शिमला, हि. प्र., भारत, १९ मार्च २०१४ (आई ए एन एस) - तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने बुधवार को आधुनिक शिक्षा के साथ प्राचीन भारतीय शिक्षाओं को अंतर्निविष्ट करने की आवश्यकता पर बल दिया।
यहाँ अपने दीक्षांत समारोह में छात्रों और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के शिक्षकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "भारत ज्ञान तथा प्रज्ञा युक्त एक अत्यंत सम्पन्न राष्ट्र है और शैक्षिक समृद्धि के लिए, विशेषकर युवाओं द्वारा उसे उपयोग में लाने की तत्काल आवश्यकता है।"
दलाई लामा, जिन्हें राज्यपाल उर्मिला सिंह द्वारा मानद डॉक्टर (डी. लिट) की डिग्री से सम्मानित किया गया, ने कहा, छात्र जो ज्ञान अर्जित करते हैं वह उन्हें समाज कल्याण के लिए उपयोग में लाना चाहिए और उनकी वास्तविक उपलब्धि, उस ज्ञान का उपयोग प्रज्ञा के साथ करने में है।
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ने एक यथार्थवादी समाज को बदलने में पारंपरिक शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता पर बल दिया, जो फिर 'गुरु' के दर्शन को नई ऊंचाइयाँ देता है।
"मैं भी प्राचीन भारतीय गुरुओं का अनुयायी हूँ और मैंने जीवन में समस्याओं से जूझने के लिए उस ज्ञान का उपयोग किया है", उन्होंने कहा।
उन्होंने कहा कि भारत एक फलता फूलता लोकतांत्रिक ढांचा है, जिसने िवश्व भर में शांति, विकास और स्थिरता के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।
"तीन बड़ी सभ्यताओं - सिंधु घाटी, भारतीय और चीनी - ने मानवता के वाक्यांश को नया परिदृश्य दिया है और संयोग से वे सभी एशियाई महाद्वीप में स्थित हैं" उन्होंने कहा।
"प्राचीन संस्कृत भाषा ने समाज के शैक्षिक मंच के लिए बहुत योगदान दिया है। भाषा के अध्ययन और संस्कृत साहित्य में निहित मूल्यों को समझने की तत्काल आवश्यकता है।"
राजेंद्र कुमार पचौरी को भी मानद डी. लिट की डिग्री से सम्मानित किया गया, जो २००७ के दौरान जलवायु परिवर्तन पर अंतर्शासकीय पैनल के अध्यक्ष थे।
प्रसिद्ध इतिहासकार एस.आर. मेहरोत्रा को भी सामाजिक विज्ञान के लिए डी. लिट की डिग्री प्रदान की गई, जबकि प्रियदर्शिनी आर कालरा को चिकित्सा विज्ञान के िलए यह प्राप्त हुई।