मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया, जून 18 2013 - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा को सिडनी पीस फाउंडेशन द्वारा, संपूर्ण विश्व के लिए नैतिकता, पर चर्चा में भाग लेने के लिए न्यू साउथ वेल्स पारलियामेंट हॉउस में आमंत्रित किया गया, जिसमें 170 विद्यार्थी और अन्य लोग भी शामिल हुए। चर्चा की भूमिका के रूप में कडिगल लोगों और स्थानीय भूमि को लेकर जो समस्या थी, जो तिब्बती लोगों के तिब्बत की घरती की कहानी से मेल खाती है, को श्रद्धाजंलि दी गई।
परम पावन से विचारों का आदान प्रदान की प्रक्रिया आरंभ करते हुए ए बी सी के पत्रकार एन्ड्रू वेस्ट ने पूछा कि तिब्बत में क्या हो रहा है । परम पावन ने उत्तर दियाः
“पिछले 60 वर्षों में कुछ समय के लिए वस्तुस्थिति अच्छी रही है, कुछ समयों में बुरी रही है और कुछ अन्य समय जैसे अब, वे बहुत गंभीर हैं।”
वेस्ट ने कहा कि वह 119 आत्मदाह के विषय में सोच रहा था, जो 2009 से अब तक हुई हैं। परम पावन ने जवाब दिया कि यह अत्यंत दुःख की बात है और तिब्बतियों ने बहुत दुःख झेले हैं। अब पूरा तिब्बत भयभीत हैं और उस युवा चीनी समूह की याद दिला रहा है, जिनसे वे 1990 से मिले थे, जिन्होंने चीन को ऐसा स्थान बताया, जहाँ एक भय और संदेहभरे वातावरण में कोई यह नहीं कह सका कि वह क्या सोचता है।
संघर्ष में धर्म की भूमिका के विषय में पूछे जाने पर परम पावन ने इस बात को नकार दिया कि सिद्धांतों अथवा धार्मिक संस्थानों को लेकर हम धर्म को दोष दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म का संबध प्रेम, करुणा, सहनशीलता और आत्म – अनुशासन से है; उसका विरोध कौन कर सकता है? दूसरी ओर पूरे विश्व में धार्मिक संस्थान, पक्षपात भ्रष्टाचार से सदैव मुक्त नहीं हुए हैं। बर्मा में बौद्धों और मुसलमानों के बीच के संघर्ष के बारे में वे बोले कि उनके विचार से समस्या की जड़, धार्मिक से अधिक, आर्थिक और राजनैतिक है और बौद्ध मठों द्वारा मुसलमानों को आश्रय देने का समाचार सुनकर वे प्रसन्न हैं।
वेस्ट ने परम पावन को उनकी नई पुस्तक, ‘बियोन्ड रिलिजनः एथिक्स फॉर ए होल वर्ल्ड’ के विषय में बोलने के लिए संकेत दिएः
“मानव की मूल प्रकृति की ओर देखें। हमारी माएँ हमें जन्म देती हैं और हम उनके प्रेम के कारण जीवित रहते हैं। यदि वह हमें छोड़ देती है तो हम मर जाते हैं। चूँकि एक शिशु की अवस्था में से ही हमें प्रेम मिलता है, तो हममें दूसरों के लिए प्रेम दिखाने की क्षमता होती है। पर जैसे जैसे हम उम्र में बड़े होते हैं तो हमें ऐसा आभास होता है कि हम अपनी देखभाल स्वयं कर सकते हैं और हमें दूसरों की सहायता और प्रेम की कोई आवश्यकता नहीं। पर फिर भी हम सामाजिक प्राणी हैं, जिसका अस्तित्व और सुखी जीवन जीने का अवसर, बाकी समाज पर निर्भर करता है। हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में आधारभूत मानवीय मूल्यों के पोषण के लिए हमें कोई रास्ता खोजने की आवश्यकता है।”
