ज़काटेकास, मेक्सिको, अक्तूबर १६, २०१३ - ज़काटेकास के ऐतिहासिक शहर, जिसे संयुक्त राष्ट्र के एक विश्व विरासत स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है, में पत्थर की सड़कों से होते हुए गाड़ी से एक छोटी यात्रा के बाद परम पावन दलाई लामा एन्टिगुओ टेम्पलो सान अगस्टीना पहुँचे। यह जो पहले एक चर्च होता था, अब पुनर्निर्माण के पश्चात यह कला और सांस्कृतिक प्रदर्शनियों का स्थल है। परन्तु आज यह ज़काटेकास राज्य के बिशप मोंसेनोर सिगिफ्रेडो नोरिएगा बैरसेलो द्वारा आयोजित एक अंतर धार्मिक वार्ता का स्थान था। जैसे ही परम पावन पहुँचे, चौकोर में एक बड़े ब्रास बैंड का वादन हुआ और द्वार तक उत्साहित स्कूली बच्चे पंक्तिबद्ध खड़े थे, जहाँ बिशप ने उनका स्वागत किया और उन्हें अंदर ले गए।
अपने भावुक स्वागत भाषण में मोंसेनोर सिगिफ्रेडो ने विश्व में द्वेष और बुरे आचरण की बात की और पूछा कि, हम अच्छाई के लिए अपने आप को संगठित क्यों नहीं करते। उन्होंने मेक्सिको के कैथोलिक बिशपों द्वारा शांति और मानव विकास के काम के लिए ली एक प्रतिज्ञा का उल्लेख किया। उन्होंने परम पावन से कहा कि दर्शकों में हर कोई यह सुनने के लिए उत्सुक था कि जटिल वास्तविकता के विषय में उन्हें क्या कहना था।
"मैं खड़े होकर बात करना पसंद करता हूँ" परम पावन ने प्रारंभ किया "ताकि जिन लोगों से मैं बात कर रहा हूँ उनके चेहरे देख सकूँ। आध्यात्मिक नेताओं, भाइयों और बहनों, मैं यहाँ आकर खुश हूँ। आपने जिन बिन्दुओं का अभी उल्लेख किया है, वे वास्तविकता का निष्पक्ष मूल्यांकन हैं, ऐसा विषय जो हम सभी के लिए चिंता का कारण है। सतही तौर पर भौतिक विकास पर सुंदर लगता है, पर उसके नीचे अन्याय, शोषण, भ्रष्टाचार और संघर्ष की समस्याएँ हैं जो सभी चिंताओं और व्याकुलताओं को जन्म देती है।
"दूसरी ओर आध्यात्म आंतरिक शांति का एक वास्तविक स्रोत है; ऐसा कुछ, जो मशीनें नहीं दे सकती। आंतरिक शांति करुणा के अभ्यास से आती है। इसलिए इक्कीसवीं सदी में भौतिक विकास के साथ आध्यात्मिकता अपनी एक मूल्यवान भूमिका रखता है, पर यदि हम इसे विकसित करना चाहते हैं तो हमें ईमानदार होने की आवश्यकता है। उस दिन यूनिवर्सिडाड पॉन्टिफिका डे मेक्सिको में मैंने उल्लेख किया कि जब हम चर्च या मंदिर में धार्मिक परिधान पहनते हैं तो विशेष रूप से धार्मिक अनुभूति कर सकते हैं, पर यदि बाहर अपने जीवन में लौटने के लिए उन्हें उतारते हुए हम अपनी धार्मिक और नैतिक भावनाएँ भी उतार दें तो, उससे उद्देश्य कम ही पूरा होता है।
"आध्यात्मिकता का संदेश - प्रेम, करुणा, सहनशीलता, आत्म - अनुशासन और सत्यवादिता हमारे दैनिक जीवन के एक अंग होने चाहिए। यदि ऐसा है तो वे वास्तविक परिवर्तन प्रेरित करेंगे।"
एक और बात जो परम पवन बताना चाहते थे वह यह कि, यह बहुत पुरानी बात नहीं थी, कि जिस तरह तिब्बत प्रधान रूप से एक बौद्ध देश था मैक्सिको एक बड़े स्तर पर रोमन कैथोलिक देश था। पर अब हम एक बहु धर्म वाले विश्व में रहते हैं, जो संपन्नता की तुलना में संदेह का कारण कम है। पोप जॉन पॉल द्वितीय ने १९८६ में असीसी बैठक की पहल की, जब कई धार्मिक प्रतिनिधि एक दूसरे को जानने के लिए और शांति के संदेश की अभिव्यक्ति के लिए साथ आए। दार्शनिक मतभेद हैं, परन्तु उन्होंने स्पष्ट किया, कि ये केवल प्रेम और करुणा के अभ्यास के लिए दृष्टिकोण के मतभेद हैं।
"हमारे सामने उपस्थित कई समस्याएँ हमारी अपनी बनाई हैं। बिशप ने पूछा कि हम एक और अधिक शांतिपूर्ण दुनिया बनाने के लिए एक साथ काम कैसे कर सकते हैं। हममें से प्रत्येक में चित्त को शांतिपूर्ण बनाने की क्षमता है।"
वहाँ उपस्थित हर कोई शांति के लिए की जा रही प्रार्थना के सस्वर पाठ में शामिल हो गए। पास के कमरे में, परम पावन ने पत्रकारों से भेंट की और उन्हें मानव मूल्यों, आंतरिक शांति के कारण, अंतर्धार्मिक सद्भाव और एक तिब्बती के रूप में तिब्बती संस्कृति, जो कि शांति और अहिंसा की संस्कृति है, के संरक्षण के लिए अपनी प्रतिबद्धता बताई।"
