सिडनी, ऑस्ट्रेलिया, जून 16, 2013 - आज पहले व्यक्ति जो परम पावन दलाई लामा से मिले वे जनहित के कार्यों में लगे कुछ वर्ग थे, जिनसे आज प्रातः होटल से जाने से पूर्व उन्होंने बातचीत की। यह पूछे जाने पर कि उनके आशावादी होने का क्या रहस्य है, वे बोलेः
“हम सब आधारभूत रूप से सामाजिक प्राणी हैं। हम कछुओं की तरह नहीं, जो अंडे देने के बाद अपने बच्चों से कभी नहो मिलते। हमारा जीवित रहना हमारी माँ की देखरेख और प्रेम पर निर्भर करता है और जिसको ऐसा प्रेम मिला है, उसमें दूसरों के प्रति प्रेम दिखाने की क्षमता होती है।”
बौद्ध प्रवचन के पाँच सत्रों के अंतिम सत्र के लिए परम पावन सिडनी मनोरंजन केन्द्र लौटे। चूँकि उनका उद्देश्य बोधिसत्त्व व्रत देना था, परम पावन ने कुछ क्षणों के लिए चुपचाप बैठ अपने व्रतों की पुनरावृत्ति की। फिर वे आसन पर बैठे और वियतनामी तथा अंग्रेज़ी में हृदय सूत्र का पाठ हुआ।
उन्होंने यह कहते हुए अपना निर्देश चन्द्रकीर्ति के मध्यमकावतार के उद्धरण से प्रारंभ किया, ‘ यही चित्त बाहरी सांवृतिक जगत को जन्म देता है।’ 7वें दलाई लामा केलसंग ज्ञाछो ने कहा, ‘सम्पूर्ण सांसारिक जीवन और निर्वाण की शांति केवल चित्त के आंतरिक विश्व से विज्ञप्त किया जाता है।’
परम पावन ने दोहराया कि वस्तुओं का अस्तित्व केवल प्रज्ञप्ति मात्र से होता है। वस्तुएँ नाम मात्र से अस्तित्व में आती हैं; वे विज्ञप्त रूप में हैं। संसार और निर्वाण हमारे चित्त से आता है; चित्त के बिना कोई कर्म नहीं। नागार्जुन ने कहा कि अंततः संसार और निर्वाण दोनों ही दिखाई नहीं पड़ते; उन्हें हमारे चित्त के संदर्भ में ही समझा जा सकता है।
“क्या इसका कोई अर्थ निकलता है ? ” उन्होंने पूछा। “चूँकि हम जो ग्रंथ पढ़ रहे हैं उसका मूल संबध करुणा की प्रशंसा है, प्रज्ञा की नहीं, मैं संतुलन लाना चाहता था। मैं किसी बोधिचित्त के अनुभव अथवा शून्यता की समझ का दावा नहीं करता, पर मैंने अपनी युवावस्था में इसमें रुचि लेना प्रारंभ कर दिया। एक बार शरणार्थी बनने पर और जब मैंने अध्ययन पुनः शुरु किया, तो मैंने शून्यता में अधिक रुचि दिखाई। जब मैं तीस से अधिक का था तभी मुझ में परोपकार के विषय में सोचने का साहस आया।”
आसन के पीछे उपवास करते बुद्ध की प्रतिमा की ओर इशारा करते हुए परम पावन ने याद किया कि जब वे छोटे थे तो पोताला में उनके कमरे में वही चित्र था और साथ ही बोधगया और सारनाथ के भी चित्र थे, जो कि 13वें दलाई लामा के थे। 1959 के बाद उन्होंने मूल प्रतिमा के स्थान के बारे में पूछा और यह जानने पर कि वह लाहौर में है, वे जाकर देखना चाहते हैं पर यह संभव नहीं हो पाया है। उन्होंने बौद्धों के लिए उसे एक महत्त्वपूर्ण प्रतिमा बताया, क्योंकि वह हमें स्मरण कराती है कि हमारे गुरु ने निर्वाण प्राप्ति के मार्ग किस प्रकार की कठिनाइयाँ झेलीं।
