बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - २४ दिसम्बर २०१३ - परम पावन दलाई लामा आज तड़के ही बेंगलुरु से बाइलाकुप्पे के लिए रवाना हुए। प्रस्तावित समय के अनुसार उनका दल रास्ते में थोड़ी देर के लिए मंड्या में रुका और फिर यात्रा प्रारंभ करने के पूर्व पत्रकारों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि वे पिछले वर्ष प्रारंभ किए बौद्ध प्रवचन के क्रम को जारी रखने के लिए बाइलाकुप्पे में तिब्बती आवास जा रहे थे। ये प्रवचन बोधिपथक्रम, भारतीय आचार्य अतीश द्वारा तिब्बत में दिए गए निर्देशों से आए हैं। वे अपेक्षा कर रहे हैं कि १०,००० से ऊपर भिक्षु, तिब्बती और विदेशी लोग भाग लेंगे। उन्होंने पत्रकारों को बताया कि तिब्बती उस समय के मैसूर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धवनहल्ली निजलिंगप्पा के बहुत आभारी हैं जिनकी तिब्बतियों को भूमि दिए जाने में बहुत बड़ी भूमिका थी जिनमें उन्होंने स्वयं को कृषि समुदायों में पुनः प्रतिस्थापित किया। इसके अतिरिक्त तिब्बती कई महाविहार विश्वविद्यालयों की पुनर्स्थापना करने में सक्षम हुए हैं जो आज शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र हैं और जो तिब्बतियों के अतिरिक्त हिमालयीन क्षेत्र, मंगोलिया, रूसी मंगोलियाई गणराज्यों और एशिया के अन्य भागों से छात्रों को आकर्षित कर रहे हैं।
सेरा लाची महाविहार में लगभग दोपहर के समय पहुँचने पर गदेन ठि रिनपोछे, जंगचे और शरपा छोजे और सेरा महाविहार के उपाध्यायों ने परम पावन का स्वागत किया। पवित्र चित्रों के समक्ष अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के बाद उन्होंने अपना आसन ग्रहण किया। धर्मोत्कर्ष के लिए प्रार्थना, १६ अर्हतों की वंदना का पाठ हुआ जब नमकीन चाय और मीठे चावल दिए गए। परम पावन ने सभा को संबोधित किया:
"हम यहाँ बोधिपथक्रम की शिक्षा के लिए एकत्रित हुए हैं। आप सभी को मेरा अभिनंदन, उपाध्यायों, पूर्व उपाध्यायों, महाविहार के अधिकारियों और अन्य लोग। प्रतीत होता है कि १००० विदेशियों ने भी आने के लिए पंजीकृत किया है। इसके बाद मैं बंगलौर के पास के विद्यालयों और विश्वविद्यालयों का दौरा करूँगा और फिर स्वामी विवेकानंद से संबंधित एक समारोह में भाग लेने के लिए कोयंबटूर जा रहा हूँ। मैं एक हिंदू अभ्यासी से भी भेंट करूँगा जिसने २७ वर्ष से मौन घारण किया है, एक ऐसा अभ्यास जिसके लिए प्रभावी जागरूकता और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। मैंने एक बार एकांतवास में एक सप्ताह के लिए मौन रहने का प्रयास किया था और प्रायः बात करने की इच्छा होती थी।"
"मैं यह देखकर प्रसन्न हूँ कि यहाँ अभी भी परंपरागत रूप से अपनी शिक्षा और अभ्यास बनाए हुए हैं। बाइलाकुप्पे सबसे पुराना और सबसे बड़े अावासों में से एक है। पुरानी पीढ़ी के जिन लोगों ने इसे प्रतिस्थापित किया था वे बहुत अधिक शिक्षित नहीं थे, परन्तु उन्हें खेतों की स्थापना के लिए बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वर्तमान नई पीढ़ी में शिक्षा है और हमें देखना है कि हम किस तरह उनके कौशल से सुधार ला सकते हैं और लाभान्वित हो सकते हैं। आवास के नेताओं को जो पहले किया गया है केवल उसका पालन नहीं करना चाहिए, उन्हें इस बात को जानने के लिए कि क्या आवश्यक है लोगों से परामर्श लेना चाहिए और जहाँ आवश्यक हो वहाँ परिवर्तन करना चाहिए।"
