शिलांग, मेघालय, भारत - ३ फरवरी २०१४ - गुवाहाटी की अपनी यात्रा समाप्त करते हुए, आज प्रातः परम पावन दलाई लामा श्वेत तारा अभिषेक के लिए तिब्बत महोत्सव समारोह के आयोजन स्थल श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र लौटे। उन्होंने कुछ समय प्रारंभिक अनुष्ठान करने में लगाया, जिस दौरान ३००० श्रद्धालु दर्शक वहाँ एकत्रित हुए, जिनमें से अधिकांश गुवाहाटी और शिलांग के निकट मोन - तवांग से थे। उन्होंने इस अवसर पर अपने श्रोताओं को २१वीं सदी के बौद्ध होने के लिए प्रोत्साहित करते हुए, केवल अंध श्रद्धा से संतुष्ट न होकर, यह पता करने के लिए बुद्ध क्या है, ऐतिहासिक बुद्ध ने क्या शिक्षा दी और उसे किस प्रकार अपने जीवन में व्यवहार में लाया जा सकता है, के विषय में बताया । उन्होंने छेरिंग तेंदर की 'मोन - युल से' शीर्षक वाली नव प्रकाशित पुस्तक का विमोचन किया, जो अरुणाचल प्रदेश के उस भाग की धार्मिक धरोहर और इतिहास का वर्णन करती है।
अभिषेक को पूरा करने के बाद वे गाड़ी से पूर्व पर्वतीय स्टेशन शिलांग जाने हेतु २० मिनट की हेलिकोप्टर उड़ान के लिए गुवाहाटी हवाई अड्डे गए, जहाँ वे मेघालय सरकार के अतिथि हैं। तिब्बती और जनता के अन्य सदस्य उनका अभिनंदन करने हेतु सड़क पर कतारों में खड़े थे। राजभवन में राज्यपाल डॉ. के के पॉल ने उनका स्वागत किया।
मध्याह्न के भोजनोपरांत एक छोटी ड्राइव से परम पावन राज्य केन्द्रीय पुस्तकालय गए, जहाँ मार्टिन लूथर क्रिश्चियन विश्वविद्यालय अपना छठवां दीक्षांत समारोह मना रहा था और उन्हें दीक्षांत भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था। सभागार में प्रवेश करने से पहले उन्होंने, राज्यपाल और सिक्योंग डॉ. लॉबसांग सांगे ने विश्वविद्यालय के समारोहीय चोगे पहने हुए थे, हँसी में पूछा कि क्या टोपी नहीं है। सभागार में, विश्वविद्यालय वृन्द ने राष्ट्रीय गीत की भावुक प्रस्तुति की।
कुलपति आर जी लिंगदोह ने राज्यपाल, परम पावन, मुख्यमंत्री डॉ. मुकुल संगमा और सिक्योंग का स्वागत किया। अपने संबोधन में कुलपति ने मेघालय और पूर्वोत्तर भारत के सतत विकास के लिए योगदान और अपने छात्रों को सक्षम वैश्विक नागरिक बनने के अपने उद्देश्य को पूरा करने में विश्वविद्यालय द्वारा किए गए महत्त्वपूर्ण विकास की सूचना दी। अपने भाषण में मुख्यमंत्री ने उन छात्रों को हार्दिक बधाई दी, जो स्नातक बन रहे हैं, एक नई पीढ़ी के स्वप्नों को साकार करने के लिए उनकी प्रशंसा की। डॉ. के के पॉल, जिन्होंने भारतीय पुलिस में भरती होने के पूर्व वैज्ञानिक के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया था और जो भारत पुलिस सेवा में प्रथम पी एच डी थे, ने आशा व्यक्त की, कि परम पावन की उपस्थिति राज्य में शांित तथा समृद्धि लाएगी। उन्होंने शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार द्वारा छात्रों के जीवन में समानता और अधिक से अधिक संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय की भूमिका की भूरि भूरि प्रशंसा की।
परम पावन को फिलॉसफी की मानद डाक्टरेट उपाधि से विभूषित करने से पूर्व विश्वविद्यालय वृन्द ने भविष्य की शुभकामनाओं के लिए एक भावप्रवण गीत गाया और उसके पश्चात कई सौ स्नातकों को डिग्री और डिप्लोमा प्रदान करने की प्रस्तुति प्रारंभ हुई, मंच के गणमान्य व्यक्तियों में परम पावन से प्रारंभ कर जिसमें राज्यपाल, मुख्यमंत्री और सिक्योंग शामिल थे, को प्रत्येक स्नातक जैसे जैसे वे मंच पर आते गए, प्रमाण पत्र प्रदत्त करने हेतु आमंत्रित किया गया।
उप कुलपति डॉ. ग्लेन सी खरखोंगोर ने कहा कि परम पावन का परिचय देते हुए और उन्हें दीक्षांत भाषण देने के लिए उसे आमंत्रित करते हुए वे गौरव का अनुभव कर रहे हैं और परम पावन के प्रारंभ करते ही सभागार में पूर्ण रूप से शांति छा गई।