चूँकि अतिश ने लिखा है जो कोई बोधिसत्त्व व्रत प्राप्त कर रहे हैं उनके कुछ अपने प्रतिमोक्ष व्रत होने चाहिए इसलिए परम पावन ने पहले साधारण व्यक्तियों को दिए जाने वाले व्रत का आयोजन निभाया। बोधिचित्तोत्पाद के प्रारंभिक रूप में उन्होंने संपूर्ण श्रोताओं से शांतिदेव कृत बोधिसत्त्वचर्यावतार के दूसरे और तीसरे अध्याय में से सप्तांग अभ्यास का पाठ करने को कहा। उस विधि के बाद उन्होंने बोधिसत्व व्रत दिए।
“हाँ तो अब प्रवचन समाप्त हो गया है,” वे बोले, “आज दोपहर मैं धर्म निरपेक्ष नैतिकता पर बोलूँगा। बौद्ध धर्म केवल बौद्धो के लिए है पर धर्म निरपेक्ष नैतिकता की सार्वभौमिकता आज जीवित 7 अरब लोगों पर लागू होती है।”
दोपहर के भोजन के उपरांत वे तिब्बत के संसदीय समूह और ऑस्ट्रेलिया तिब्बत परिषद के सदस्यों से मिले, जिनसे उन्होंने कहाः
“तिब्बत के प्रति चीन की नीति नहीं बदलेगी जब तक कि चीन में एक आमूल परिवर्तन नहीं होगा। पूर्व प्रधान मंत्री वेन जियाबाओ ने चीन में सुधार और मानवीय अधिकारों की एक्टिविस्ट लियु जियाओबो ने एक खुले समाज के प्रति चिंता जताई है।”
जहाँ इस बात पर टिप्पणी करते हुए कि एक प्राचीन देश के रूप में चीन को अनदेखा नहीं किया जा सकता, उसे वैश्विक कार्यों की मुख्यधारा में लाना ही होगा। पर इसी के साथ तिब्बत की भाषा, धर्म, संस्कृति और पर्यावरण के संरक्षण के लिए भी उपाय ढूँढने की आवश्यकता है। उन्होंने सबको उनके सहयोग के लिए धन्य़वाद दिया।
मंच पर लौटकर, प्रतिष्ठित अभिनेत्री और सिडनी निवासी केट ब्लेनचेट ने 11000 से भी अधिक श्रोताओं को परम पावन जी का विस्तृत परिचय कराया। खड़े होकर बोलने का निर्णय कर, उन्होंने अपना भाषण प्रारंभ कियाः
आप सब लोगों से बात करने का अवसर पाकर मैं बहुत कृतज्ञ हूँ। मेरी यहाँ वहाँ की यात्रा में जनता को संबोधित करना सबसे महत्त्वपूर्ण है। सभी बिना किसी कठिनाई और दुःख के, एक सुखी जीवन चाहते हैं। जितनी समस्याओं का सामना हम करते हैं वे हम ही निर्मित करते हैं। कोई जान बूझकर समस्याओं का निर्माण नहीं करता, पर हम साधारण भावनाएँ जैसे क्रोध, घृणा और मोह के दास बन जाते हैं। ये भावनाएँ प्रधान रूप से लोगों और वस्तुओं के गलत अनुमानों पर आधारित हैं।
“ये भावनाएँ शक्तिशाली हैं और हमें उनके मूल में जो अज्ञान है उन्हें दूर कर और विरोधात्मक शक्तियों का प्रयोग कर इन्हें कम करने के रास्ते ढूँढने होंगे। उदाहरण के लिए जब तक हम ए बी सी नहीं सीख लेते तब तक ए बी सी का अज्ञान तो बना रहेगा। केवल ए बी सी सीखकर ही हमारा अज्ञान मिटता है। हमारी भावनाओं के साथ भी कुछ ऐसा ही है।”
