"भाइयों और बहनों, मैं बड़े सम्मान का अनुभव कर रहा हूँ कि आप मुझे लेने आए हैं। मैं लोकतंत्र का बड़ा प्रशंसक हूँ। मैं प्रायः कहता हूँ कि विश्व का संबंध संपूर्ण मानवता से है; हम इस के स्वामी हैं। प्रत्येक देश वहाँ के निवासियों का है। जब कोई सरकार लोगों द्वारा चुनी जाती है, तो वह उन लोगों के प्रति जवाबदेह है। २०११ से मैं पूर्ण रूप से राजनीतिक उत्तरदायित्व से सेवानिवृत्त हो चुका हूँ और मैंने दलाई लामा की संस्था को भी इस उत्तरदायित्व से सेवानिवृत्त कर दिया है।"
उन्होंने कहा कि ७वीं और ८वीं शताब्दियों से जब नालंदा परंपरा का बौद्ध धर्म तिब्बत पहुँचा तो पूरी जीवन शैली परिवर्तित हो गई, जिसने एक शांति और अहिंसा, करुणा की एक संस्कृति को जन्म दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि बौद्ध धर्म को समाप्त करने के सांस्कृतिक क्रांति के प्रयासों के बावजूद, चीन भी ऐतिहासिक दृष्टि से एक बौद्ध देश है। कहा जाता है कि अब वहाँ ४०० अरब ऐसे हैं जो स्वयं को बौद्ध मानते हैं।
पर्यावरण के संबंध में, उन्होंने कहा कि एक चीनी पर्यावरण विज्ञानी ने तिब्बत के महत्त्व का अनुमान उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बराबर बताया था, अतः उसने तिब्बत को तीसरे ध्रुव के रूप में वर्णित किया। एशिया की प्रमुख नदियों का स्रोत अंततः तिब्बत में है और १ अरब लोग उस पानी पर निर्भर हैं। एक चीनी प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि चीन में अभूतपूर्व बाढ़ तिब्बत के वनों की कटाई का परिणाम था।
"जैसा सब जानते हैं, मैं एक बौद्ध भिक्षु हूँ" परम पावन ने समाप्त करते हुए कहा, "जो मानवीय मूल्यों, अंतर्धार्मिक सद्भाव और तिब्बत की बौद्ध संस्कृति और प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।"
केटिल जेनसेथ ने सभा की ओर से प्रश्न आमंत्रित िकए और पहला धार्मिक संघर्ष के विषय में था। परम पावन ने उत्तर दिया कि अधिकांश मामलों में इस तरह के संघर्ष धार्मिक नहीं अपितु राजनीतिक या आर्थिक होते हैं। उन्होंने टिप्पणी की, कि जहाँ एक व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत रूप से एक धर्म, एक सत्य के बारे सोचना पर्याप्त है पर आज के विश्व में एक सामुदायिक स्तर पर हमें सम्मान के साथ कई धर्म और कई सत्यों को स्वीकार करना होगा।
यह पूछे जाने पर कि नॉर्वे किस प्रकार सबसे अधिक प्रभावशाली ढंग से मानव अधिकारों का समर्थन कर सकता है, परम पावन ने कहा कि नॉर्वे जैसे छोटे देश कम खतरे के रूप मे देखे जा सकते हैं और इस कारण संवाद के लिए आवश्यक विश्वास स्थापित करने में सक्षम हो सकते हैं। विश्वास और सम्मान प्रमुख कारक हैं। जब कुछ ही मिनटों के बाद इसी प्रकार का प्रश्न उठाया गया तो परम पावन ने कहा:
"शांति की तरह, मानव अधिकारों की प्रगति मात्र शुभकामनाएँ देकर नहीं होगी, इसके लिए कार्रवाई की आवश्यकता होगी। एक बार जब हिरोशिमा में शांति के लिए प्रार्थना थी तो मैंने सुझाया कि शांति निर्मित करने के लिए हमें प्रयास करना होगा।"
एक अन्य प्रश्नकर्ता ने इस आशा से प्रारंभ किया कि उनका जिस सौहार्दता से नार्वे में स्वागत हुआ है, परम पावन ने उसका अनुभव किया है। उन्होंने कहा : "आप हमेशा मुस्कुराते रहते हैं, इसका कारण क्या है?"
