मुंडगोड, कर्नाटक, भारत - २८ दिसंबर २०१४- "आज, मुंडगोड आवास के लोग मेरे लिए एक दीर्घायु प्रार्थना करने हेतु एकत्रित हुए हैं," आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने घोषणा की। "उनके साथ ज़छुखा के लोग जुड़े हैं जो ज़ा पाटुल रिनपोछे का मूल स्थान है। वे तिब्बत के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मैंने मंडल प्रार्थना और अनुरोध का पाठ किया है, अतः यदि आप चाहें तो आप संक्षिप्तिकरण कर सकते हैं। मैंने ज़छुखा के लोगों का पत्र भी पढ़ा है।"
"जिस समय से इस आवास की स्थापना हुई तब से इतने वर्षों में यह विकसित हुआ है और इसमें सुधार हुआ है। मैं इसे लोगों के चेहरों पर देख पाता हूँ और यह तथ्य कि उनके रंग में निखार आया है।"
ज़छुखा के लोगों के पत्र में परम पावन के पूर्व जन्मों का उल्लेख िकया गया है, जिसमें भारत में अवलोकितेश्वर के ३६ प्रकटित रूप भी शामिल हैं। इसमें कहा गया है ः 'आपने अपने नेतृत्व से तिब्बत के लोगों के प्रति दया दिखाई है। इस समर्पण द्वारा हम उस दया की एक चुटकी चुकाना चाहते हैं। परम पावन ने उत्तर दियाः
"तिब्बत के लोग ही भूमि के वास्तविक स्वामी हैं। मैं मात्र उनका एक प्रवक्ता हूँ। जैसा मैं कहता हूँ, तिब्बत की भूमि वहाँ रहने वाले लोगों की है, और तिब्बत के लोगों की निरंतर प्रबल भावना के कारण ही हम निर्वासन में उनकी ओर से काम करने में सक्षम हैं।"
जब प्रार्थना समाप्त हो गयी, तो इसका स्पष्टीकरण करने के िलए कि पिछली छह दिनों के कार्यक्रमों के िलए िकतनी धन राशि दी गई थी और कितना खर्च हुआ था, घोषणाएँ की गईं। अधिशेष राशि परम पावन के आगामी वर्ष के प्रवचनों के लिए, जो उन्होंने कहा है कि वे देंगे, अलग रख दी गई।
ज़ामर पंडित के लमरिम का अपना पाठ जारी रखते हुए परम पावन ने टिप्पणी की कि बुद्ध ने एक मार्ग दिखाया जो प्रतीत्य समुत्पाद पर टिका है। उन्होंने शून्यता के आधार पर चार आर्य सत्यों की शिक्षा दी और परम पावन ने टिप्पणी की कि शून्यता परम सत्य है फिर बुद्ध प्रकट हों अथवा नहीं। चार आर्य सत्यों के संबंध में, बुद्ध ने कहा, "दुःख को जानो, इसके उद्गम का प्रहाण करो, निरोध प्राप्त करो तथा मार्ग की भावना करो।" फिर भी, अंत में जानने हेतु कुछ भी नहीं, काबू पाने के िलए कुछ भी नहीं है, प्राप्त करने हेतु कुछ भी नहीं और परिष्कृत करने के िलए भी कुछ नहीं है। मार्ग के तीन सिद्धांत हैं, मुक्त होने के लिए दृढ़ संकल्प, बोधिचित्त, और शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा।
शांतिदेव का अनुसरण करते हुए परम पावन ने कहा बोधिचित्त सभी अच्छाइयों का आधारभूत स्रोत है। उन्होंने उल्लेख किया कि उसके विकास के िलए दो प्रणािलयाँ हैंः सप्त बिंदु हेतु फल और परात्म परिवर्तन। हम अपनी आँखों से लाभ देख सकते हैं, परन्तु जो हमारे बोधिचित्त के विकास को बाधित करता है वह हमारा आत्म पोषण का व्यवहार है।