उन्होंने समझाया कि कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि किसी भी सामाजिक प्राणी में एक सीमित भावना में परोपकारिता होती है। दूसरों के बिना हम जीवित नहीं रह सकते; समाज का बाकी भाग हमारे भविष्य का स्रोत है। उन्होंने इसकी तुलना ज़मीन के एक टुकड़े से की जिस पर हमारी जीविका टिकी है। हमें इसकी देखभाल करनी है। इसी तरह मानव समाज में, हमें दूसरों की देखरेख करनी है। हमारे सामाजिक विभिन्नताओं के बावजूद, हमें यह भावना रखनी है कि 7 अरब मनुष्य एक परिवार के हैं, हमारे भविष्य का आधार। उन्होंने अस्पताल जाना एक ऐसा अवसर बताया जब हमें एक समान मनुष्यों के रूप में देखा जाता है। हमें जिस उपचार की आवश्यकता है उसके मिलने से पहले हम अपनी राष्ट्रीयता, जाति, धर्म या शैक्षणिक योग्यताओं को एक मुद्दा बनने की अपेक्षा नहीं करते। ठीक इसी तरह मौसम में परिवर्तन और पर्यावरण संकट में राष्ट्रीय सीमाओं को लेकर कोई सम्मान नहीं होता। बाहरी आकाश से आप उन्हें देख नहीं सकते। आप मात्र हमारा नीला ग्रह देख सकते हैं।
परम पावन ने रेगिस्तानों के विशाल क्षेत्रों को सौर्य ऊर्जा के लिए काम में लाए जाने की उनके स्वप्न की चर्चा की जो विलवणीकरण यंत्र (नमक को पानी से अलग करने की प्रक्रिया) चला सके, जिससे जल निकालकर रेगिस्तानों को हरा किया जा सके।
सम्पूर्ण मानवता के बारे में सोचते हुए, उन्होंने कहा कि हम सभी ने अपनी माँओं से जन्म लिया है और हममें से अधिकांश उनकी देख रेख के कारण जीवित हैं और बड़े हुए हैं। उसने हमें जो प्रेम दिया वह हमें दूसरों के प्रति प्रेम दिखाने की क्षमता देता है।
“जबकि हत्या, धमकाना, शोषण और घोटाले नियमित रूप से हमारे समाचार बनते हैं, पर जब हज़ारों बच्चे अपनी माँ की देख रेख और प्यार पाते हैं तो उसे छापा नहीं जाता क्योंकि हम उसको महत्त्व नहीं देते। हम नकारात्मक भावनाओं के प्रभाव में आ सकते हैं पर उन्हें नियंत्रण में रखा जा सकता है ताकि मानवीय मूल्यों के आधार पर जिनके मूल में वह प्रेम है भावनात्मक स्वास्थ्य का विकास किया जा सके। इसे ही मैं धर्म निरपेक्ष नैतिकता कहता हूँ।”
मिकी रॉबिन्स ने श्रोताओं की ओर से परम पावन जी के समक्ष प्रश्न रखे, उसने यह पूछते हुए प्रारंभ किया, बुद्ध बनने पर कैसा अनुभव होता है। उत्तर तेज़ थाः
“मैं? बकवास! मैं आपके जैसा ही एक मनुष्य हूँ।”
