मैक्सिको नगर, मैक्सिको - अक्तूबर १३, २०१३ - आज सुबह एरिना सिउडाड डी मेक्सिको पहुँचने पर परम पावन दलाई लामा ने दो स्थानीय बौद्ध समूहों के प्रतिनिधियों के साथ भेंट की। वे उन्हें यह समझाने के लिए उत्सुक थे कि कर्मकांड करना और प्रार्थना करना एक सीमा तक अच्छी बात है पर इक्कीसवीं सदी में यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि बौद्ध धर्म क्या है और जिसके लिए अध्ययन की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि वैज्ञानिक और अन्य लोग बौद्ध धर्म में अधिक रुचि ले रहे हैं, वह उन्हें चित्त के विषय में क्या बता सकता है। कांग्युर और तेंग्युर से बौद्ध विज्ञान, दर्शन और धर्म से संबंधित सामग्री संकलन करने की परियोजना चल रही है, जिससे उनके शैक्षणिक अध्ययन में सरलता होगी। उन्होंने धर्म केन्द्रों में भी इस तरह के प्रावधानों को बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
अपने सार्वजनिक व्याख्यान को आरंभ करने से पूर्व १५,००० की क्षमता वाले श्रोताओं से उन्होंने कहाः
“भाइयों और बहनों, मैं यहाँ आकर और आप में से बहुतों को यहाँ देखकर बहुत खुश हूँ। मैं इस अवसर पर आप सब को, और उन लोगों को जिन्होंने इस कार्यक्रम के आयोजन में कार्य किया है, धन्यवाद देना चाहूँगा। मैं मेरे पुराने मित्र रिचर्ड गियर को भी धन्यवाद कहना चाहूँगा, जिनको मैंने 'तोंग-लेन' लेन-देन के अभ्यास के विषय में बोलते हुए सुना है। मैं धर्म – निरपेक्ष नैतिकता के विषय में बोलने जा रहा हूँ और वह आध्यात्मिक गुरु हैं।”
“जब भी मैं आप जैसे अन्य लोगों से मिलता हूँ तो मैं अपने आप को केवल इस ग्रह में बस रहे ७ अरब मनुष्यों में से एक मानता हूँ। मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से हम एक ही हैं। हममें से प्रत्येक में अच्छे और बुरे की क्षमता और क्रोध, भय, घृणा, संदेह और लोभ जैसी विचलित करने वाली भावनाओं पर काबू पाने की क्षमता है। ये भावनाएँ कई समस्याओं का कारण हो सकती है। दूसरी ओर यदि आप मैत्री, करुणा और दूसरों के लिए सोच का विकास करेंगे तो क्रोध, घृणा और ईर्ष्या के लिए कोई स्थान न रह जाएगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि यदि वह इस पर ध्यान देते हैं कि वह किस रूप में अलग हैं, कि वे तिब्बती हैं, एक बौद्ध भिक्षु हैं, परम पावन १४ वें दलाई लामा हैं, तो इसमें उन्हें अलग करने और उनके तथा अन्य लोगों के बीच दूरी बनाने की एक प्रवृत्ति है। यह किसी काम का नहीं और यह केवल तनाव का कारण बन सकता है।
“हर कोई एक सुखी जीवन जीना चाहता है और कोई भी समस्याओं का सामना नहीं करना चाहता, उन्होंने कहा”, और सभी को एक सुखी जीवन जीने का अधिकार है। हमारे आधुनिक समाज में आज हम सोचते हैं कि हम भौतिक वस्तुओं के आधार पर सुख पा सकते हैं। पर यदि यह सच होता तो मेरे धनवान मित्रों से कोई भी दुखी न होते, जिनमें से कई हैं। और जो इतने धनी नहीं है, उनमें आंतरिक शक्ति, आत्मविश्वास और सुख न होता, जो उनमें है।”
अचानक उनके सामने के मैदान को देखते हुए, उन्होंने हँसते हुए कहा कि बैठने के तीन स्तरों की योजना उन्हें तीन लोकों का स्मरण कराती है, अरूप, रूप और काम। इन तीन लोकों के सत्व सभी सुख का जीवन चाहते हैं और उन्हें इसका अधिकार है।