पाठ में, अधोगति के अस्तित्व का सर्वेक्षण नरकों से लेकर पशु लोक तथा क्षुधा पीड़ित प्रेतों तक हुआ है। पशुओं द्वारा अनुभूत दुःख में क्षुधा, तृष्णा, भय, मूढ़ता, भार ढोने के लिए काम में लाए जा रहे पशु तथा बलि हेतु मारा जाना शामिल है। क्षुधित प्रेत का वर्णन, कि उनका मुँह सुई की आँख की तरह है, जबकि उनकी गर्दन और गला सुई के समान पतली है, ने परम पावन को नमज्ञल विहार के एक भिक्षु छोंज़े गोशक का स्मरण कराया जिसका जन्म इसी प्रेत स्वरूप में हुआ था। जब परम पावन तिब्बत में नोर्बुलिंगा में थे तो वह प्रायः ठिजंग िरनपोछे से मिलने आता था। नमज्ञल विहार के मंत्राचार्य ने बीच में ठिजंग िरनपोछे से पूछा कि क्या हुआ था। ऐसा प्रतीत होता है कि छोंज़े गोशक को एक विशिष्ट आत्मा इष्ट थी जिसके लिए एक मंदिर समर्पित किया गया था और उसने वहाँ भेंट के लिए कुछ छोटे जूते तैयार किए। परिणाम स्वरूप यद्यपि ऐसा प्रतीत होता था कि वह आत्मा उसकी सहायता कर रही थी, पर वास्तव में उसका पुनर्जन्म उस आत्मा के परिचारक के रूप में हुआ।
परम पावन ने टिप्पणी की कि जो दोलज्ञल की तुष्टि करते हैं वह इस प्रकार के प्रेत अथवा आत्मा के रूप में जन्म लेने का जोखिम रखते हैं।
"वे मेरी सलाह को अनदेखा कर सकते हैं, परन्तु जोखिम तो है।"
दिशा बदलते हुए उन्होंने कहाः
"चूँकि हम भव चक्र के अस्तित्व से मुक्त होना चाहते हैं इसलिए हम बुद्ध, धर्म और संघ की शरण लेते हैं। सभी दोषों से मुक्त और सभी अनुभूतियों से संपन्न होने के कारण वे अचूक शरण हैं। बुद्धत्व तक पहुँचने के लिए तथा अधोगति से हमें सुरक्षित करने के िलए, शरण गमन के साथ बोधिचित्तोत्पाद बहुत प्रभावी है। यह हमें महान पुण्य संभार के िलए सक्षम करता है।"
ग्रंथ में विस्तार से बुद्ध के गुणों की व्याख्या की गई है और उनके लक्षणों तथा व्यंजनों को सूचित किया गया है, उदाहरण के िलए सहस्र छड़ों वाला धर्म चक्र जो उनके पाद तलों तथा हाथों में व्यंजित हैं। इनके कारण अपने गुरुओं का स्वागत और उन्हें विदा देना है। बुद्ध, बोधिसत्व भूमि से होकर गए हैं जिनका अंत प्रबुद्धता में हुआ है। प्रारंभ में बोधिचित्तोत्पाद के पश्चात, वे तीन अनगिनत कल्पों के लिए उपाय और प्रज्ञा का संभार करते हैं।
त्रिरत्नों का अभ्यास करने के बाद, ज़ामर पंडित का ग्रंथ यह वर्णित करता है कि जब आप उनकी शरण लें तो आप को क्या करना है और क्या नहीं। यह सुझाता है कि आप उन वस्तुओं से बचें जो उद्वेलित करने वाली भावनाओं को जन्म देती हैं। इस प्रकार शरण लेने का यह लाभ है कि आप बहुत अधिक पुण्य संभार करते हैं, जबकि प्रत्येक क्षण आपके द्वारा अर्जित विशाल नकारात्मक कर्मों के संभार को कम करता है। इस के अतिरिक्त बुद्ध धर्म और संघ में शरण लेने से आप एक बौद्ध बनते हैं और आप हानिकारक आत्माओं द्वारा विनाश से भी बचे रहेंगे। परम पावन ज़ामर लमरिम के आगामी जीवन में अच्छे पुनर्जन्म के अनुभाग के अंत में पहुँचे। तत्पश्चात उन्होंने 'विमुक्ति हस्त धारण' से संक्षेप में पठन किया।
बोधिचित्तोत्पाद के एक संक्षिप्त तरीके के रूप में, परम पावन ने कहा कि वे उपस्थित सभी लोगों के साथ, जो करना चाहें, उस सामान्य छंद का पाठ करना चाहेंगे जिसमें शरण गमन तथा बोधिचित्तोत्पाद मिले हुए हैं।
"सभी सत्व दुख से बचना चाहते हैं तथा सुख प्राप्त करना चाहते हैं। तथा संसार में सभी सुख व अच्छाई दूसरों की सहायता करने के परिणाम स्वरूप जन्म लेती हैं।"
उन्होंने सलाह दी कि जो ऐसा करना चाहें वे अपने समक्ष बुद्ध की भावना करें जो परम्परा के अन्य शिक्षकों से घिरे हुए हैं तथा शरण गमन और बोधिचित्तोत्पाद के सूत्र का पाठ करें। अंत में, परम पावन ने टिप्पणी की, कि वह छोटा समारोह प्रवचनों के सत्र के लिए एक शुभ समापन का रूप था। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वह इस छंद का पाठ किः
