है और बड़े स्तर पर विश्व में अपना योगदान दे सकता है।
मन और विज्ञान के विषय में एक प्रश्न के उत्तर में परम पावन ने कहा कि चित्त का प्रशिक्षण लोगों के कल्याण के लिए महत्त्वपूर्ण था। उन्होंने वैज्ञानिकों के एक अध्ययन का परिणाम समझाया कि निरंतर भय वास्तव में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में खा जाता है।
दोपहर में, परम पावन ने लंुगतोक छोखोरलिंग विहार के भविष्य स्थल की यात्रा की जहाँ उन्होंने मैदान को आशीर्वचित किया और एक औपचारिक कार्यक्रम में भाग लिया।
जब उनके बोलने का अवसर आया तो परम पावन ने अपने से पूर्व वक्ताओं का धन्यवाद किया तथा एक सौहार्दपूर्ण स्वागत के लिए इटली के लोगों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। उन्होंने अपनी संस्थानों में नालंदा परंपरा को जीवित रखने की उनकी दूरदर्शिता के लिए ज़ोपा रिनपोछे के प्रयासों की सराहना की।
पर्यावरण संरक्षण के बारे में बोलते हुए परम पावन ने कहा कि हिंसक कार्यों के प्रभाव जिसे सभी देख सकते हैं, के विपरीत हमारे पर्यावरण के नुकसान का प्रभाव क्रम से है और उस समय तक दिखाई नहीं देता जब तक कि काफी देर नहीं हो चुकी होती। उन्होंने सभी को सलाह दी कि वे पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण की देखरेख को दैनिक जीवन का एक अंग बना लें।
ग्रीष्म की तापमान से अपने को बचाने के लिए परम पावन ने अपने सिर पर एक गीला तौलिया रखा और तिब्बत में पीली टोपी और काले रंग की टोपी परंपराओं के संदर्भ में हँसी हँसी में यह कहा कि यह एक सफेद टोपी संप्रदाय था।
उन्होंने इटली के लोगों से जिन्हें एक औपनिवेशिक अतीत में रहते हुए दुख का सामना करना पड़ा था और जो अब औद्योगिक और धनवान बन गए हैं, कहा कि वे यथासंभव निर्धन देशों की सहायता करें। उन्होंने विशेष रूप से यूरोपीय संघ के एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सदस्य होने के नाते एक बेहतर विश्व बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए इटली से आग्रह किया।
परम पावन ने हर किसी से जीवन की समस्याओं को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखने का और कठिनाइयों को एक समग्र दृष्टिकोण से देखने का आग्रह किया।
उसके बाद उन्होंने २१वीं सदी के युवाओं की आशाओं के बारे में बात की। उन्होंने उनसे प्रयास करने और एक स्पष्ट दृष्टि के साथ वर्तमान सदी को एक और अधिक शांतिपूर्ण आकार देने के प्रयासों के लिए आग्रह किया। उन्होंने कहा कि तीन चीज़ें - आत्मविश्वास, दृष्टि और विशेषज्ञता, युवा लोगों के लिए विश्व और वर्तमान शताब्दी को अधिक शांतिपूर्ण बनाने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण थी। वे और अन्य, जो वृद्ध और बुजुर्ग हैं संभवतः एक शांतिपूर्ण २१वीं सदी को देख न पाएँ पर युवा अपने प्रयासों से अपने जीवनकाल में निश्चित रूप से एक और अधिक शांतिपूर्ण और करुणाशील शताब्दी का अनुभव करेंगे।
पारदर्शिता और दैनिक जीवन में नैतिकता के महत्त्व पर बोलते हुए परम पावन ने कहा कि विश्वास पैदा करने के लिए ये महत्त्वपूर्ण हैं, जो सच्ची मैत्री लाता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक प्राणी के रूप में हम सभी को अच्छे मित्रों की आवश्यकता होती है, ऐसे मित्र नहीं जो धन या सत्ता देखते हैं, पर ऐसी मैत्री जो विश्वास और सम्मान पर आधारित हो।
परम पावन फिर लिवोर्नो के लिए रवाना हुए जहाँ वे प्रवचन देंगे तथा अगले दो दिन एक सार्वजनिक सम्मेलन में भाग लेंगे।