उन्होंने कहा कि हमारी पीड़ा और सुख के अनुभव के दो स्तर पर होते हैं, शारीरिक और मानसिक। हममें देखने, सुनने, अच्छी वस्तुएँ चखने की संवेदी चेतना है, जो अस्थायी खुशी लाती है। मानसिक स्तर पर संवेदी अनुभव के बिना हम स्थायी सुख प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के रूप में चित्त की शांति, जो हमें एकाग्र विश्वास अथवा प्रेम और करुणा के अभ्यास से प्राप्त होती है। इस दौरान हम शारीरिक पीड़ा को मानसिक संतुष्टि के साथ वश में कर सकते हैं, लेकिन मानसिक व्याकुलता को शारीरिक सुख सुविधा से चैन नहीं मिलता।
यूरोप में विगत वर्षों में नैतिक मूल्य चर्च् का क्षेत्र था, और जैसे चर्च का प्रभाव कम हुआ है तो शैक्षणिक संस्थानों को अपने हाथ में उत्तरदायित्व लेना चाहिए था। हमें अपनी शिक्षा प्रणाली के प्रभाव को और व्यापक करने की आवश्यकता है, और बुद्धि को पैना करने के लिए शिक्षा देने के अतिरिक्त सहृदयता के विकास को प्रोत्साहित करना है।
“हम एक वैश्विक संकट का सामना कर रहे हैं। हम इसके साथ कैसे निपटें? शिक्षा के माध्यम से। जिस तरह हम स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखते हैं, अब हमें मानसिक और भावनात्मक स्वच्छता की भावना को भी अपनाना होगा। मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एकमात्र प्रभावी उपाय, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता, शिक्षा के माध्यम से आती है और हमें उन्हें हमारी शिक्षा प्रणाली में शामिल करने के रास्ते ढूँढने होंगे, बच्चों को बहुत कम उम्र में ही बाल विहार से विश्वविद्यालय तक प्रशिक्षित करना होगा।
“हम में से प्रत्येक, हमारे अपने जीवन में मानवीय मूल्यों को अभिव्यक्त करने की क्षमता रखता है। हम सहृदयता की भावना का विकास स्वयं कर सकते हैं, अपने बच्चों को दें और हमारे अपने परिवार में इसका विकास कर सकते हैं। हम अपने पड़ोस में अन्य परिवारों तक इसे पहुँचा सकते हैं, तब यह, एक लहर प्रभाव की तरह झील के उस पार तक फैलता है।
“यदि इनमें से कुछ भी आपको रुचिकर नहीं लगता तो कृपया इसे भूल जाएँ। पर यदि इसके प्रति आपकी रुचि जागती है तो इस पर और अधिक सोचें। इस पर अपने मित्रों के साथ बातचीत करें और दूसरों के साथ इसे बाँटे। धन्यवाद। यही मेरा व्याख्यान है। अब प्रश्न।”
इस प्रश्न पर कि समाज में हिंसा को किस प्रकार शांत किया जाए, परम पावन ने उत्तर दिया कि प्रायः जिनके बचपन में स्नेह का अभाव होता है वे वयस्क अवस्था में भी असुरक्षित और भयभीत रहते हैं। शांति से रहने और सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए सहृदयता महत्वपूर्ण कारक है। अपराध बोध पर किस प्रकार काबू पाया जाए, पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि बौद्ध यह मानते हैं कि चाहे कितनी ही बड़ी गलती क्यों न की गई हो, उसे शुद्ध करना और उस पर काबू पाना सदा संभव है। परिवर्तन हमेशा संभव है। एक अन्य प्रश्नकर्ता जानना चाहता था कि क्रोध को किस प्रकार काबू में रखा जाए। परम पावन ने यह सुझाव दिया कि कभी कभी अपने क्रोध को निकाल देना बेहतर होता है जैसे कि बच्चे से करते हैं। एक आवेश आता है और वह चला जाता है। कुछ वयस्क अपने क्रोध को पालते, अंदर ही अंदर सुलगते हुए एक मुस्कुराता चेहरा लिए रहते हैं, और उस क्षण की प्रतीक्षा करते हैं जब वे पलट वार कर सकते हैं। यह एक भूल है।