उन्होंने कहा कि इस तरह महाविहारीय संस्थान तीन पिटकों में संरक्षित बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन और तीन उच्च प्रशिक्षण के में लगे हुए हैं। और इस तरह उन्होंने बड़े कठिन समय में भी ग्रंथीय और अनुभवात्मक परंपरा को संरक्षित रखा है।
"आपने परिश्रम किया है, पर हमें उनका भी स्मरण करना चाहिए जिन्होंने यहाँ महान योगदान दिया और जिनका निधन हो गया है। हम पीढ़ी दर पीढ़ी यह आवास बसाने के िलए उनकी दयालुता को याद करेंगे।"
"हमारे यहाँ टुल्कु की परम्परा भी है, वो परम्परा जो करमापा और समदिंग दोर्जे फगमो के साथ प्रारंभ हुई। एक लंबी अवधि से वे महान सम्मान के पात्र रहे हैं। जैसा जे चोंखापा ने बोधिपथक्रम पर अपने महान भाष्य में कहा है कि एक लामा में शिक्षा, ज्ञान और अनुभव के गुण होने चाहिए।"
सेरा लाची महाविहार से, परम पावन ने सेरा मे की कम दूरी की यात्रा तय की, जहाँ वे पहले सप्ताह रहेंगे, जिसके बाद वे सेरा जे में ठहरेंगे। प्रवचन सेरा जे के प्रांगण में कल प्रारंभ होंगे।
"जैसा मैं प्रायः कहता हूँ, मैं जानता हूँ कि सेरा मे और गदेन शरचे में आपका समय कठिनाई भरा रहा है, पर आप भिक्षुओं में से बहुतों ने अपने सामान्य ज्ञान को लागू कर और अपनी बुद्धि का प्रयोग कर उचित निर्णय लिया है। एक बार फिर मैं आपको धन्यवाद देना चाहूँगा। यह समस्या मेरे बारे में नहीं है, परन्तु जे चोंखापा द्वारा सिखाए गए मार्ग के संरक्षण के बारे में है, जो उपाय और प्रज्ञा का एक पूर्ण मार्ग है। उनका लेखन और प्रस्तुति अद्वितीय था क्योंकि उसे उन्होंने नागार्जुन और उनके अनुयायियों के लेखन पर आधारित किया था। वे संपूर्ण और समावेशी हैं। उन्होंने कुछ विशिष्ट व्यक्तिओं के अभ्यास से संबंधित नहीं अपितु बौद्ध धर्म की सामान्य संरचना के संदर्भ में लिखा।
ऐसे विहार थे जहाँ लोगों ने कहा, 'हमें बहुत खुशी है कि परम पावन यहाँ आए पर उनके साथ एक दानव है। इसलिए हमें वास्तव में जे रिनपोछे की शुद्ध परंपरा को संरक्षित करने की आवश्यकता है जिसकी प्रशंसा तकचंग लोचावा जैसे महान विद्वान ने की जो प्रारंभ में उनके आलोचक थे पर अंत में प्रशंसक हो गए। जे रिनपोछे का दृष्टिकोण और उनके गुह्य समाज, चक्रसंवर और वज्रभैरव के अपने अभ्यास दोष रहित थे, किन्तु दोलज्ञेल का अभ्यास उस परंपरा को खराब करता है। यह एक दोष है। निस्संदेह एक समय मैंने भी ऐसा किया था। पर मुझे अपनी त्रुटि की अनुभूति हुई और मैंने उस सच्चाई को देखा जो पाँचवें दलाई लामा का कहना था।
"हम आध्यात्मिक आचार्य, ध्यान के देवता और रक्षक को मंजुश्री के रूप में देखते हैं, परन्तु दोलज्ञेल मात्र एक भयंकर आत्मा है जैसा ठिजंग रिनपोछे ने उल्लेख किया है जो सिर्फ एक भयंकर सांसारिक आत्मा है। ठिजंग रिनपोछे ने उसे शरण की एक वस्तु के रूप में न मानकर उसके साथ एक सेवक की तरह व्यवहार किया।"
"इसमें कोई संदेह नहीं कि जब धर्म के अभ्यास की बात आती है तो आप जो चाहते हैं वह करने का आपको अधिकार है। पर इसे लेकर आपको पाखंडी नहीं होना चाहिए उदाहरण के लिए मेरे सामने तो कोई यह कहे कि वह यह नहीं करता पर मेरी पीठ के पीछे उसे बनाए रखता है। और तो और यदि आपको तिब्बती जनता का सामना करना पड़े तो आप अच्छा महसूस नहीं करेंगे। जब मैं उनसे मिलने गया जो शरचे में हैं, उन्होेंने कहा कि वे नए दोखांग के थे और मैंने उनसे कहा कि आप नए नहीं हैं वे हैं।"
परम पावन ने यह कहते हुए समाप्त किया:
"प्रसन्न रहें, जे रिनपोछे की इस सलाह से साहस लें, "प्रारंभ में मैंने अध्ययन किया, शिक्षाएँ मेरे समक्ष निर्देश के रूप में प्रकट हुई और मैंने दिन और रात का अभ्यास किया।" मैं यही करता हूँ।