"शांति का संबंध वास्तव में चित्त की शांति से है। क्रोध हमारी आंतरिक शांति को नष्ट करता है जबकि प्रेम, करुणा और क्षमा उसके स्रोत हैं। ईसाई और इस्लाम जैसी धार्मिक परम्पराएँ अन्य सत्वों को ईश्वर की कृति के रूप में देखते हैं। मैं एक इजरायली शिक्षक से मिला जिन्होंने अपने फिलिस्तीनी छात्रों को सलाह दी कि वे शत्रुतापूर्ण पहरेदारों में ईश्वर की छवि देखें। उन्होंने लौटकर उन्हें बताया कि यह बहुत प्रभावी था। कभी कभी हम अपनी धार्मिक परंपराओं को केवल सतही धरातल पर देखते हैं, पर यदि हम किसी धार्मिक परम्परा का पालन करते हैं तो हमें ऐसा पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए। और जहाँ तक यह प्रश्न है कि मैं क्यों हँसता और मुस्कुराता हूँ, तो वह मेरा राज़ है! वास्तव में, मैं दिन में ८ घंटे काम करता हूँ और रात में ८-९ घंटे सोता हूँ। हँसी हमारी अद्वितीय मानव क्षमताओं में से एक है। मानव मुस्कान प्यार और स्नेह की अभिव्यक्ति है।"
एक प्रश्न के उत्तर में कि वह एक स्वायत्त तिब्बत के भविष्य को किस प्रकार देखते हैं, परम पावन ने कहा कि १९७४ में ही उन्होंने और उनके सलाहकारों ने निश्चय किया था कि उन्हें चीन से बात करने की आवश्यकता है और वे स्वतंत्रता की माँग नहीं कर सकते। ऐतिहासिक रूप से तिब्बत एक अलग देश था, पर जो अतीत है, वह अतीत है । उन्होंने यूरोपीय संघ के प्रति प्रशंसा व्यक्त की, जिसके सदस्य एक अधिक समष्टि का भाग बनने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि तिब्बती चाहते हैं कि चीनी अधिकारी पहले से ही चीनी संविधान में उल्लखित, तिब्बती क्षेत्रों के अधिकारों और विशेषाधिकारों को दें। इनमें मानव अधिकार और पर्यावरण के मुद्दे में शामिल हैं, उदाहरण के लिए स्थानीय लोगों की इच्छाओं के विपरीत किए जा रहे खनन। साथ ही चीन तिब्बती भाषा और संस्कृति को हीन दृष्टि से देखता है, जो एक प्रकार से मानव अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि वे चीनी मित्रों को बताते हैं, 'भारत की ओर देखें जहाँ विभिन्न लिपियाँ और भाषाएँ हैं और अलगाववाद का कोई संकट नहीं है। तिब्बती धार्मिक स्वतंत्रता, अपनी भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार चाहते हैं।'
"अंत में, यह तथ्य है कि अतीत में तिब्बत चीन और भारत के बीच एक अंतस्थ राज्य के रूप में था। चीन द्वारा तिब्बत में इतने सैनिकों को तैनात करने से भारत भयभीत है। यदि तिब्बत में स्थिति समान्य हो जाए तो इन सैनिकों की संख्या को कम किया जा सकता है।"
जब एक प्रश्नकर्ता ने सुझाया कि तिब्बत में मानव अधिकारों के उल्लंघन किसी भी जगह की तुलना में सबसे खराब है, परम पावन ने उत्तर दिया कि लगभग १५ वर्ष पूर्व एक स्थानीय पार्टी सचिव ने एक पार्टी बैठक में कहा था कि चीन से तिब्बत को अलग करने का सबसे बड़ा संकट तिब्बती बौद्ध संस्कृति में निहित है और उसे दबाने की माँग की। नॉर्वे के निवािसयों की तरह तिब्बतियों को अपनी संस्कृति पर गर्व है और उन्हें क्रोध आया। ल्हासा के हर कोने और मंदिरों में सी सी टीवी कैमरों को लगाने से भय और संदेह का वातावरण उत्पन्न हो गया है।
"इस बीच", परम पावन ने कहा, "कि कई मित्र कहते हैं कि शी जिनपिंग अपनी सोच में अधिक यथार्थवादी हैं। वह बड़े साहस से भ्रष्टाचार को चुनौती दे रहे हैं। हाल ही में, फ्रांस की यात्रा पर उन्होंने बौद्ध धर्म की प्रशंसा की, कि चीनी संस्कृति को पुनर्जीवित करने और अधिक सशक्त करने में उसकी विशिष्टता है। हमें देखना होगा। अधिनायकवादी प्रणाली लगभग ७० वर्षों के बाद कट्टर बन गयी है, लेकिन कई चीनी बुद्धिजीवी स्वतंत्रता के लिए अपनी आवाज उठा रहे हैं। यूरोपीय संघ को इन लोगों के लिए और शी जिनपिंग के प्रति समर्थन व्यक्त करना चाहिए। विश्व का नैतिक समर्थन सहायक होगा।"
"आज चीन रक्षा से अधिक आंतरिक सुरक्षा पर अधिक खर्च करता है; कोई और ऐसा नहीं करता। वेन जियाबाओ ने कहा चीन को राजनीतिक सुधार की आवश्यकता है, यहाँ तक कि अमेरिका शैली लोकतंत्र का सुझाव भी दे दिया। वे नीतियाँ तैयार कर रहे थे ताकि चीन विश्व में एक रचनात्मक भूमिका निभा सके। गोपनीयता और सेंसरशिप विश्वास और सम्मान आकर्षित नहीं करते।"
फिर से यह पूछे जाने पर कि तिब्बत में मानव अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए नॉर्वे क्या योगदान कर सकता है, परम पावन ने स्मरण किया कि हू याओबांग देखने के लिए स्वयं तिब्बत गए थे। उन्होंने अपने ही पर्यवेक्षकों को उन्हें सूचना देने के लिए पहले भेजा और स्थानीय अधिकारियों की मनगढ़ंत रिपोर्टों को खारिज कर दिया। यह महत्त्वपूर्ण है कि लोग तिब्बत जाएँ और वहाँ जो देखते हैं उसकी सूचना दें।