एक अंतिम प्रश्नकर्ता ने पूछा कि क्या विश्व के लिए कोई आशा है, परम पावन ने सकारात्मक उत्तर दिया। उन्होंने १९९६ में अंग्रेज रानी माँ के साथ हुई उनकी भेंट का स्मरण किया और चूँकि वह बीसवीं सदी जितनी ही वृद्धा थी, उनसे पूछा कि उनके जीवन काल में चीज़ें बेहतर हुई या बिगड़ी। बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने कहा कि उनमें सुधार हुआ है; जब वे छोटी थी तो मानव अधिकार या आत्मनिर्णय को लेकर कोई बातचीत नहीं थी, विचार, जिन्हें सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जा रहा है। इसी तरह बीसवीं शताब्दी में कोई पर्यावरण पर अधिक ध्यान न देता था जो एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है और न ही धनवान और निर्धन के बीच की खाई या प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग। केवल ऐसे समय, जब हम कल्पना करते हैं कि सभी कार चाहते हैं तब हम अनुभव करते हैं कि आर्थिक प्रणाली टिकाऊ नहीं है, भीड़ की करतल के बीच उन्होंने कहा।
टोनी करम ने परम पावन को मेक्सिको आने के लिए और उदारता से लोगों से बातचीत करने लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने आगे पूछा कि क्या वे फिर आएँगे और परम पावन ने कहा:
“आपकी मुस्कराहट और जो सहृदयता आपने मेरे प्रति दिखाई है वह मेरे पुनः आने के लिए सच्चा निमंत्रण रहे हैं।”
दोपहर के भोजन के दौरान, परम पावन ने मेक्सिको के सबसे बड़े अखबार के रिफोर्मा की लज़ारो रियोस कावाज़ोस को एक साक्षात्कार दिया। उनके सवालों के बीच उन्होंने पूछा कि पिछले दो वर्ष पहले, जब उनसे बात हुई थी, के बाद क्या चीनी सरकार के साथ संबंधों में सुधार हुआ था। परम पावन ने उनसे कहा,अभी तक कोई सुधार नहीं हुए, लेकिन संभावित सुधार के संकेत के रूप वहाँ थे, यह संकेत हैं कि नया नेतृत्व एक अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण लेता है।
परम पावन ने शांतिदेव की 'बोधिसत्त्वचर्यावतार' का सर्वेक्षण यह कहते हुए किया कि सत्वों के शून्य चित्त और बुद्ध के चित्त में कोई अंतर नहीं है। अध्याय चार को देखते हुए उन्होंने कहा कि हमें मानव जीवन के महान मूल्य और मौत की स्थिरता को स्मरण रखना चाहिए। हम जानते हैं कि हमारी मृत्यु हो जाएगी पर यह नहीं जानते कि कब। बस, हम यह निश्चित रूप से यह जानते हैं कि उस समय केवल एक ही वस्तु सहायक होगी और वह है हमारी साधना की शक्ति।
इस संदर्भ में कि क्रोध और तृष्णा की तरह व्याकुल करने वाली भावनाएँ, बाह्य शत्रु नहीं हैं जो हम पर खुलकर आक्रमण करते हों; वे चुपके से हमें धोखा देते हैं और आक्रमण करते हैं। इसी तरह साधारण बाह्य शत्रु, परिवर्तित हो सकते हैं, और कभी हमारे मित्र भी बन सकते हैं, जबकि ऐसा कोई समय नहीं होता जब व्याकुल करने वाली भावनाएँ ऐसा करती हो। व्याकुल करने वाली भावनाएँ हमारी वास्तविक शत्रु हैं तो हम उनसे मुकाबला कैसे करें?
“अगर आप किसी के प्रति क्रोध और घृणा से भरे हुए हैं तो प्रेम और करुणा पर ध्यान करने पर, उसमें से डंक को बाहर कर सकते हैं। पर अंततः व्याकुल करने वाली भावनाएँ शून्यता की समझ रखने वाली प्रज्ञा से समाप्त हो जाती हैं।”