यह पूछे जाने पर कि एक व्यक्ति के स्तर पर कैसा बदलाव लाया जा सकता है, परम पावन ने उत्तर दिया कि संयुक्त राष्ट्र ने यह दिखा दिया है कि एक बड़ा कार्य़ालय और बहुत सारे कागज़ शांति पैदा नहीं करते। विश्व शांति, व्यक्तियों की आंतरिक शांति से आनी चाहिए। मैं यहाँ क्यों हूँ, इसके इसाई और बौद्ध उत्तर हो सकते हैं, पर जो एक सरल है वह यह कि इसके विषय में चिन्ता न की जाए और एक सुखी व्यक्ति होने की कोशिश की जाए। यह पूछे जाने पर कि ऐसी मृत्यु से कैसे बचा जाए जो भय और पश्चाताप से भरी हो, उन्होंने एक और अधिक सार्थक जीवन, समस्याएँ न खड़ी कर, दूसरे लोगों की सहायता कर और उनका बुरा करने से बचने का सुझाव दिया। क्षमा के बारे में उन्होंने कहा कि यदि आप भूल जाएँ, तो क्षमा करने के लिए कुछ भी नहीं हैं पर यदि आप दूसरों के प्रति क्रोध और अस्वीकार्यता का भाव रखते हैं तो वह एक श्रृखंला प्रतिक्रिया के एक अंग के समान है। क्षमा से ही हम क्रोध, दुर्भाव और बदला लेने भावना पर रोक लगा सकते हैं।
अंतिम प्रश्न कि क्या वे लौट कर आने का वादा करेंगे, परम पावन ने कहा,
“बिलकुल, मुझे यहाँ आना बहुत अच्छा लगता है। शायद अगले 5 - 10 वर्षों में हर दो वर्ष में एक बार। हाँ।”
“हमने जिनके बारे में बातें की उनके विषय में सोचें। यदि उसमें कुछ सार्थकता लगती है तो उसके विषय में और सोचें। अपने परिवार और मित्रों के साथ चर्चा करें। यदि इसमें कोई बात दिखाई नहीं देती, तो कोई बात नहीं, जब आप घर जाएँ तो इसी हॉल में छोड़ जाएँ।” उनके अंतिम सुझाव को मैत्री भाव से भरी तालियों का उत्तर मिला।
तुंबालोंग पार्क, डार्लिंग हारबर में तिब्बत के लिए मिलन में भाग लेते हुए परम पावन ने निर्वासित तिब्बती संसद के सभापति पेंपा छेरिंग, चीनी उदार विचार धारा के बुद्धिजीवी डॉ फेंग छोंग्यी और उनके पुराने मित्र आदरणीय बिल क्र्यूस के साथ मंच संभाला। उन्होंने तिब्बत के पर्यावरण के विषय में और एशिया के जल विभाजक के रूप में, जिसके कारण उसे थर्ड पोल का नाम मिला है, की भूमिका के बारे में बात की। उन्होंने उल्लेख किया कि 1974 से केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन ने निश्चय किया कि अलगाव की माँग न करते हुए यह स्वीकार करें कि जहाँ तक विकास का संबध है पी आर सी के साथ रहने में तिब्बत का हित है। परन्तु चीनी सरकार को तिब्बतियों को एक सार्थक स्वायत्तता देनी चाहिए और चीनी संविधान में शामिल अधिकारों को कार्यान्वित करना चाहिए।
हमारी अपनी भाषा, संस्कृति और जीवन शैली है और उसे हम संरक्षित रखना चाहते हैं। चीनी लोगों के साथ हमारे संबध सुधर रहे हैं, पर सेंसरशीप के कारण वे बहुत कम जानते हैं। हाल ही में मैं तिब्बतियों को सलाह दे रहा हूँ कि वे चीनी लोगों से सम्पर्क करें। मुझे बताया गया है कि यदि वे हमारे मध्यम मार्ग दृष्टिकोण के बारे में और अधिक जानें तो अधिकांश चीनी उसका समर्थन करेंगे। अपनी समस्याओं को सुलझाने का सबसे उत्तम तरीका है कि उनके य़थार्थ रूप को देखें। मैं आप सब के सहयोग की सराहना करता हूँ। कृपया आप कभी भी, कहीं भी कर सकें, तो चीनी लोगों को यथार्थ के विषय में शिक्षित करें।