"आदरणीय राज्यपाल, मुख्यमंत्री, कुलाधिपति, कुलपति , उप कुलपति, शिक्षकों, विशेष रूप से आज के स्नातकों और अन्य अतिथियों, इस समारोह में भाग लेना मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है। सबसे प्रथम तो मैं आप लोगों को अपनी हार्दिक बधाई देना चाहूँगा जिन्हें आज स्नातक की उपाधि प्राप्त हुई है। साथ ही मैं आपको आगाह करना चाहूँगा कि यह आपके वास्तविक जीवन का प्रारंभ है, जो संभव है सरल न हो पर यह आपके ज्ञान को कार्यान्वित करने का एक अवसर प्रदान करेगा। आपको जो शिक्षा प्राप्त हुई है वह आपके व्यक्तिगत लाभ के लिए मात्र नहीं है, परन्तु यह आपको अपने राज्य और अपने देश के कल्याण में योगदान करने के लिए सक्षम करेगा।"
"भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला लोकतांत्रिक देश है और स्वतंत्रता के समय से अनोखे रूप से स्थिर प्रमाणित हुआ है। आप युवा इसको और सशक्त करने में और इसके विकास में योगदान कर सकते हैं। जब हम अतीत की ओर देखते हैं, मिस्र, चीन और सिंधु घाटी की महान प्राचीन सभ्यताओं की ओर, तो मेरा मानना है कि अद्भुत विचारकों की सबसे बड़ी संख्या भारतीय सभ्यता से आई है। जैसा कि राज्यपाल ने उल्लेख किया कि यह वह देश है जिसने ऐतिहासिक रूप से तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशील विश्वविद्यालयों को बढ़ावा दिया। मैं अपने आप को महान नालंदा परम्परा का एक विद्यार्थी मानता हूँ। कुछ वर्ष पूर्व भौतिक विज्ञानी राजा रामण्णा ने अपने उत्साह की चर्चा की जब उन्होेंने २००० वर्ष पूर्व की नागार्जुन की रचनाओं में आज के क्वांटम भौतिकी के विषय में प्रत्याशित विचार पाए।"
परम पावन ने कहा इसी तरह, आधुनिक मनोविज्ञान की तुलना में, प्राचीन भारतीय चिंतन में पाई जाने वाली चित्त और चेतना की समझ बहुत उन्नत है। भारत ने आज भी ज्ञान के क्षेत्र में निरंतर महान योगदान बनाए रखा है। प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों के पास कोई प्रयोगशाला नहीं थी, वे चित्त के साथ काम करते थे और उनके प्रयोग आंतरिक परीक्षा और विश्लेषण के माध्यम से किए गए थे। उन्होंने आगे कहा:
"मैं जहाँ भी जाता हूँ भारत की दीर्घ काल से चली आ रही अहिंसा की परंपरा, जिसके कारण सहिष्णुता की महान परम्परा भी है, के बारे में हमेशा बात करता हूँ। मैं नियमित रूप से इस देश की प्रशंसा करता हूँ कि यह एक जीवंत उदाहरण है कि किस तरह सभी प्रमुख धर्म मिलकर सद्भाव के साथ रह सकते हैं। ये वे क्षेत्र हैं, जिसमें भारत विश्व का नेतृत्व कर सकता है।"
उन्होंने कहा कि हम किसी धार्मिक मार्ग का अनुसरण करें अथवा नहीं पर मनुष्य के रूप में हम सभी को स्नेह की आवश्यकता है। सौहार्दता आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति को जन्म देती है जो एक शांत चित्त का समर्थन करता है। चित्त की शांति हमारे शारीरिक स्वास्थ्य में योगदान देती है। यह आधारभूत मानव मूल्यों के विकास पर आधारित है, जिसको परम पावन धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के रूप में बढ़ावा देते हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि जहाँ अन्य स्थानों पर उनके कुछ ईसाई और मुसलमान मित्रंो ने यह शंका जताई है कि धर्मनिरपेक्ष शब्द धर्म और आध्यात्मिकता को नकारता है, पर वे उसका उपयोग उस रूप में करते हैं जैसा भारत में होता है कि यह सभी धर्मों के प्रति समान श्रद्धा का सूचक है और उनके लिए भी जो किसी में विश्वास नहीं करते। उन्होंने कहा कि आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में से १ अरब किसी भी धर्म में रुचि न होने का दावा करते हैं पर फिर भी मनुष्य होने के नाते वे भी सुख की कामना करते हैं और उन्हें उसे प्राप्त करने का अधिकार है। उन्हें लगता है कि यह आवश्यक है कि उन्हें भी सुख प्राप्ति के लिए करुणा और सौहार्दता के योगदान की सराहना करने का अवसर मिले।