धार्मिक हिंसा पर पुनः ज़ोर देकर पूछे जाने पर परम पावन ने दोहराया कि ऐसे संघर्ष, अधिकांशतः आर्थिक समस्याओं पर आधारित होते हैं, यद्यपि कभी कभी चित्त-सकीर्णता और पुराने ढंग की संकीर्णता को भी दोषी ठहराया जा सकता है। उनके इस संबंध में विचार पूछे गए, कि क्या स्कूलों को यह सिखाने की अनुमति दी जा सकती है, कि एक धर्म सही है और बाकी सब ग़लत। उन्होंने शरारती अंदाज़ में उत्तर दिया कि यदि आप में एक सृजनकर्ता के प्रति एक उत्कट विश्वास है, तो आप को यह विश्वास करना होगा कि उसने बौद्ध धर्म, बुद्ध और उसके साथ बाकी सारी वस्तुएँ बनाईं। दूसरी ओर परम पावन के लिए यह सोचना नितांत अवास्तविक होगा कि वे 7 अरब मनुष्यों को बौद्ध धर्म में परिवतर्तित कर सकते हैं, इसके अतिरिक्त वे हमेशा लोगों को सलाह देते हैं कि जिस धर्म में लोगों का जन्म हुआ है वे उसी से जुड़े रहें।
“यह विश्व एक बहु - धर्मीय, बहु – संस्कृति इकलौती सत्ता हो गई है, जिसमें बेहतर यह है, कि आप अपने मूल धर्म के प्रति निष्ठा बनाएँ रखें। परम पावन ने कहा, कि मंगोलिया में मैंने कोरियन मिशनरियों के धर्म परिवर्तन कार्य को देखा और जब वे मुझसे मिलने आए तो मैंने उनसे कहा कि मंगोलिया एक बौद्ध देश है और उनके लिए यह बेहतर होगा कि वे वहाँ किसी अन्य धर्म का प्रचार न करें।”
भविष्य को देखते हुए, उन्होंने यह आशा व्यक्त की, कि आनेवाली पीढ़ियों को उचित शिक्षा मिलेगी, एक ऐसी शिक्षा जो न केवल मस्तिष्क को ज्ञान देगी, पर लोगों में सहृदयता भी पोषित करेगी। उन्होंने टिप्पणी की, कि कितने ऐसे नेता हैं जो झूठ बोलने को और धोखा देने को तैयार हैं और इस को ठीक करने की कुंजी शिक्षा है। उन्होंने कहा कि जहाँ श्रद्धा एक तथ्य है, वहाँ स्वाभाविक तौर पर मानवीय बुद्धि को, धर्म निरपेक्ष नैतिकता आकर्षित करेगी। वे जिन मानवीय मूल्यों का प्रतीक हैं वे एक अधिक शांतिपूर्ण और करुणाशील विश्व के निर्माण का आधार हैं।
अपनी समापन टिप्पणी में परम पावन ने संकेत दिया कि, पूर्व प्रधान मंत्री वेन जियाबो और बंदी बनाए गए मानवीय अधिकारो की एक्टिविस्ट, लियु ज़ियाओबो ने चीन में एक अधिक स्वतंत्र और खुले समाज के बारे में बात की है, और यह अच्छा होगा कि वो देश जो ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं, अपना समर्थन अभिव्यक्त करें।
प्रो. स्टुअर्ट रीस ने इस कार्यक्रम के आयोजन में एम पी जॉन की सहायता को स्वीकार करते हुए परम पावन को उनके समय निकालकर आने के लिए धन्यवाद दिया। जैसे ही परम पावन कार से सिडनी हवाई अड्डे जाकर वहाँ से मेलबर्न जाने के लिए एन एस डब्ल्यू पार्लियामेंट हाउस से बाहर निकले, तो कई मित्रों और शुभचिंतकों ने परम पावन के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया।
परम पावन के सार्वजनिक व्य़ाख्यान के लिए 5800 सीटों के लिए पहले से ही टिकट बिक चुके थे। उनके मंच में आने से पूर्व तेनजिन छोग्याल ने गीत प्रस्तुत किया और ऑस्ट्रेलिया तिब्बत परिषद के क्यिनज़ोम धोंगड्यू, तिब्बत समर्थन पर बोले। परम पावन के एक और पुराने मित्र, प्रतिष्ठित युवाओं तक पहुँचने के कार्यकर्ता, और समुदाय के एक्टिविस्ट, लेस ट्वेंटिमेन ने बहुत ही हर्षित श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उनका परिचय कराया।
