नई दिल्ली, २३ दिसंबर २०१३ - परम पावन दलाई लामा ने जब आज प्रातः अक्षोभ्य दीक्षा, जो आज प्रातः वे देने वाले थे, की प्रारंभिक तैयारियों के लिए हॉल में प्रवेश किया, तो कई सौ रूसी छात्र उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। मंडल और विविध अर्पण वस्तुओं के समक्ष बैठ कर उन्होंने आवश्यक प्रारंभिक तैयारियों को पूरा करने में एक घंटा व्यतीत किया। जब तक उन्होंने समाप्त किया समूचा सभागार लगभग भर चुका था। उन्होंने श्रोताओं से कहा कि वे वर्तमान अनुभाग के अंत तक बोधिसत्वचर्यावतार के छठे अध्याय का पाठ जारी रखना चाहेंगे, जिसका अर्थ श्लोक १० था, िजसका उद्धरण वे प्रायः देते हैं क्योंकि यह एक यथार्थवादी और व्यावहारिक सलाह देता है।
क्यों उस के बारे में हों दुखी
यदि उसका निवारण हो सके
और उस के बारे में दुखी होने का क्या लाभ
यदि निवारण संभव न हो उसका ?
उन्होंने जे चोंखापा को उद्धृत करते हुए कहा, " ... सूत्र और तंत्र दोनों के अभ्यास में जो आवश्यक है उसे जान कर भी यदि आप को अब तक प्रबुद्धता के मार्ग की सहज अनुभूति नहीं हुई है तो वह तांत्रिक मार्ग में प्रवेश के लिए आधार का कार्य करेगी और आपके जीवन को और सार्थक बनाएगी।" उन्होंने आगे कहा कि उनकी जीवनी जो अच्छी तरह जानी जाती है, कि दो यान हैं, पारमिता यान और वज्रयान और यह कि तंत्र बहुत गहन है, पर कुछ ऐसे हैं जिन्हें पता ही नहीं है कि उसका अभ्यास कैसे किया जाए।
परम पावन ने टिप्पणी की कि तिब्बती समुदाय में ऐसे लोग हैं जो तंत्र के अभ्यासी होने का दावा करते हैं पर जो विनय के अनुशासन को हेय दृष्टि से देखते हैं, जो कि कदमपा आचार्यों के अनुसार बहुत बड़ी गलती है। इस बीच दूसरे ऐसे भी हैं जो विनय का पालन करते हैं पर तंत्र के लिए जिनके मन में केवल तिरस्कार है। उन्होंने पटियाला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जोशी का उल्लेख किया जिन्होंने भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास के बारे में लिखा था और उन्हें अंततः उसके गिरावट के कारणों के विषय में अपने विचार बताए। प्रथम तो लोगों ने बौद्ध धर्म के प्रति अपना सम्मान खो दिया। दूसरा ऐसे लोग थे जिन्होंने तंत्र का दुरुपयोग किया जैसे, साथी चुनने को लेकर दिखावा, और पांच मांस और पांच अमृत का प्रयोग और तीसरा, राजकीय संरक्षण का कम हो जाना। परम पावन के अनुसार कुछ इस प्रकार की परिस्थितियाँ, विशेष रूप से दूसरी के लिए कहा जा सकता है कि वह आज भी है।
यह टिप्पणी करने पर कि तंत्र के सभी वर्गों में देव योग का अभ्यास भी शामिल है परम पावन ने चित्त की प्रकृति की खोज में कुछ समय बिताया। उन्होंने इंगित किया कि तथागतगर्भ, चित्त की शून्य प्रकृति है और चित्त की प्रकृति स्पष्टता और जागरूकता है और मानसिक क्लेश चूँकि अस्थायी हैं अतः उन्हें दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि तंत्र का अभ्यास कर बुद्ध के स्वभाव और धर्मकाय के कारणों का निर्माण संभव है । परम पावन ने तंत्र के महत्व और उसके अभ्यास की व्याख्या करने में कुछ समय लिया क्योंकि, उन्होंने कहा, "इसके पूर्व कि मैं दीक्षा प्रारंभ करूँ यह महत्त्वपूर्ण है कि आप इसका संदर्भ और पृष्ठभूमि समझें।"
उन्होंने उल्लेख किया कि अक्षोभ्य का यह अभ्यास क्रिया तंत्र के अंतर्गत आता है और उसमें भी निहित वज्र परम्परा में। इसका मुख्य प्रयोग किसी की मृत्यु पर परिस्थिति को शुद्ध करने के लिए है। परम पावन ने कहा कि उन्होंने ऐसा अपनी माँ के लिए किया था जब उनकी मृत्यु हुई थी और वह उन लोगों की ओर से करते हैं जिनकी मृत्यु प्राकृतिक आपदाओं के परिणामस्वरूप होती है। यह परम्परा महासिद्ध जेतारि से आई है और परम पावन ने यह चोपज्ञे ठिछेन रिनपोछे से इसे प्राप्त किया।
उन्होंने श्रोताओं को एक उचित प्रेरणा सभी सत्वों का कल्याण अपनाने के प्रति आगाह किया। क्योंकि ऐसा कहा गया है कि तंत्र के प्राप्तकर्ताओं को विनयों का धारक होना चाहिए। उन्होंने सभा की पहले व्यक्तिगत प्रतिमोक्ष वचन समारोह और फिर बोधिसत्व व्रत लेने में अगुआई की। उन्होंने टिप्पणी की, कि आप किसी की सहायता केवल इच्छा करने मात्र से नहीं कर सकते, आप को कुछ करना पड़ेगा। उन्होंने उन लोगों की सराहना की जो किसी प्रकार का अहित न करने का और उनसे जिस रूप में बन पड़े अन्य सत्वों की सहायता करने का निश्चय करते हैं।
जब उन्होंने दीक्षा पूरी कर ली, परम पावन ने छोटे समूहों की एक श्रृंखला में सभी रूसियों के साथ तस्वीरें खिंचवाईं। दोपहर के भोजन के बाद वे बेंगलुरू के लिए उड़ान भरने के लिए हवाई अड्डे गए, जहाँ से वे कल मोटर गाड़ी द्वारा बाइलाकुप्पे और सेरा महाविहार तिब्बती आवास जाएँगे जहाँ वे महान बोधिपथक्रम के प्रवचन को जारी रखेंगे जो पिछले वर्ष उन्होंने प्रारंभ किया था।