परम पावन ने कहा कि किस प्रकार तिब्बती प्राचीन भारतीयों को अपने गुरु के रूप में देखते हैं और स्वयं को शिष्यों के रूप में। और अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि तिब्बतियों ने नालंदा परम्परा के ज्ञान को जीवित और सुरक्षित रखते हुए, जबकि इसके जन्म स्थान में इसमें गिरावट आई है, अपने आप को विश्वसनीय शिष्यों के रूप में बना रखा है। उन्होंने कहा कि वह प्रायः अहिंसा और अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देते हुए स्वयं को भारत के दूत के रूप में वर्णित करते हैं। उन्होंने युवा पीढ़ी के सदस्यों को अहिंसा के सिद्धांतों के अनुभव को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया।
"जब आप अपने जीवन में समस्याओं का सामना करते हैं तो बल प्रयोग करने हेतु उद्यत न हों, समाधान खोजने के लिए संवाद के प्रयोग का प्रयास करें। नैराश्य असफलता का स्रोत है जबकि आशावाद विश्वास का एक स्रोत है। सच्चे रहने का प्रयास करो। सत्य की शक्ति का कभी ह्रास नहीं होता। अल्पावधि के लिए बल तथा हिंसा प्रभावी हो सकती है, परन्तु दीर्घ काल में सत्य बना रहता है। ईमानदारी और सच्चाई विश्वास उत्पन्न करती है और विश्वास, मैत्री तथा सुप्रतिष्ठा की ओर ले जाती है। चूँकि हम सब को मित्रों की आवश्यकता है इसलिए ईमानदारी और पारदर्शिता मानव प्रकृति के आधारभूत अंग हैं।"
"स्पष्ट रूप से कहूँ कि जहाँ भारतीय अधिकांश रूप से अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के लोग हैं, पर साथ ही बहुत अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त है। ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म को भी धमकाने और धोखा देने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। संभवतः आधुनिक शिक्षा की प्रवृत्ति भौतिकवादी मूल्यों के प्रति है। यह मस्तिष्क की ज्ञान की आवश्यकताओं को बढ़ावा देती है जबकि हृदय की आवश्यकताओं की उपेक्षा करती है। इसीलिए हमें नैतिकता की एक नई भावना की आवश्यकता है, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की।"
परम पावन ने उल्लेख किया लगभग ५५ वर्षों से भारत उनका घर रहा है। उस दौरान वे इस से प्रभावित हुए हैं कि आधुनिक भारत कई संस्कृतियों, कई भाषाओं और कई धार्मिक परंपराओं का देश है, विभिन्न लोग हैं जो अलग अलग जीवन शैली अपनाते हैं, सभी साथ रहते हैं। यह भारत की महानता है जो विश्व के अन्य भागों के लिए उदाहरण है। उन्होंने कहा कि वे प्रायः उनसे मिलने आए चीनियों से कहते हैं कि उन्हें भारत से सीखना चाहिए। ऐसे संदर्भ में उन्हें लगता है कि तिब्बत की शांतिपूर्ण, करुणाशील संस्कृति, जिसकी जड़ें भारतीय परम्परा में है, चीनी लोगों के लिए भी लाभकारी हो सकती है।
समापन में, उन्होंने कहा:
"मुझे यह मानद उपाधि देने के लिए मैं अपनी प्रशंसा व्यक्त करना चाहता हूँ। मेरे शिलांग आने के प्रथम दिन ही इस प्रकार का सम्मान पाना बहुत बड़ी बात है।"
वे हँसे और दर्शकों ने निरंतर तालियों की गड़गड़ाहट से उनका साथ दिया। यह अवसर एक व्यापक धन्यवाद ज्ञापन के साथ संपन्न हुआ। विश्वविद्यालय गान गाया गया और उसके बाद एक बार फिर राष्ट्रीय गान हुआ। गणमान्य व्यक्तियों को पारंपरिक संगीत के साथ सभागार से ले जाया गया। परम पावन राजभवन में लौट आए। कल वह पोलो ग्राउंड में धार्मिक प्रवचन देते हुए दिन बिताने वाले हैं।