उन्होंने प्रारंभ किया “भाइयों और बहनों, मैं एक बार पुनः यहाँ आकर बहुत खुश हूँ। मुझे स्मरण है कि कुछ ही दिन पूर्व इसी सभागार में मैंने धर्म के वैश्विक परिषद में भाग लिया। पिछले कुछ दिनों पहले मैं सिडनी में था और उसके पहले न्यूज़ीलैंड में चार दिन था, जहाँ मुझे अपने विचारों और अनुभवों को बाँटने का अवसर मिला। मैं हमेशा 7 अरब मनुष्यों के हमारे परिवार की एकता को सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मानता हूँ; हम शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक रूप से एक हैं। हम सभी एक सुखी जीवन चाहते हैं और हम सब को उसे पाने का अधिकार है।”
उन्होंने कहा कि अपनी चतुरता के कारण मनुष्य सबसे अलग माना जाता है, पर दुर्भाग्यवश वह अकसर उसका उपयोग समस्याओं को खड़ी करने में लगाता है। उदाहरण के लिए हमने अपने जीवन को और आरामदायी बनाने के लिए तकनीकों का विकास किया है, पर कभी कभी हम उसका प्रयोग भय और आतंक पैदा करने के लिए बहुत हिंसात्मक तरीके से करते हैं। इसमें जो वस्तु नहीं है, वह है हमारी बुद्धि को संतुलित करने के लिए सहृदयता, और अन्य मनुष्यों के प्रति चिंता की भावना। करुणा ही हमारे जीवन को अर्थवान बनाती है। सहृदयता के बिना विश्वास का विकास असंभव है, और उसके बिना दूसरों को धोखा देना और शोषण करना सरल है। अविश्वास, भय और संदेह हमारे चित्त की शांति को नष्ट कर देते हैं।
“यदि हमारा चित्त शांत है, तो हम हमेशा खुश रहेंगे। अपने आप को धोखा देते हुए कि पैसा ही सुख का स्रोत है, हम खुश नहीं रह सकते। सामान्य बुद्धि दिखाती है कि एक सहृदय व्यक्ति का ही चित्त शांत होता है।”
मैडिसन, विसकॉन्सिन और स्टेनफोर्ड जैसे विश्वविद्यालय करुणा के सरल प्रशिक्षण के प्रभाव की जाँच कर रहे हैं। प्रतिभागी आंतरिक मूल्यों के प्रशिक्षण में तीन हफ्ते के लिए प्रतिदिन 30 मिनट से एक घंटे का समय बिताते हैं। इसके पहले कि वे प्रारंभ करें उनका रक्त चाप, दबाव और अन्य तत्त्वों की जाँच होती है। तीन सप्ताह के अंत में उनका पुनः परीक्षण होता है और पाया गया है कि इन तथ्यों में सुधार हुआ है। यह प्रमाणित करता है कि किस तरह शांत चित्त का शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
परम पावन ने संकेत किया कि यह सामान्य बुद्धि की बात है जब हम देखते हैं कि, आपके पड़ोसियों में सुखी परिवार वे हैं, जो एक दूसरे के प्रति अधिक प्रेम की भावना रखते है, इसके बजाय कि वे भौतिक रूप से अधिक सम्पन्न हों।
“कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि करुणा केवल धार्मिक लोगों के लिए प्रासंगिक है,” उन्होंने कहा “यह गलत है। करुणा दैनिक जीवन में सुखी रहने के लिए प्रासंगिक है। करुणा, अहिंसा और शक्ति साथ लाती है, जबकि आक्रामकता और क्रोध दुर्बलता के प्रतीक हैं। हमारे जीवन के प्रारंभ से ही हम प्रेम का अनुभव करते हैं जो ऐसा धरातल है जहाँ हमें स्वयं प्रेम और करुणा उत्पन्न करनी है। क्रोध और भय हमारे जीवन का अंग हो सकते हैं, पर वे हमारा कुछ भला नहीं करते।”