बुद्ध, धर्म और संघ में
बोधि प्राप्त होने तक मैं शरणागत होता हूँ,
दान अथवा संभार, मैंने जो भी िकया हो
सभी सत्वों के हित के लिए मैं बुद्धत्व प्राप्त करूँ।
प्रत्येक दिन के प्रारंभ व अंत में करते हैं और वे वास्तव में इसे सहायक पाते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने बोधिचित्त की अनुशंसा में 'बोधिसत्वचर्यावतार' से भी छंद उद्धृत िकए ः
इस संसार में मृत्यु को मिटाने हेतु यह अमृत उत्पन्न हुआ है। यह संसार की दरिद्रता को मिटाने के िलए अक्षय धन है।
यह वह परम औषधि है जो संसार के रोगों का हरण करती है। संसार के मार्ग में भटकने से श्रांत क्लांत लोगों के िलए यह एक विश्राम वृक्ष है।
संसार के यात्रियों को लिए दुर्गति को पार कराने वाला यह वैश्विक सेतु है। यह चित्त का वह उदित होने वाला चन्द्रमा है जो संसार के क्लेश रूपी ताप को शांत करता है।
यह वह महान सूर्य है जो विश्व के अज्ञान ितमिर का हरण करता है। यह ऐसा ताजा नवनीत है जो आर्य धर्म रूपी क्षीर के मथने से निकला है।
प्रवचन के समापन पर गदेन जंगचे महाविहार छोड़ते हुए परम पावन ने पुनः अपना अस्थायी निवास स्थानांतरित किया और इस बार वह डेपुंग लाची था। रास्ते में वे ङग्युर दोरडक ञिङ्मा विहार गए जहाँ, जो पहले पहल तिब्बत से भाग निकले थे उनमें से अब केवल एक भिक्षु रह गए हैं। वे गदेन शरचे महाविहार के धोखंग खंगछेन गए। पास में गदेन जंगचे अस्पताल में उन्होंने प्रभावित करने वाली सुविधाओं का निरीक्षण किया, कर्मचारियों से भेंट की तथा रोगियों को सांत्वना दी।
जंगछुब छोलिंग भिक्षुणी िवहार में उन्होंने भिक्षुणियों की उनके अध्ययन के लिए सराहना की और उस एक अवसर को याद किया जब वे धर्मशाला आई थीं और सार्वजनिक सम्मति थी कि उन्होंने सबसे प्रभावशाली ढंग से शास्त्रार्थ किया था। उन्होंने स्मरण किया कि ८० के दशक से भिक्षुणियों ने वास्तव में गंभीरता से अध्ययन प्रारंभ किया था और अब वे गेशेमा की उपाधि प्राप्त करने की उम्मीदवार थीं। उन्होंने कहा कि दर्शन का अध्ययन आपकी दृष्टि को व्यापकता देता है और यह समानता प्राप्त करने का एक प्रभावशाली उपाय है। उन्होंने दोहराया कि बुद्ध ने पुरुष व महिलाओं दोनों को समान अवसर दिया था और इसका लाभ उठाने के लिए भिक्षुणियों को प्रोत्साहित किया।
परम पावन ने शास्त्रार्थ हेतु एक दालान के निर्माण के िलए, क्योंकि सभी भिक्षुणियों के शास्त्रार्थ हेतु पर्याप्त स्थान नहीं था, पास के वृद्धाश्रम से भूमि खरीदने के, दर्शन शास्त्र के शिक्षक के प्रस्ताव को एक अनुकूल दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने उनसे कहा ः
"चूँकि जहाँ तक अध्ययन का संबंध है, यह सर्वश्रेष्ठ भिक्षुणी विहारों में से एक है, यह हमारा कर्तव्य है कि हम आपकी गतिविधियों का समर्थन करें तथा आपके अध्ययन और अभ्यास को प्रोत्साहित करें।"
अंत में डेपुंग लाची पर पहुँचने पर चाय और मीठे चावल के साथ परम पावन का पारम्परिक स्वागत किया गया। कोई भाषण नहीं हुए। उन्होंने घोषणा की है कि वे कल मुंडगोड में अपने प्रवास के अंतिम दिन पलदेन ल्हामो की अनुमति देंगे।