हेनोवर, जर्मनी - सितम्बर २०, २०१३ - परम पावन दलाई लामा के वर्तमान यूरोप के दौरे का समापन हेनोवर में वियेन गिआक वियतनामी मंदिर की यात्रा थी। आगमन पर जैसे ही उन्होंने अपनी गाड़ी से बाहर कदम रखा, भिक्षुओं के बीच उन्होंने कई मित्रों को पहचाना, जो उन्हें लेने आए थे और जो उन्हें मंदिर के अंदर ले गए।
बुद्ध की एक खड़ी प्रतिमाके समक्ष अपनी श्रद्धा व्यक्त कर, उनके लिए बनाए गए आसन को ग्रहण करने से पूर्व परम पावन मंत्र का पाठ करने हेतु बैठ गए। अपने व्याख्यान का प्रारंभ बुद्ध की प्रशंसा में नागार्जुन द्वारा रचित एक छन्द से करते हुए उन्होंने कहा:
“मैं इस वियतनामी मंदिर की यात्रा करते हुए बहुत प्रसन्न हूँ। ऐतिहासिक रूप से बुद्ध के अनुयायियों में पालि परंपरा को बनाए रखने वाले वरिष्ठ हैं और जो संस्कृत परंपरा का पालन करते हैं, उनमें चीनी और तत्पश्चात वियतनामी, कोरियाई और जापानी वरिष्ठ हैं। बौद्ध धर्म हम तिब्बतियों को बाद में प्राप्त हुआ और हम जैसे कनिष्ठ छात्रों के लिए यह प्रथा है कि हम अपने वरिष्ठों के प्रति सम्मान व्यक्त करें। बुद्ध के महापरिनिर्वाण को २५०० से वर्ष से भी अधिक का समय हो चुका है और विश्व के विभिन्न भागों में शिष्य अब भी उनकी शिक्षाओंका पालन करते हैं जो आनंद का स्रोत है।”
उन्होंने टिप्पणी की, कि इस इक्कीसवीं सदी में प्रौद्योगिकी का अत्यधिक विकास हुआ है पर यह भयानक विनाश का कारण हो सकता है। हमें आवश्यकता है कि मन की शांति को विकसित करने के लिए अपने आंतरिक मूल्यों की ओर अधिक ध्यान दें। ऐसी परिस्थितियों में हम यह सुनिश्चित कर पाएँगे कि तकनीक का प्रयोग रचनात्मक ढंग से हो। उन्होंने माना कि उस देश में युद्ध के दौरान आधुनिक हथियारों की शक्तिके कारण वियतनामी लोगों को अत्यंत दुख और बहुत अधिक विनाश का अनुभव करना पड़ा है। उन्होंने याद किया कि इस दौरान जापान जाते हुए वियतनाम के ऊपर से उड़ते हुए उन्होंने अपनी खिड़की से बी५२ बम हमलावरों को देखा; उन्होंने कहा कि वे अपने आप को धरती के लोगों के बारे में सोचने से न रोक पाए।
अब विश्व के कई भागों में हिंसाके विरोध में प्रबल भावना और शांति के लिए एक दृढ़ इच्छा है। युद्ध विरोधी, हिंसाविरोधी आंदोलन मजबूत हैं। हमारी विभिन्न धार्मिक परंपराओं में व्यक्त मूल्य जैसे प्रेम, करुणा, सहिष्णुता और आत्म अनुशासन बहुत प्रासंगिक बन गए हैं। इसलिए इन परंपराओं का विश्व शांति निर्मित करने में एक विशेष उत्तरदायित्व है और यह महत्वपूर्ण है कि उन के बीच सद्भाव और सम्मान हो।
“बौद्ध धर्म एक अद्वितीय दार्शनिक दृष्टिकोण, अन्योन्याश्रय की अवधारणा है कि सब कुछ अन्य कारकों पर निर्भर करता है, कि कुछ भी वस्तुनिष्ठ रूप से या स्वतंत्र रूप से अस्तित्व नहीं रखता। इसके लिए संस्कृत शब्द प्रतीत्य समुत्पाद है ।पालि और संस्कृत दोनों परंपराओं में यह प्रचलित दार्शनिक दृष्टिकोण है।”
“बुद्ध ने परस्पर निर्भरता के आधार पर चार आर्य सत्यों की शिक्षा दी। संस्कृत परंपरा के सभी अनुयायी हृदय सूत्र का पाठ करते हैं, जिसके अनुसार ‘रूप शून्य है, शून्यता ही रूप है’। बुद्ध के अनुसार, दुःख का मूल अज्ञान है, यह भ्रांति, कि वस्तुएँ अपने आप में स्वतंत्र अस्तित्व रखती है, जबकि वास्तव में वे अन्य कारकों की वजह से परस्पर आश्रित हैं। जिस शून्यता की शिक्षा उन्होंने दी, वह कुछ भी न होना नहीं है, अपितु स्वतंत्र अस्तित्व की शून्यता है।”
परम पावन ने समझाया कि परस्पर निर्भरता को समझ कर उसके बारे में चिन्तन करने से हमारी अज्ञानता कम होती है और यथार्थ की हमारी समझ बढ़ती है। इसी तरह हम अपने चित्त में परिवर्तन ला सकते है। हम हृदय सूत्र मंत्र का उच्चारण अलग अलग ढंग से कर सकते हैं पर वह जो दिखाता है वह समझ का क्रमबद्ध विकास है, जो बुद्धत्व तक पहुँचता है।