चूँकि सहृदयता एक सुखी जीवन की कुंजी है, तो हमें उसके विकास के लिए रास्ता ढूँढना चाहिए। पारम्परिक रूप से धर्मों ने प्रेम, करुणा, धैर्य और सहनशीलता के साथ इसके विकास को भी प्रोत्साहित किया है। भारत में विश्व के सभी धर्म साथ साथ सम्मान और समन्वय की भावना के साथ रहते हैं, एक जीता जागता उदाहरण कि ऐसा किया जा सकता है। परन्तु इस अथवा उस धार्मिक परम्परा पर निर्भर न होकर वैज्ञानिकों, शिक्षा शास्त्रियों और इसमें रुचि रखने वाले अन्य लोग यह देख रहे हैं, कि हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को किस प्रकार प्रारंभ किया जाए।
जब मैं दूसरे लोगों से मिलता हूँ, तो मैं सोचता हूँ कि आंतरिक मूल्यों के विकास को किस प्रकार प्रोत्साहित कर सकते हैं, और किस तरह इन मूल्यों को आधार बना कर हम इक्कीसवीं शताब्दी को करुणा और शांति का युग बना सकते हैं।
ब्रिटिश – ऑस्ट्रेलियन अभिनेत्री और हास्य अभिनेता स्जुबान्स्की ने श्रोतओं की ओर से परम पावन के लिए कई प्रश्न पढ़े। बुराइयों के स्रोत के बारे में उनका उत्तर था, कि बौद्ध दृष्टिकोण से, सभी नकारात्मक विचार अज्ञान से जन्म लेते हैं। वास्तविकता की समझ से ही हम बुरे कार्यों का और उनके नकारात्मक परिणामों का अंत कर सकते हैं और उसके स्थान पर स्वयं को सहायक के रूप में प्रोत्साहित कर सकते हैं। एक और प्रश्न, कि वे विश्व में क्या बदलेंगे, उन्होंने अपने जीवन में देखे हिंसा के स्तर, हिंसा की अभिव्यक्ति और बीसवीं शताब्दी के रक्तपात का स्मरण किया। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जिसने अपना जीवन मानवीय मूल्यों और धार्मिक समन्वय के विकास के लिए समर्पित किया हो, वे आशावान हैं कि विश्व में शांति की भूख बढ़ रही है। कई युवा युद्ध और हिंसा से तंग आ चुके हैं।
एक बढ़ती आम राय है कि जब शस्त्र शामिल होते हैं तो उसका परिणाम विनाश होता है।
यह पूछे जाने पर कि दुःख को कम करने में ध्यान किस प्रकार सहायक हो सकता है, परम पावन ने उत्तर दिया कि केवल ध्यान समस्या का समाधान नहीं कर सकता। वह तुममें परिवर्तन लाने में सहायता कर सकता है, पर विश्व में परिवर्तन लाने के लिए वह जो कार्य करता है, वह करुणा से प्रेरित होते हैं।
सभागार से बाहर निकलने से पूर्व, परम पावन ने श्रोताओं से, विशेषकर उनसे, जो इक्कीसवीं शताब्दी के हैं, से आग्रह किया कि उन्होंने जो भी कहा है उसके विषय में वे गंभीरता से सोचें। उन्होंने उनसे कहा कि यदि उन्हें वह अच्छा लगे, तो उसके विषय में और सोचें और अपने मित्रों व परिजनों के साथ चर्चा करें। पर यदि उन्हें उसमें कुछ सार्थकता न दिखाई देती हो, तो उनका सुझाव यह है कि वे उसे छोड़ दें।
कल परम पावन मेलबर्न में प्रवचन दे रहे हैं। वे प्रातः हृदय सूत्र और दोपहर में चित्त शोधन के आठ पदों की व्याख्या करेंगे।