हुनसुर, कर्नाटक, भारत - जुलाई 16, 2013 (तेनज़िन देसल, द तिब्बत पोस्ट इंटरनेशनल) – भारत के कर्नाटक प्रदेश के बैलकुपे और हुनसुर के तिब्बती बसाव में अपना जन्म दिवस मनाकर और प्रवचन की एक श्रृखंला के पश्चात् परम पावन दलाई लामा ने बैलकुपे और हुनसुर के तिब्बती बसाव की अपनी यात्रा समाप्त की।
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ग्युमे तांत्रिक महाविद्यालय में दिए जा रहे महामुद्रा पर अपने प्रथम दिन केप्रवचन के दौरान परम पावन दलाई लामा चाय पीते हुए, हुनसुर, कर्नाटक, भारत - जुलाई 14, 2013 चित्र/तेनज़िन तकला/ओ ओ एच डी एल
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इसके पूर्व उन्होंने ग्यूमे तांत्रिक विश्वविद्यालय में महामुद्रा पर प्रवचन दिया। यह एक बौद्ध शिक्षा है, जिसकी अपनी संप्रेषण परम्परा है और जो चित्त की प्रकृति पर केन्द्रित है, जिसके बौद्ध दर्शन के अनुसार दो रूप हैं – पारमार्थिक और सांवृतिक।
“समदोंग रिनपोछे एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण लामा हैं और हम दोनों के शिक्षक भी एक रहे हैं” प्रवचन के दौरान अपने पहले के गुरुओं का संदर्भ देते हुए तिब्बत के आध्यात्मिक मार्ग दर्शक ने कहा। “हमारे वार्तालाप के दौरान उन्होंने मुझसे महामुद्रा पर शिक्षा देने का आग्रह किया।”
हुनसुर के रबज्ञेलिंग तिब्बती बसाव की यात्रा के अंतिम दिन दलाई लामा ने ग्यूमे तांत्रिक विश्वविद्यालय के निवासी भिक्षुओं को और उन तिब्बतियों को जो आस पास के तिब्बती बसाव से आए थे दीर्घायु का अभिषेक प्रदान किया।
“एक शरणार्थी की स्थिति में हमने भौतिक रूप से बहुत विकास कर लिया है। परन्तु हम अभी भी गरीबी के क्षेत्र देखते हैं और यह आवश्यक है कि उनकी देख भाल उनके पड़ोसियों और तिब्बती बसाव कार्यालय द्वारा हो,” दीर्घायु अभिषेक प्रदान करने के पश्चात् वे बोले।
“हमें अपनी सेवाएँ और सहायता तिब्बती बसाव के आसपास के भारतीय गाँवों तक पहुँचानी चाहिए। सभी क्षेत्रों में सहायता देना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है पर हमें यथासंभव सहायता करनी चाहिए।”
“हमारे तिब्बती स्वास्थ्य केन्द्रों में केवल तिब्बतियों को ही नहीं अपितु आस पास के भारतीयों को भी उपचार प्रदान किया जाना चाहिए,” उन्होंने आगे कहा।
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परम पावन दलाई लामा द्वारा ग्युमे तांत्रिक महाविद्यालय में दिए जा रहे महामुद्रा पर दो दिन के प्रवचन में भाग ले रहे श्रोताओ का एक वर्ग, हुनसुर, कर्नाटक, भारत - जुलाई 14, 2013 चित्र/लोबसंग छेरिंग/ओ ओ एच डी एल
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तेनज़िन टाशी 29, जो कि बैलकुपे के छ़ोजे खंगसर अस्पताल में कार्य करता है, ने टी पी आइ से बात करते हुए कहा “मैं बहुत उत्साह से बैलकुपे से आशीर्वाद लेने और प्रवचन सुनने आया हूँ।”
“जब भी मैं परम पावन के सान्निध्य में होता हूँ तो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता; वे मुझे एक बेहतर व्यक्ति बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अपने जन्मदिन के दौरान जैसा उन्होंने पहले कहा था उसे ध्यान में रखते हुए जब भी मैं क्रोधित होता हूँ या व्याकुल होता हूँ तो मैं उनके विषय में और उनके संदेश के विषय में सोचता हूँ तो मैं शांत हो जाता हूँ।”
अपुष्ट रिपोर्टों के अनुसार परम पावन बाद में ध्यान के एकांतवास के लिए लद्दाख की यात्रा करेंगे, जिसके दौरान दर्शन के लिए किसी भी प्रकार के वैयक्तिक अथवा औपचारिक प्रार्थना पर विचार नहीं किया जाएगा।