“हम बुद्ध की शरण में जाते हैं पर अंततः हमारा उद्देश्य स्वयं बुद्धत्व प्राप्त करना है; यह बड़ी महत्वाकांक्षा है। बुद्ध ने कहा कि बुद्धत्व का बीज, बुद्ध प्रकृति हमारे अंदर है। जब आप युवा विद्यार्थी होते हैं तो एक लक्ष्य का होना जैसे कि एक प्रोफेसर बनना उपयोगी होता है, और बौद्ध धर्म की संस्कृत परंपरा के अनुयायियों के लिए बुद्धत्व प्राप्ति की महत्वाकांक्षा उपयोगी है।”
“वह प्रज्ञा जो शून्यता को समझती है एकाग्रता से और सशक्त हो जाती है। एकाग्रता चित्त की शक्ति को सहन करना सिखाती है और एकाग्रता के विकास के लिए हमें नैतिकता के अनुशासन की आवश्यकता है।”
“चित्त के क्लेशों को मिटाने की एक प्रेरणा, दुःख से हमारी अपनी मुक्ति है; दूसरी, क्लेशों के चिह्नों तक को मिटाना है जो ज्ञान में बाधक हैं। एक बार उन पर विजय प्राप्त कर लें तो आप दोनों सत्य साथ साथ देख सकते हैं, जो कि बुद्धत्व है। यदि हम इस प्रेरणा के साथ तीन उच्च प्रशिक्षणों का अभ्यास करें तो यह सूक्ष्मतम विचलित करने वाली भावनाओं का मारक बन जाता है।”
हृदय सूत्र मंत्र पर लौटते हुए परम पावन ने अंतिम शब्द, 'बोधि स्वाहा' को सभी बाधाओं और उनके चिह्नों को मिटाने और सर्वज्ञ चित्त की प्राप्ति के सम कहा। उन्होंने कहा कि विकासशील परोपकारिता और प्रज्ञा का एक साथ विकास दैनिक बौद्ध अभ्यास का आधार होना चाहिए।
उन्होंने बुद्ध की उनके अनुयायियों के लिए सलाह, कि मात्र उनके प्रति श्रद्धा के कारण उनके वचनों को न मानें, अपितु उनकी जाँच कर परीक्षा करें, का स्मरण करते हुए, विशेषकर संस्कृत परम्परा में परीक्षण की प्रक्रिया पर बल दिया। इक्कीसवीं सदी के बौद्धों के रूप में हम केवल मंत्र पाठ न करें, यद्यपि उसका अपना स्थान है, पर अधिक महत्वपूर्ण है अध्ययन।
“अतः कृपया अध्ययन करें । पता करें कि बुद्ध, धर्म और संघ क्या हैं। स्मरण रखें कि बुद्ध सदैव प्रबुद्ध नहीं थे, जब उन्होंने मार्ग पर चलना प्रारंभ किया तो वे भी हमारे जैसे ही थे। यह समझने के लिए कि बुद्ध क्या है हमें मार्ग को समझना होगा।”
सदा की तरह परम पावन ने श्रोताओं से प्रश्न आमंत्रित किए और पहला प्रश्न पूर्व और पश्चिम के बौद्ध धर्म के बीच के अंतर को लेकर था। उन्होंने उत्तर दिया बुद्ध की शिक्षाएँ तो वैसी की वैसी बनी रहती हैं, यद्यपि सांस्कृतिक जालों में अंतर आ सकता है। परन्तु, उन्होंने कहा कि संस्कृति के बजाय हमें शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए। एक अन्य प्रश्न, धर्म की गिरावट और उसके ह्रास से था। परम पावन ने बुद्ध को उद्धृत कर कहा कि उनकी शिक्षा इसलिए लुप्त नहीं होगी कि वे अपर्याप्त थी पर इसलिए कि अनुयायी अब नहीं जानते थे या उचित रूप से शिक्षा का समर्थन करते थे।
अंत में, एक महिला ने परम पावन से उसके जैसे लोगों की सहायता के लिए १५वें दलाई लामा के रूप में लौटने का अनुरोध किया। उन्होंने उत्तर दिया कि उन्होंने १९६९ में ही यह स्पष्ट कर दिया था कि भविष्य में दलाई लामा संस्थागत रूप से जारी रहेगी अथवा नहीं यह तिब्बती लोगों के निर्णय पर निर्भर करेगा। यदि वे जारी रखना चाहते हैं तभी अगले दलाई लामा का प्रश्न उठेगा अन्यथा उन्होंने कहा कि वे अंतिम हो सकते हैं।
“यद्यपि इसका अर्थ यह नहीं कि मेरे पुनर्जन्म का अंत हो जाएगा। मेरी सबसे प्रिय प्रार्थना, शांतिदेव का पद है, जो कहता है:
जब तक है अंतरिक्ष,
जब तक हैं सत्व,
तब तक स्थित रहूँ मैं भी,
विश्व के दुःख दूर करने हेतु।
इसलिए, मैं रहूँगा।”
वियेन गिआक वियतनामी मंदिर और भक्तों की भीड़ से निकलते हुए, जो उन्हें जाते नहीं देखना चाहते थे, परम पावन भारत वापस लौटने की लम्बी उड़ान के लिए हेनोवर हवाई अड्डे के लिए गाड़ी से चल पड़े।