पहला प्रश्न एक ऐसे देश में शांति निर्माण था, जो असमानता से इतना विखंडित था। परम पावन ने प्रयास की आवश्यकता को स्वीकार किया, यह संकेत करते हुए, कि यदि आप ईश्वर में विश्वास करते हैं तो धनवान और निर्धन के बीच की खाई को बनाए रखना ईश्वर के विरुद्ध जाना होगा। जब उनसे मेक्सिको की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के स्रोत के विषय में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली भौतिकवाद की ओर उन्मुख है और उसमें सौहार्दता का अभाव है।
दोपहर के भोजन के दौरान २५० गणमान्य लोगों, कलाकारों और विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, परम पावन ने ५० वर्षों से भी अधिक पहले अपने एक शरणार्थी बनने की बात की। उन्होंने कहा कि एक ओर तो यह दुख की बात है पर निजी रूप में उनके लिए यह अनुभव सहायक था, क्योंकि वे अब शिष्टाचार और औपचारिकता से बाध्य न थे, जैसा वे होते, यदि वह तिब्बत में ही रहते। उनसे पुनः विभिन्न धर्मों के बीच के संबंधों के विषय में पूछा गया और उन्होंने मजाक में कहा कि हमें अन्य धर्मों को शत्रु के रूप में देखना चाहिए और एक साथ न रहने का प्रयास करना चाहिए। फिर उन्होंने स्वीकार किया कि जब प्रेम और करुणा पैदा करने का प्रश्न आता है तो सभी धर्मों का एक साझा अभ्यास है।
दोपहर के भोजन के उपरांत पावन को ज़काटेकास कन्वेंशन सेंटर में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था, जहाँ उन्होंने ४२०० लोगों को संबोधित किया।
"प्रिय भाइयों और बहनों मैं आपके बीच आकर बहुत खुश हूँ। मैं जहाँ भी जाता हूँ मैं सुख के स्रोत के रूप में मानव मूल्यों और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने का प्रयास करता हूँ। इस यात्रा में मेक्सिको में मेरा यह अंतिम दिन है, जिस दौरान श्रोता बहुत ध्यानपूर्ण थे और उत्साह पूर्ण ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त की। मैं बहुत सुखद स्मृतियों के साथ कल अमरीका रवाना हो रहा हूँ।"
"मेरा मानना है कि एक प्रसन्नतापूर्ण व्यवहार के विकास के लिए कार्य करना उचित है क्योंकि भले ही यह आपके तत्काल समस्याओं का समाधान न करे पर एक शांत चित्त रखने में यह आपका सहायक होता है और एक शांत चित्त आपको वास्तविकता को स्पष्ट रूप से दिखाने में महत्वपूर्ण है। हममें अनुभव के दो स्तर होते हैं, एक वह जो ऐन्द्रिक है, जैसे कि शारीरिक पीड़ा और मानसिक अनुभव, जैसे निराशा, उदासी और तनाव। इन दोनों में से मानसिक अनुभव अधिक प्रभावशाली हैं क्योंकि जहाँ शारीरिक पीड़ा मानसिक संतोष से कम की जा सकती है, मानसिक व्याकुलता शारीरिक सुख से कम नहीं होती।"
उन्होंने कहा कि जब हम समस्याओं का सामना करते हैं तो प्रार्थना की ओर मुड़ते हैं और प्रार्थना और ध्यान एक निजी और व्यक्तिगत स्तर पर तो बहुत सहायक हो सकते हैं पर जब सामाजिक परिवर्तन की बात आती है तो संभव है कि वे बहुत प्रभावी न हो। उन्होंने कहा कि यदि हम अपने आंतरिक मूल्यों की चिंता किए बिना एक भौतिकवादी जीवन शैली का पीछा करते हैं तो हम जानवरों से बहुत अलग नहीं हैं। इसके विपरीत उन्होंने बार्सिलोना में एक कैथोलिक भिक्षु का स्मरण किया, जिसने सादा जीवन मात्र रोटी और पानी पर जीते हुए और प्रेम पर मनन करते पाँच वर्ष एकांतवास में बिताए थे। जब परम पावन इस सन्यासी से मिले तो उसकी आँखों की चमक और उसके मुख पर सुख की गहरी भावना ने उन्हें अत्यंत प्रभावित किया।
परम पावन ने सूचित किया कि उनके कुछ मित्र कहते हैं कि नैतिकता केवल धर्म पर ही आधारित होना चाहिए, पर वे उससे असहमत हैं। यदि कोई अन्य कारण न भी हो तो यह समस्या कि एक बहु – धर्म वाले विश्व में यह निश्चित करना कि कौन सा धर्म हो। इसीलिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की एक संहिता की आवश्यकता है। सरल सौहार्द की भावना एक आंतरिक शांति की भावना और आत्म विश्वास की ओर ले जाती है, जो कम भय और एक शांत चित्त की प्राप्ति सुनिश्चित करता है। उन्होंने कहा कि उनके अनुभव में, यह चित्त की शांति है, जो सुखी जीवन व्यतीत करने की कुंजी है।
मेक्सिको में लगभग एक सप्ताह निवास के बाद जिस दौरान उन्होंने ४२,००० लोगों से बातचीत की। परम पावन कल न्यूयॉर्क के लिए उड़ान भरेंगे, जहाँ आगामी दिनों में वे कई बौद्ध शिक्षाएँ देंगे।