लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, भारत - ९ जुलाई २०१४ - ३३वें कालचक्र अभिषेक के लिए प्रारंभिक प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों की जो गतिविधियाँ आज से एक सप्ताह पूर्व प्रारंभ हुई थी, उनका आज समापन हुआ। रेत मंडल कल समाप्त कर लिया गया था और आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने साढ़े चार घंटे के अनुष्ठान में भाग लिया।
मध्याह्न भोजनोपरांत लंबे सींग वाद्य की ध्वनि और झांझ बजने के साथ नमज्ञल विहार के बारह भिक्षु परम पावन की सतर्क की दृष्टि में मंच पर गए। डाकिनियों का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने लाल गांठों वाले रेशमी जरी के चोगों के ऊपर हड्डी के गहने और सिर पर पाँच पत्तों वाले कमल मुकुट पहन रखे थे। प्रत्येक नर्तक एक वज्र और घंटी लिए हुए था जो कि बोधिचित्त और शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा का प्रतीक था। उन्होंने मंडप के भीतर एक चक्र का गठन किया, जहाँ उन्होंने एक राजसी ध्यान नृत्य का प्रदर्शन किया, उनके चेहरे शांत समाधि व्यक्त कर रहे थे। नमज्ञल विहार के मंत्राचार्य ने एक स्थिर, नादपूर्ण, गहरे स्वर से जाप का नेतृत्व किया, जिसमें नर्तक भी शामिल थे।
इस बीच मंच से नीचे सीढ़ी पर स्थानीय नर्तक नर्तकियों के समूहों ने बारी बारी से अपना पारंपरिक नृत्य कभी कभी विस्तृत पारम्परिक वेशभूषा में प्रस्तुत किया। वनला गाँव के नौ सदस्यों वाले पहले समूह में मुखौटा पहने नर्तक थे और एक गायक था। नुबरा से दस महिलाओं का दूसरा दल अपने फ़िरोज़ा पत्थर से सजे पेराक सिर के साफे में देदीप्यमान था और उसके बाद पश्चिमी लद्दाख से ग्यारह महिलाओं का एक दल था, जो पेराक के अतिरिक्त अपनी पीठ में सफेद याक पूंछ की शॉल पहने था। नेपाल से एक दल आया जो तिब्बती तोपा समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहा था। ग्यारह लद्दाखियों, पाँच पुरुषों और छह महिलाओं के एक अन्य दल के बाद तिब्बत के चार पुरुष थे जिन्होंने कंधे पर लटका रखी घोड़े की घंटी के एक बेल्ट को िहलाते हुए नृत्य किया।
लेह, सक्ती और पूर्वी लद्दाख के जंगथंग से और भी दल थे जिनमें मुख्यतः महिलाएँ थी। दोनों पुरुषों और महिलाओं का एक बड़ा दल हिमाचल प्रदेश के लाहौल एवं स्पीति से आया था। दो और उत्साह से भरे स्त्रियों के दल थे, एक जांस्कर से और दूसरा कारगिल जिले के कुक्ष से, जो अपने हाथों में स्टील थाली िलए नृत्य कर रही थी। कई गायकों और नर्तकों के साथ स्थानीय ड्रम वादक और सुरना वादक थे। अंत में धर्मशाला के टिब्बटेन इंस्टिट्यूट ऑफ परफोर्मिग आर्ट्स के कलाकारों ने बड़े ही प्रभावी ढंग से वादन, गान और नृत्य का प्रदर्शन किया। अंतिम समर्पण मंगोलिया के नर्तकों द्वारा किया गया, जो इसमें भाग लेते हुए विशेष रूप से गर्व का अनुभव करते जान पड़े।
अतिथि प्रदर्शनंों के बाद नमज्ञल विहार के भिक्षुओं का नृत्य समापन तक पहुँचा और उन्हें एक भिक्षु द्वारा हाथ में धूप के साथ गरिमा पूर्ण रूप से मंच के बाहर ले जाया गया।
कल प्रातः परम पावन शिष्यों के मुख्य कालचक्र अभिषेक की प्रारंभिक तैयारियों का नेतृत्व करने से पूर्व कालचक्र आत्म- अभिषेक के आयोजन के लिए स्थल पर शीघ्र आ जाएँगे।